Monday, October 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में तथ्यों को छिपाने तथा गंभीर वित्तीय घपलों के आरोपों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल से रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छिना, और एसके मिढा ने उनकी जगह कार्यभार संभाला

नोएडा । 'रचनात्मक संकल्प' ने 25 अगस्त की अपनी रिपोर्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल से रोटरी नोएडा ब्लड बैंक की कमान छिनने को लेकर जो संकेत दिए थे, वह अंततः सच साबित हुए - और सतीश सिंघल को रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के घपलों और उन घपलों में अपनी मिलीभगत के आरोपों के चलते अंततः रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद से हाथ धोना पड़ा है । ब्लड बैंक के ट्रस्टीज की बैठक में एसके मिढा को सतीश सिंघल की जगह मैनेजिंग ट्रस्टीज बनाया गया है । ट्रस्टीज के इस फैसले से सतीश सिंघल बुरी तरह नाराज हुए और अपनी नाराजगी वयक्त करते हुए उन्होंने एसके मिढा के ब्लड बैंक का कार्यभार संभालने के मौके का बहिष्कार किया । उस मौके पर ही चर्चा सुनी गई कि सतीश सिंघल ने मैनेजिंग ट्रस्टी का पद बचाने के लिए अंतिम समय तक प्रयास किया और अपने प्रयास में उन्होंने ट्रस्टीज के बीच फूट डालने की भी चाल चली, लेकिन उनकी कोई भी चाल कामयाब नहीं हो सकी, और अंततः उन्हें ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । उल्लेखनीय है कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के हिसाब-किताब में घपलों के आरोपों को लेकर तथा अपने कार्य-व्यवहार के चलते सतीश सिंघल पिछले काफी समय से ट्रस्टीज के निशाने पर थे, लेकिन सतीश सिंघल कुछेक ट्रस्टीज की खुशामद करके तथा बाकियों के बीच फूट डाल/डलवा कर मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी को अभी तक अपने पास बचाये/बनाये रखने में कामयाब बने हुए थे । 
उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल के कार्य-व्यवहार को लेकर तो ट्रस्टीज को बहुत पहले से शिकायतें रही हैं, लेकिन उन शिकायतों को मुखर बनाने का काम किया दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक के 'नतीजों' ने किया है । डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की देखरेख में चल रहे दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री करके 15 से 20 लाख रुपए का लाभ दर्ज किया जा रहा है, जबकि सतीश सिंघल रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री से कुल करीब 34/35 हजार रुपए का ही लाभ 'बताते' हैं । दोनों ब्लड बैंक के हिसाब-किताब की जानकारी रखने वाले लोगों को हैरानी यह देख/जान कर हुई कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक ढाई हजार के करीब यूनिट बेच कर जब 15 से 20 लाख रुपए के करीब का लाभ कमा लेता है, तो सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले ब्लड बैंक की कमाई उतने ही यूनिट ब्लड बेचने के बाद 34/35 हजार रुपए के करीब पर ही क्यों ठहर जाती है ? यहाँ नोट करने की बात यह भी है कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक बड़ा है, और इसलिए उसके खर्चे भी ज्यादा हैं; ब्लड के विभिन्न कंपोनेंट्स के दाम बिलकुल बराबर हैं - बल्कि एक कंपोनेंट के दाम सतीश सिंघल के ब्लड बैंक में कुछ ज्यादा ही बसूले जाते हैं । इस लिहाज से सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले रोटरी नोएडा ब्लड बैंक का लाभ तो और भी ज्यादा होना चाहिए । लाभ के इस खासे बड़े अंतर ने रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में सतीश सिंघल की भूमिका और उनकी काबिलियत को न सिर्फ संदेहास्पद बना दिया, बल्कि गंभीर वित्तीय आरोपों के घेरे में भी ला दिया ।
सतीश सिंघल के व्यवहार व रवैये ने उनकी भूमिका के प्रति संदेह व आरोपों को विश्वसनीय बनाने का काम किया । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टी अक्सर शिकायत करते सुने गए हैं कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक का हिसाब-किताब देने/बताने में हमेशा आनाकानी करते हैं, और पूछे जाने पर नाराजगी दिखाने लगते हैं । सतीश सिंघल के इस व्यवहार और रवैये से लोगों को विश्वास हो चला कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक में ऐसा कुछ करते हैं, जिसे दूसरों से छिपाकर रखना चाहते हैं । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टियों का ही आरोप भी रहा कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक को अपने निजी संस्थान के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और उसकी कमाई हड़प जाते हैं । सतीश सिंघल अपना पूरा समय ब्लड बैंक में ही बिताते हैं, जिससे लगता है कि उनके पास और कोई कामधंधा नहीं है । सतीश सिंघल के इसी व्यवहार व रवैये से लोगों को यह लगता रहा है कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक को उन्होंने अपनी कमाई का जरिया बना लिया है - और अपनी 'कमाई' भी वह बेईमानीपूर्ण तरीके से निकालते हैं । तमाम शिकायतों और आरोपों के बावजूद ट्रस्टीज चूँकि सतीश सिंघल के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर एकजुट नहीं हो पा रहे थे, इसलिए सतीश सिंघल को लगने लगा था कि मैनेजिंग ट्रस्टी पद से उन्हें हटा पाना असंभव ही होगा । लेकिन, जैसा कि 25 अगस्त की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में बताया गया था कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल पर गंभीर वित्तीय आरोपों से चूँकि रोटरी के कई बड़े नेता भी परिचित हैं; और समय समय पर उक्त आरोपों के कारण रोटरी की होने वाली बदनामी के प्रति वह चिंता भी व्यक्त करते रहे हैं - इसलिए सतीश सिंघल को डर है कि इन आरोपों के कारण वह कभी भी 'सजा' पा सकते हैं ।
समझा जाता है कि रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों से 'समर्थन' मिलने की शह पर ही रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टीज ने आपसी मतभेदों को भुलाकर सतीश सिंघल के खिलाफ आरपार की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर ली और तब सतीश सिंघल अकेले पड़ गए । चर्चा सुनी जा रही है कि कुछेक नियम कानूनों का वास्ता देकर सतीश सिंघल ने काफी समय तक मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी बचाने की कोशिश की, लेकिन उनसे साफ बता दिया गया कि उन्होंने यदि इस्तीफा नहीं दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जायेगा । सतीश सिंघल ने तब इस्तीफा दे देने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी और इस तरह रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में उनकी मनमानी और लूट-खसोट का अंत हुआ । मजे की बात है कि सतीश सिंघल की तरफ से यही कहा/बताया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद की जिम्मेदारियाँ साथ-साथ निभाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था, इसलिए दोहरी जिम्मेदारी का दबाव कम करने के लिए उन्होंने मैनेजिंग ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया है । लेकिन उनकी यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है - क्योंकि वास्तव में यदि दोहरी जिम्मेदारी का ही दबाव होता तो सतीश सिंघल को बहुत पहले मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छोड़ देना चाहिए था; अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उनकी जिम्मेदारियाँ काफी कुछ हद तक पूरी हो गईं हैं, तब दोहरी जिम्मेदारी के दबाव की बात करना मजाक ही है । कुछेक ट्रस्टीज ने सतीश सिंघल के कार्यकाल के हिसाब-किताब की जाँच करने/करवाने की माँग करके भी सतीश सिंघल के लिए मुसीबतों को बढ़ाने का काम किया है । यानि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छिन जाने के बाद भी सतीश सिंघल का मुसीबत और फजीहत से पीछा छूटता हुआ नहीं दिख रहा है ।