पुणे
। अभिषेक जावरे के निकलने से जावरे प्रोफेशनल एकेडमी को लगे झटके से
बचने/उबरने के लिए एसबी जावरे ने विनोद कुमार अग्रवाल के साथ जो हाथ मिलाया
है - उसने पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की कोचिंग के धंधे के परिदृश्य
में दिलचस्प नजारा प्रस्तुत किया है, जिसमें नए नए नाटक रोज रोज देखने को मिल रहे
हैं । उल्लेखनीय है कि विनोद कुमार अग्रवाल पहले जावरे प्रोफेशनल
एकेडमी में ही फैकल्टी थे, लेकिन एसबी जावरे के मनमाने रवैये के कारण
अपमानित होकर उन्हें करीब 14/15 वर्ष पहले एकेडमी छोड़ना पड़ी थी । इससे
पहले, जावरे प्रोफेशनल एकेडमी से निकल कर अभिषेक जावरे ने जिन सुबोध शाह के
साथ गठबंधन किया है, वह भी पहले जावरे एकेडमी में ही थे । इस तरह, चाचा
भतीजे ने अपनी आपसी लड़ाई में जिस तरह से अपनी एकेडमी से निकले लोगों को ही
अपनी अपनी ढाल बनाया है - उससे लोगों को लग रहा है कि इन दोनों के बीच की
यह लड़ाई अभी और गंदी होगी । इस बात के संकेत दोनों की तरफ से होने वाली
बयानबाजी में भी मिले हैं : एसबी जावरे ने कई लोगों को भेजे अपने एक पत्र
में 'एक फैकल्टी' के एकेडमी से निकलने के कारण बनी स्थिति का हवाला देते
हुए अभिषेक जावरे पर निशाना साधा है, तो अभिषेक जावरे ने भी जबाव देने और
लोगों को यह बताने में कोई संकोच नहीं किया है कि वह एकेडमी छोड़ना नहीं
चाहते थे, उन्हें एकेडमी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया । यह कहते हुए अभिषेक
जावरे ने एसबी जावरे को सीधे-सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया है - क्योंकि
जावरे एकेडमी में एसबी जावरे के अलावा और कौन होगा, जो उन्हें एकेडमी
छोड़ने के लिए मजबूर करता ? अभिषेक जावरे ने खुद को 'एक फैकल्टी' कहे जाने
का भी करारा जबाव दिया है : अपने जबाव में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जावरे
एकेडमी में वह सिर्फ एक फैकल्टी नहीं थे - बल्कि एक पार्टनर, चीफ
एक्जीक्यूटिव ऑफीसर और मुख्य फैकल्टी थे । चाचा/भतीजे के बीच
आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला इसलिए छिड़ा है क्योंकि दोनों ही लोग अपने आप
को निर्दोष बताने/साबित करने के साथ-साथ दूसरे के सिर पर ही सारी जिम्मेदारी
मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ।
एसबी जावरे का पत्र :
अभिषेक जावरे के एकेडमी से
निकलने के कारण हुई और हो रही फजीहत से बचने के लिए एसबी जावरे ने अभिषेक
जावरे पर सारा दोष मढ़ने और अपने आप को कोचिंग सर्विसेस व छात्रों के हितों
के प्रति प्रतिबद्ध बताने/दिखाने के लिए जो पत्र लिखा है, उसमें भी चालाकी
दिखाते हुए आधी-अधूरी जानकारी दी गई है । एसबी जावरे ने अपने पत्र में
कहा/बताया है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कामों में व्यस्त हो
जाने के कारण वह एकेडमी से कुछ दूर हो गए थे, लेकिन छात्रों के बार-बार के
अनुरोध के कारण वह सेंट्रल काउंसिल में अपनी व्यस्तता के बावजूद एकेडमी में
फिर लौट आए हैं । एसबी जावरे का यह बयान बेहद चालाकी भरा है, और
छात्रों व लोगों को भावनात्मक रूप से बरगलाने वाला है । वह कह/बता रहे हैं
कि वह इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कामों में व्यस्त हो गए थे - वह
यह नहीं बता रहे हैं कि वह वहाँ क्यों व्यस्त हो गए थे : क्या वह रास्ता
भटक गए थे, या उन्हें किसी ने जबर्दस्ती वहाँ पकड़ लिया था ? सच यह है कि
उन्होंने अपनी मर्जी से, पूरे होशो-हवास में और अपने प्रयत्नों से सेंट्रल
काउंसिल का चुनाव लड़ा था - और सेंट्रल काउंसिल पहुँचे थे । एसबी जावरे
ने जानते-बूझते हुए अपने-आप को सेंट्रल काउंसिल में व्यस्त किया हुआ था, और
इस कारण से उन्होंने छात्रों के साथ धोखा और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया था ।
अब जब वह बार-बार के अनुरोधों का हवाला देते हुए छात्रों के बीच वापस लौटने
की बात कह रहे हैं, तो यह भी झूठ है - सच यह है कि नियमानुसार वह अबकी
बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ ही नहीं सकते हैं, और इंस्टीट्यूट का
प्रेसीडेंट बनने की उनकी हसरत भी बिखर चुकी है; लिहाजा सेंट्रल काउंसिल में
अगले दो वर्ष उनके पास न तो करने को कुछ खास है, और न उनका उत्साह ही बचा
है । सो, एसबी जावरे के पास एकेडमी में वापस लौटने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है ।
अभिषेक
जावरे के अलग हो जाने से - और उनके अलग हो जाने के कारणों के सार्वजनिक हो
जाने से एसबी जावरे को दोहरी चोट पड़ी है : उन्होंने एक तरफ तो विश्वसनीय
सहयोगी खोया है, और दूसरी तरफ सारे घटनाक्रम से लोगों के बीच उनकी भारी
फजीहत हुई है । इस बीच जावरे एकेडमी से दो-एक और फैकल्टी सदस्यों के निकलने
की चर्चा जोर पकड़ रही है । इस दोहरी/तिहरी चोट से उबरने/सँभलने के लिए
एसबी जावरे ने एक तो लोगों को ऊपर वर्णित पत्र लिखा और दूसरा काम एक समय
जावरे एकेडमी से निकाले गए विनोद कुमार अग्रवाल से वापस संबंध जोड़ने
का किया है । उन्हें उम्मीद है कि विनोद कुमार अग्रवाल को पुनः अपने साथ
जोड़ कर वह एक अनुभवी फैकल्टी की कमी को भी दूर कर लेंगे, तथा साथ ही साथ
लोगों को वह यह भी 'दिखा' देंगे कि उनके रवैये और व्यवहार में कोई गड़बड़
नहीं है - यदि सचमुच कोई गड़बड़ होती तो उनके यहाँ से छोड़ कर गए विनोद
कुमार अग्रवाल पुनः उनके साथ भला क्यों जुड़ते ? पुणे की कोचिंग इंडस्ट्री
से जुड़े लोगों का कहना लेकिन यह है कि एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल
के बीच बना गठबंधन वास्तव में मजबूरी का सौदा है । जावरे एकेडमी से निकलने
के बाद विनोद कुमार अग्रवाल ने हालाँकि एक समय सफलता की सीढ़ियाँ बड़ी तेजी
से चढ़ी थीं, और काफी समय पुणे के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों के बीच उनकी
खासी लोकप्रियता रही थी - लेकिन पिछले काफी समय से उनका धंधा बुरी तरह
चौपट चल रहा है; इसलिए जावरे एकेडमी में लौटने में उन्हें फिलहाल अपनी भलाई
ही नजर आई है । एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल को अपनी अपनी मुसीबतों
वाले मौजूदा समय में आपस में हाथ मिला लेने में फायदा दिखा - तो पिछले
अनुभवों से मिली कड़वाहट को भूल कर वह इकट्ठा हो गए हैं । हालाँकि
अधिकतर लोगों को लगता है कि एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल के बीच होने
वाला यह मौकापरस्त पुनर्मिलन ज्यादा दिन तक टिकेगा नहीं । इसीलिए माना जा रहा है कि
पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की कोचिंग के धंधे में अभी और नए नए नाटक
देखने को मिलेंगे ।एसबी जावरे का पत्र :