Saturday, December 3, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पटनीटॉप में हो रही सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस में कार्यकारी चेयरपरसन पूजा बंसल का नाम न देना नियम व परंपरा का मजाक बनाने तथा काउंसिल की पहचान और प्रतिष्ठा को सवालों के घेरे में खड़ा करना नहीं है क्या ?

नई दिल्ली । जम्मू एंड कश्मीर राज्य के लिए होने वाली सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कार्यकारी चेयरपरसन पूजा बंसल को जिस तरह से किनारे करने/बैठाने की तैयारी की गई है, उससे इस बात का पुख्ता सुबूत लोगों के सामने आया है कि रीजनल काउंसिल के पॉवर ग्रुप के लोगों के बीच अपने द्धारा ही लिए गए फैसले के प्रति सम्मान नहीं है - और कि पूजा बंसल को उन्होंने मजबूरी में कार्यकारी चेयरपरसन चुन तो लिया है, किंतु वह पूजा बंसल को उनका उचित हक़ और सम्मान देने को तैयार नहीं हैं । दरअसल पटनीटॉप में होने जा रही सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस का निमंत्रण जब लोगों को मिला, तो उसमें पूजा बंसल की जगह सुमित गर्ग का नाम देख कर लोगों को हैरानी हुई । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की तरफ से अभी तक जितनी भी सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस हुई हैं, सभी के निमंत्रण पत्र में रीजनल काउंसिल के चेयरमैन तथा मेज़बान ब्रांच के चेयरमैन का ही नाम आता रहा है । जाहिर है कि यही नियम और व्यवस्था है । दीपक गर्ग के इस्तीफे के बाद नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अधिकृत मीटिंग में वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को चेयरपरसन पद का भी कामकाज देखने के लिए अधिकृत करने का फैसला लिया जाता है । इस फैसले के अनुसार, कार्यकारी चेयरपरसन पूजा बंसल हुईं । सभी जानते हैं कि इस तरह की परिस्थिति में 'कार्यकारी' को पूर्णकालिक वाले सभी अधिकार नहीं मिलते हैं, लेकिन फिर भी संस्था का मुखिया तो 'कार्यकारी' होने के बावजूद वही होता है । नियमानुसार 'कार्यकारी' को सारे अधिकार तो नहीं ही मिलेंगे - उसे मुखिया का अधिकार और सम्मान भी नहीं मिलेगा, तो फिर उसके 'कार्यकारी' होने का मतलब क्या है ? स्पष्ट है कि नियम और व्यवस्था के अनुसार, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कार्यकारी चेयरपरसन होने के नाते सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस के निमंत्रण पत्र में पूजा बंसल का नाम होना चाहिए था ।
किंतु नियम और व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस के निमंत्रण पत्र में पूजा बंसल की बजाए रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग का नाम दिया गया है । और इस तरह, रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप के लोगों ने न सिर्फ अपने खुद के फैसले को ही मानने/अपनाने से इंकार किया है, बल्कि अपने ही एक सहयोगी/साथी को अपमानित करने का रवैया प्रदर्शित किया है । उल्लेखनीय है कि पूजा बंसल खुद भी रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप की प्रमुख सदस्य हैं, और इसी प्रमुखता के चलते उन्हें वाइस चेयरपरसन का पद मिला । दीपक गर्ग के चेयरपरसन पद से इस्तीफ़े से शुरू नाटक के 'हाथ से निकल जाने' के बाद चेयरपरसन पद पर निगाह लगाए 'गिद्धों' का खेल जो बिगड़ा, तो फिर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अराजकता का राज हो गया । राकेश मक्कड़ ने मनमाने तरीके से अपने आप को एनआईआरसी टीम को-कॉर्डीनेटर के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया । काउंसिल के कार्यालय में वह चेयरपरसन की कुर्सी पर बैठने और स्टॉफ को वह खुद को चेयरपरसन जताते हुए आदेश देने लगे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़, विवेक खुराना, नितिन तँवर, सुमित गर्ग का एक गिरोह बन गया - जो फैसलों और कार्रवाइयों में अपनी मनमानी तो करता ही है, दूसरों के साथ गाली-गलौच और हाथापाई तक करने से नहीं चूकता है । काउंसिल की मीटिंग्स तक में एक दूसरे पर चीखने-चिल्लाने, गालियां निकालने, एक-दूसरे के कॉलर पकड़ लेने और कुर्सियाँ पलटने तक की नौबतें आईं । गिरोह के सदस्यों की बदतमीजीपूर्ण हरकतों से स्टॉफ तक के लिए आफत है । एक महिला स्टॉफ के लिए तो बंद ऑफिस में अपने साथ हुई हरकत के लिए पुलिस में शिकायत तक करने की नौबत आई; जिसके बाद गिरोह के सदस्यों को माफी माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा ।
इन बातों और चर्चाओं के कारण नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की बदनामी हो रही है, लेकिन गिरोह के सदस्यों को तथा उनका साथ दे रहे सदस्यों को इससे जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । काउंसिल की बदनामी को तो छोड़िए, हैरत की बात यह है कि गिरोह के सदस्यों को अपनी बदनामी की चिंता नहीं है । गिरोह के सदस्यों में राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना चेयरपरसन पद के प्रबल दावेदार हैं - पॉवर ग्रुप में राकेश मक्कड़ को अगले वर्ष तथा विवेक खुराना को उसके बाद वाले वर्ष में चेयरपरसन बनाए जाने को लेकर सहमति की बात सुनी/बताई जाती है । लेकिन पहले ही वर्ष में पॉवर ग्रुप के सदस्यों के बीच बनी 'सहमति' की जैसी जो फजीहत हुई है, उसे देख कर इन्हें आगे के लिए भी 'डर' बना है । उल्लेखनीय है कि पहले वर्ष में दीपक गर्ग के इस्तीफ़े का जो नाटक रचा गया, वह सहमति के आधार पर लिखी गई पटकथा का ही हिस्सा था - लेकिन हालात ने जिस तरह से पलटा खाया, उसके कारण सहमति के आधार पर लिखी गई पटकथा के परखच्चे उड़ गए । बाकी दो वर्षों के लिए लिखी गई पटकथा को बचाने के लिए राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना को आगे आना पड़ा है और कमान अपने हाथ में लेना पड़ी है । पहले वर्ष में हालात जिस तरह से बेकाबू हुए और जो जो लोग छह महीने के लिए ही चेयरपरसन पद की शपथ लेने के लिए तैयार हो रहे थे, वह तो टापते रह गए - और लॉटरी निकल आई पूजा बंसल की; उसे देख राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना को अगले वर्षों की अपनी 'योजना' और 'तैयारी' पिटती हुई दिखी है । 
राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना को बदले हालात में सबसे ज्यादा खतरा वास्तव में पूजा बंसल से ही लगा है । दरअसल उन्हें डर हुआ है कि कार्यकारी चेयरपरसन के रूप में पूजा बंसल ने यदि अच्छे से काम कर लिया, तो कहीं अगले वर्ष वह पूर्णकालिक चेयरपरसन न बन जाएँ । इन्होंने इसीलिए पूजा बंसल को कार्यकारी चेयरपरसन के रूप में काम करने का मौका न देने का निश्चय किया । इनके इस निश्चय से भले ही इनके द्धारा ही लिए गए फैसले की अवमानना होती हो - वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को चेयरपरसन पद का भी कामकाज देखने के लिए अधिकृत करने का जो फैसला लिया गया, उसमें यह लोग भी तो शामिल थे ही न ! नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के आयोजनों में चेयरपरसन - कार्यकारी चेयरपरसन पूजा बंसल को प्रमुखता देने की बजाए तरह तरह की बहानेबाजी से अपने आपको ही प्रमुख बनाए रखने की गिरोह के लोगों की चालबाजियों ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल तथा उसके आयोजनों की गरिमा को ही नष्ट कर दिया है । पटनीटॉप में हो रही सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस में कार्यकारी चेयरपरसन पूजा बंसल की बजाए सेक्रेटरी सुमित गर्ग का नाम देना नियम व परंपरा का तो मजाक बनाना है ही, साथ ही गिरोह के सदस्यों का अपनी चालबाजियों को व्यापक रूप देने का प्रयास भी है - जिसके कारण नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पहचान और प्रतिष्ठा आज सवालों के घेरे में आ खड़ी हुई है ।