Friday, September 7, 2018

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में पुणे में संजय पवार को धोखे में रख कर सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी ने वोटों के समीकरण को ऐसा गड़बड़ाया है कि संजय पवार के साथ-साथ शेखर चितले के लिए भी मुसीबत पैदा हो गई लगती है

पुणे । सर्वेश जोशी ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके न सिर्फ संजय पवार, बल्कि शेखर चितले की उम्मीदवारी के लिए भी मुसीबतें खड़ी कर दी हैं । सबसे बुरा तो संजय पवार के साथ हुआ - वह बेचारे इस उम्मीद में थे कि सर्वेश जोशी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे और उन्हें वोट दिलवायेंगे; पर अब जब सर्वेश जोशी खुद ही उम्मीदवार हो गए हैं, तो संजय पवार की सारी उम्मीदें बुरी तरह ध्वस्त हो गई हैं । संजय पवार को पुणे में सर्वेश जोशी के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और इस नाते हर किसी को विश्वास था कि संजय पवार यदि सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं, तो निश्चित ही सर्वेश जोशी से विचार-विमर्श करके और उनकी सहमति मिलने पर ही कर रहे होंगे । उल्लेखनीय है कि पुणे में इंस्टीट्यूट की छोटी से बड़ी चुनावी राजनीति तक को जानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार एसबी जावरे ने यशवंत कसार के जरिये सर्वेश जोशी की रीजनल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए जो फंदा तैयार किया था, उससे निपटने के लिए सर्वेश जोशी ने ही संजय पवार को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनाया/बनवाया था । उनकी तरकीब काम कर गई थी और एसबी जावरे अपने 'फंदे' को उतारने/लपेटने के लिए मजबूर हो गए थे - और सर्वेश जोशी किसी तरह रीजनल काउंसिल की अपनी सदस्यता बचा लेने में कामयाब हो गए थे । लोगों को उम्मीद भी थी और विश्वास भी था कि संजय पवार के पिछली बार किए गए इस अहसान को सर्वेश जोशी याद रखेंगे और इस बार सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत होने वाली संजय पवार की उम्मीदवारी के समर्थन में काम करेंगे । सर्वेश जोशी ने लेकिन सभी उम्मीदों और विश्वासों को ठेंगा दिखाते हुए सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी ही उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी है । इससे लोगों को लगा है कि सर्वेश जोशी अभी तक संजय पवार को सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल ही कर रहे थे, और संजय पवार के साथ उनकी नजदीकी सिर्फ एक धोखा थी ।
सर्वेश जोशी की इस हरकत से सेंट्रल काउंसिल के लिए चुनावी तैयारी कर रहे संजय पवार को तो झटका लगा ही है, शेखर चितले की तैयारी के लिए भी मुसीबत पैदा हुई है । शेखर चितले को एसबी जावरे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और इस नाते सर्वेश जोशी तथा संजय पवार के बीच के झगड़े का उनकी उम्मीदवारी पर यूँ तो कोई सीधा प्रभाव पड़ता नजर नहीं आता है - लेकिन सर्वेश जोशी से मिले धोखे से संजय पवार के प्रति जो हमदर्दी पैदा हुई दिख रही है, उसे शेखर चितले के लिए जरूर एक चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । खुद शेखर चितले के समर्थकों को लग रहा है कि सर्वेश जोशी के 'व्यवहार' की प्रतिक्रिया में संजय पवार जिस तरह से 'विक्टिम कॉर्ड' खेल रहे हैं, उससे वह लोगों की हमदर्दी पा लेंगे - और जो शेखर चितले को भी नुकसान पहुँचाने का काम करेगी । शेखर चितले को एसबी जावरे का समर्थन जरूर है और एसबी जावरे उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास भी करेंगे ही - लेकिन लोगों को लगता नहीं है कि एसबी जावरे उन्हें अपने जैसा समर्थन दिलवा सकेंगे । शेखर चितले की लोगों के बीच कोई ज्यादा सक्रियता और संलग्नता भी नहीं रही है - लोग उन्हें एसबी जावरे के नजदीकी होने के नाते ही जानते/पहचानते हैं । शेखर चितले के समर्थकों को लगता है और उनका कहना भी है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए यदि चुनाव सीधे-सीधे शेखर चितले और संजय पवार के बीच हो रहा होता, तो शेखर चितले निश्चित ही बेहतर स्थिति में होते - लेकिन सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी ने वोटों के समीकरण को ऐसा गड़बड़ाया है कि संजय पवार के साथ-साथ शेखर चितले के लिए भी मुसीबत पैदा हो गई है ।
मजे की बात यह है कि पुणे में सेंट्रल काउंसिल के तीनों उम्मीदवारों में सर्वेश जोशी को बाकी दोनों से बेहतर स्थिति में देखा/आँका जा रहा है, लेकिन फिर भी किसी को यकीन नहीं है कि वह सेंट्रल काउंसिल में जा सकेंगे । सर्वेश जोशी के विरोधियों के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि सर्वेश जोशी रीजनल काउंसिल सदस्य और पदाधिकारी के रूप में लोगों को चूँकि लगातार 'दिखते' रहे हैं, इसलिए लोगों के बीच उनका 'परिचय' है और सीनियर्स के साथ-साथ नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भी उन्हें जानते/पहचानते हैं; जबकि संजय पवार और शेखर चितले को तो अभी लोगों के बीच पहचान व परिचय बनाने का ही काम करना है - इस नाते सर्वेश जोशी फिलहाल तो संजय पवार और शेखर चितले से बेहतर स्थिति में हैं । लेकिन इन्हीं लोगों का मानना और कहना यह भी है कि सर्वेश जोशी ने रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में चूँकि कुछ भी उल्लेखनीय काम नहीं किया है, और न वह किसी के काम ही आये हैं - जिस कारण उनके संगी/साथी ही उनका साथ छोड़ते गए हैं, इसलिए सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवार के रूप में वोट जुटा पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा । लोग याद कर रहे हैं कि पिछली बार सर्वेश जोशी रीजनल काउंसिल की अपनी सदस्यता ही मुश्किल से बचा पाए थे; पुणे के उम्मीदवारों में ही वह पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में सत्यनारायण मूंदड़ा और अंबरीश वैद्य से पीछे रहते हुए तीसरे नंबर पर रहे थे । लोगों का तर्क है कि पिछली बार जो व्यक्ति रीजनल काउंसिल की अपनी सदस्यता को मुश्किल से बचा पाया हो, वह सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवार के रूप में क्या झंडा गाड़ पायेगा - इसे सहज ही समझा जा सकता है । संजय पवार और शेखर चितले के सामने समस्या यह है कि अभी उन्हें सर्वेश जोशी से भी पीछे समझा/देखा जा रहा है; ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह दोनों अपना अपना प्रचार अभियान किस तरह संयोजित करते और चलाते हैं, ताकि यह कम-अस-कम चुनावी मुकाबले में आते हुए तो नजर आएँ ।