नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन भरने का
अंतिम दिन गुजर जाने के साथ ही स्पष्ट हो गया है कि उक्त पद के लिए दो ही
उम्मीदवारों - अशोक कंतूर और अनूप मित्तल के बीच सीधा चुनावी मुकाबला होगा । चुनावी
मुकाबले की दौड़ शुरू होते समय जितेंद्र गुप्ता भी दौड़ते हुए दिख रहे थे;
हालाँकि उनकी दौड़ को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था - लेकिन कोई यह भी
नहीं मान रहा था कि वह चुपचाप से पतली गली पकड़ कर दौड़ से अलग हो जायेंगे ।
माना/समझा जा रहा था कि जितेंद्र गुप्ता अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार
होने की तैयारी के तहत इस वर्ष उम्मीदवार 'बन' रहे हैं, इसलिए एक उम्मीदवार
के रूप में वह ज्यादा सक्रिय नहीं दिखेंगे - लेकिन उम्मीदवार बने रहेंगे,
ताकि अगले रोटरी वर्ष में वह पहले से बढ़त बना सकें । इसलिए उम्मीदवारों
में दो ही नाम देख कर कई लोगों को हैरानी भी हुई, कुछेक को यह देख कर झटका
भी लगा कि डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप के मामले में जितेंद्र गुप्ता इस तरह का
बचकानापन दिखायेंगे । जितेंद्र गुप्ता की बदकिस्मती यह रही कि लोगों ने
तो उन्हें गंभीरता से तब भी नहीं लिया था, जब वह खुद बहुत गंभीर दिखने का
प्रयास कर रहे थे - लिहाजा जब उन्होंने खुद ही गंभीरता को त्याग दिया, तब
लोग उन्हें लेकर मजाक बना/सुना रहे हैं । ऐसे में, जितेंद्र गुप्ता की
तरफ से चुनावी दौड़ से बाहर होने के लिए अपनी प्रोफेशनल व्यस्तता को कारण
बताते हुए कुछ सफाई दी गई है; लेकिन लोगों को लग रहा है कि जितेंद्र गुप्ता
को चूँकि अपनी उम्मीदवारी के संबंध में कहीं कोई समर्थन नहीं मिला, इसलिए
उन्होंने अगले रोटरी वर्ष का प्लान त्याग दिया है; और अब जब उन्हें अगले
वर्ष उम्मीदवार नहीं बनना है, तो इस वर्ष उम्मीदवार बन कर माहौल बनाने की
कोई जरूरत भी नहीं रह गई - और इसलिए वह चुनावी दौड़ के सीन से चुपचाप खिसक
लिए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दो
उम्मीदवारों के रह जाने से चुनावी मुकाबला इस वर्ष सीधा और दिलचस्प हो गया
है । पता नहीं कि यह मुकाबला सीधा-सीधा हो जाने का नतीजा है या कुछ और बात
है कि अशोक कंतूर के जो समर्थक अभी दो-तीन महीन पहले तक अशोक कंतूर को
अस्सी प्रतिशत वोट मिलने का दावा कर रहे थे, वह अब चुनावी मुकाबले को बराबर
की टक्कर के रूप में देख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि दो-तीन महीने पहले
तक अशोक कंतूर के समर्थक नेता लोगों के बीच कहते/बताते थे कि अनूप मित्तल
और जितेंद्र गुप्ता तो नाहक ही उम्मीदवार बन रहे हैं, क्योंकि अशोक कंतूर
को अस्सी प्रतिशत वोट मिल रहे हैं - किंतु अब जब चुनावी मुकाबले का दिन
नजदीक आता दिख रहा है, तो अशोक कंतूर के समर्थक नेताओं के सुर बदले हुए
हैं, और वह मान रहे हैं कि अनूप मित्तल के लिए भी समर्थन तेजी से बढ़ा है और
मुकाबला बराबरी पर आ टिका है । मजे की बात यह है कि अशोक कंतूर के
समर्थक नेता इस बात का कोई कारण भी नहीं बता रहे हैं कि दो-तीन महीने पहले
अशोक कंतूर को जो अस्सी प्रतिशत वोट मिल रहे थे, वह घट कर पचास प्रतिशत तक
पर क्यों आ गए हैं, और अनूप मित्तल को समर्थन तेजी से क्यों बढ़ा है ? अशोक
कंतूर के समर्थक नेताओं के इस रवैये को देख कर डिस्ट्रिक्ट में लोगों को
लगा है कि अशोक कंतूर समर्थक नेताओं को सच्चाई या तो पता नहीं है, और या
वह जानबूझ कर सच्चाई को अनदेखा कर रहे हैं - और लोगों को भ्रमित करने की
कोशिश कर रहे हैं । इस कोशिश से अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को फायदा तो कुछ
नहीं मिला है, बल्कि समर्थक नेताओं की हवाई बातों ने अशोक कंतूर के लिए
मुसीबत बढ़ाने का काम और किया । दरअसल, अशोक कंतूर अपनी उम्मीदवारी के लिए
समर्थन जुटाने के उद्देश्य से क्लब के प्रेसीडेंट और या प्रेसीडेंट के
नजदीकी वरिष्ठ सदस्य से संपर्क करते तो उन्हें यही सुनने को मिलता कि 'अरे,
आप को तो अस्सी प्रतिशत वोट मिल ही रहे हैं, आप क्यों चिंता कर रहे हैं ?'
इस तरह की बातों ने लेकिन उम्मीदवार के रूप में अशोक कंतूर की चिंता बढ़ा दी है ।
अशोक कंतूर को सबसे तगड़ी चोट अपने ही क्लब में पड़ी है । उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र ने अशोक कंतूर
की उम्मीदवारी का खुलेआम विरोध किया है । दिलचस्प संयोग है कि अशोक कंटूर
उसी वर्ष क्लब के प्रेसीडेंट थे, जिस वर्ष रमेश चंद्र डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
थे - इस नाते अशोक कंतूर को रमेश चंद्र का समर्थन सुनिश्चित ही होना चाहिए था । किंतु 'उस' वर्ष के प्रेसीडेंट्स की किटी में जब अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को समर्थन देने की बात उठी, तो रमेश चंद्र का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने कहा कि अशोक कंतूर
पिछले दो वर्ष से उन्हें अपमानित करने की प्रक्रिया में शामिल हैं, तब
उन्हें ख्याल नहीं आया कि मैं उनका गवर्नर रह चुका हूँ; रमेश चंद्र ने
स्पष्ट कहा कि अशोक कंतूर का रवैया और व्यवहार देखते हुए मेरे लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना संभव नहीं होगा । रमेश चंद्र के ऐलान से हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश में अशोक कंतूर
ने हालाँकि फिर दावा करना शुरू किया कि रमेश चंद्र की डिस्ट्रिक्ट में
हैसियत ही क्या है, और यदि वह समर्थन नहीं करेंगे तो उनका क्या बिगाड़ लेंगे
? अशोक कंतूर ने लोगों के बीच कहा/बताया है कि रमेश चंद्र को तो क्लब में
भी कोई नहीं मानता/पहचानता है, और क्लब के प्रेसीडेंट विशेष माथुर तो रमेश
चंद्र को कोई तवज्जो नहीं देते हैं - इसलिए रमेश चंद्र की नाराजगी से उनकी
उम्मीदवारी को कोई खतरा या डर नहीं है । हो सकता है कि अशोक कंतूर का यह
दावा सही ही हो, और सचमुच रमेश चंद्र की नाराजगी उनकी उम्मीदवारी को कोई
नुकसान न पहुँचाती हो - लेकिन रमेश चंद्र की नाराजगी अशोक कंतूर की लोगों के बीच एक नकारात्मक पहचान व छवि तो बनाती ही है, जो उनकी उम्मीदवारी के लिए घातक साबित हो सकती है । अशोक कंतूर
के कुछेक नजदीकियों और समर्थकों को ही लग रहा है कि अनूप मित्तल की
उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट में हमदर्दी का जो भाव है, तथा
डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स का उन्हें जो समर्थन है, उसके कारण
अशोक कंतूर के लिए चुनावी मुकाबला पहले से ही मुश्किल बना हुआ है; ऐसे में रमेश चंद्र की नाराजगी के चलते अशोक कंतूर की बनने वाली नकारात्मक छवि उन्हें और पीछे धकेलने का ही काम करेगी ।