मेरठ । सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी की पराजय के नतीजे ने उनके नजदीकियों और समर्थकों को ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों को भी हैरान किया है । उनके विरोधियों का ही कहना/बताना है कि वोटिंग के दौरान यह तो दिखने लगा था कि संजीव रस्तोगी को अपने कुछेक नए नए बने 'समर्थकों' की तरफ से धोखा मिल रहा है - लेकिन फिर भी यह उम्मीद किसी को नहीं थी कि वह चुनाव हार जायेंगे । इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि संजीव रस्तोगी की हार को वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जीएस धामा की जीत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों पर नजर रखने वालों का कहना/बताना है कि सीओएल का चुनाव हो भले ही संजीव रस्तोगी और योगेश मोहन गुप्ता के बीच रहा था - लेकिन जीएस धामा इस चुनाव को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर अपनी पकड़ जमाने और 'दिखाने' के अवसर के रूप में देख रहे थे, और इसके लिए उन्होंने बड़ी होशियारी से तैयारी की - इतनी होशियारी से कि किसी को उसकी भनक तक नहीं लगी । यही कारण रहा कि सीओएल के चुनाव में जीएस धामा को तटस्थ देखा/पहचाना जा रहा था । वोटिंग के दौरान कई मौकों पर यह चर्चा सुनाई तो दी कि जीएस धामा तो योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में वोट जुटाने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जीएस धामा ने होशियारी और सावधानी से काम करते हुए चर्चा को ज्यादा मुखर नहीं होने दिया । अब लेकिन चर्चा है कि अशोक गुप्ता की तरफ से संजीव रस्तोगी को जो धोखा मिला, उसके पीछे जीएस धामा के ही प्रयास थे । समझा जाता है कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में समर्थन का भरोसा देकर जीएस धामा ने अशोक गुप्ता के वोट योगेश मोहन गुप्ता को दिलवाए । अपनी संभावित उम्मीदवारी के चक्कर में, विकास गोयल ने भी संजीव रस्तोगी का साथ छोड़ कर अपने वोट योगेश मोहन गुप्ता को दिलवाए ।
बहुत से लोगों के लिए समझना मुश्किल है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जीएस धामा को सबसे तगड़ा झटका योगेश मोहन गुप्ता ने ही दिया है, जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जीएस धामा के उम्मीदवार के रूप में संगीता कुमार को योगेश मोहन गुप्ता ने हराया था - आखिर तब फिर जीएस धामा ने सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता को जितवाने के लिए काम क्यों किया ? डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को जानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि वह बात अब पुरानी हो चुकी है - और जीएस धामा की नजर अब मौजूदा परिदृश्य पर है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पिछले कुछेक वर्षों से जीएस धामा का सिक्का चल रहा है; देखा/पाया गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जिस उम्मीदवार को जीएस धामा का समर्थन मिलता है, वह चुनाव में विजयी होता है । लेकिन इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जीत का 'मुकुट' जीएस धामा को संजीव रस्तोगी के साथ 'शेयर' करना पड़ा । दरअसल डीके शर्मा को संजीव रस्तोगी के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । हालाँकि नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के दौरान डीके शर्मा को रोटरी इंटरनेशनल से 'न्याय' दिलवाने के मामले में भी जीएस धामा ने काफी प्रयास किए थे, और इस वर्ष हुए चुनाव में डीके शर्मा की जीत को सुनिश्चित करने/करवाने में भी जीएस धामा की बड़ी भूमिका थी - लेकिन डीके शर्मा की जीत के मामले में 'नाम' संजीव रस्तोगी का हुआ, जिससे संजीव रस्तोगी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के नेता बनते हुए दिखे । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले अशोक गुप्ता और विकास गोयल को संजीव रस्तोगी के साथ नजदीकी बनाते हुए देखा/पहचाना गया ।
यह सब देख/जान कर ही जीएस धामा को संजीव रस्तोगी की राजनीतिक उड़ान को 'कट टु साइज' करना जरूरी लगा । उन्हें लगा कि सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी यदि जीत गए तो फिर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनका कद और बड़ा हो जायेगा । जीएस धामा को लगा कि योगश मोहन गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की बदनामी है, उसके भरोसे योगेश मोहन गुप्ता से तो वह कभी भी निपट लेंगे - फिलहाल उनके लिए संजीव रस्तोगी के बढ़ते कदमों को रोकना जरूरी है । इसलिए ही, योगेश मोहन गुप्ता के पुराने 'गुनाह' को भूलकर जीएस धामा ने बड़ी चतुराई से एक तरफ तो अशोक गुप्ता तथा विकास गोयल जैसे संजीव रस्तोगी के नए नए बने समर्थकों को तोड़ने का काम किया, और दूसरी तरफ मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, चंदौसी आदि के ऐसे लोगों को योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में वोट देने के लिए राजी किया - जो अलग अलग कारणों से योगेश मोहन गुप्ता से नाराज थे । लगभग चमत्कारिक रूप से योगेश मोहन गुप्ता की जीत को सुनिश्चित करवा कर जीएस धामा ने दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सफलता के ताले की चाबी अभी उन्हीं के पास है । संजीव रस्तोगी की हैरान करने वाली पराजय ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता पर पनौती का दाग और लगा दिया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को कहने का मौका मिला है कि हरि गुप्ता जिसके साथ होते हैं, वह तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद चुनाव हार जाता है । हरि गुप्ता ने दो चुनावों में दीपा खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन किया, फिर वह अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक हुए, और सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी को उनका समर्थन मिला - और नतीजा पहले जैसा ही रहा ।