गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को एक बार फिर आलोक गुप्ता से भिड़ना भारी पड़ गया, और वह अपनी फजीहत करवा बैठे । मजे की बात रही कि इस बार आलोक गुप्ता से भिड़ने के लिए दीपक गुप्ता ने इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद लेने की भी कोशिश की, लेकिन भरत पांड्या से मदद न मिलने के कारण दीपक गुप्ता को दोहरी फजीहत झेलना पड़ी । दीपक गुप्ता ने भरत पांड्या की मदद किस भरोसे लेने की कोशिश की, इसकी कहानी भी खासी दिलचस्प है - इसलिए पहले वह सुन लीजिये, मूल मुद्दे की बात उसके बाद करते हैं : कुछ ही दिन पहले दीपक गुप्ता ने अपने प्रेसीडेंट्स तथा अपनी टीम के कुछेक सदस्यों के साथ जूम पर एक मीटिंग की, जिसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या भी आमंत्रित किए गए थे । उक्त मीटिंग में दीपक गुप्ता ने अपने गवर्नर-वर्ष में हुए कार्यों का ब्यौरा देते हुए अपनी उपलब्धियों को लेकर खूब डींगें मारी और दावा किया कि उनके जैसा काम करने वाला गवर्नर डिस्ट्रिक्ट में न पहले कभी हुआ है, और जैसे जैसे लोग गवर्नर बन रहे हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले तीन-चार वर्ष तो कोई उनके जैसा काम नहीं ही कर पायेगा । मीटिंग में मौजूद प्रेसीडेंट्स तथा दूसरे पदाधिकारियों ने दीपक गुप्ता की 'पतंगबाजी' को तो झेल लिया, लेकिन उनका माथा तब चकराया - जब इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या ने भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता के कार्यों की जोरशोर से तारीफ की । भरत पांड्या के मुँह से दीपक गुप्ता के कार्यों की तारीफ सुनकर मीटिंग में मौजूद प्रेसीडेंट्स तथा दूसरे पदाधिकारी भौंचक रह गए - उन्हें आश्चर्य हुआ कि दीपक गुप्ता की टीम के सदस्य होने के बावजूद उन्हें तो दीपक गुप्ता के किसी उल्लेखनीय या प्रशंसनीय काम की जानकारी है नहीं, तब फिर दूर बैठे इंटरनेशनल डायरेक्टर साहेब को उनके कौन से काम नजर आ गए, जिनके आधार पर वह दीपक गुप्ता की इतने जोरशोर से तारीफ कर रहे हैं ?
तमाम माथापच्ची करने के बाद भी दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को जब अपने इस आश्चर्य का जबाव नहीं समझ में आया, तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों से इस बारे में बात की । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें 'ज्ञान' दिया कि रोटरी की बहुत सारी बातें तो आप पेट्स तथा दूसरे ट्रेनिंग सेमिनार्स में जानते/सीखते/समझते हैं, लेकिन रोटरी की दो बातें आप अपने अनुभव से सीखते हैं - एक 'गाल बजाना' और दूसरी 'पीठ थपथपाना' । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें बताया कि रोटरी में बहुत से लोग 'गाल बजाने' की कला में बड़े निपुण होते हैं; वह काम ज्यादा नहीं करेंगे, लेकिन गायेंगे ज्यादा । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग तो उनकी तारीफ करते नहीं हैं, इसलिए बेचारे को अपनी तारीफ खुद ही करना पड़ती है । दूसरी तरफ, रोटरी में हर बड़े पदाधिकारी को 'पीठ थपथपाने' के अलिखित नियम का पालन करना होता है । वह अच्छी तरह जानता है कि जिसने उसे अपने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया है, वह महानिकम्मा है - लेकिन उसकी 'पदीय मजबूरी' होती है कि वह यह कह नहीं सकता है । इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के नाते भरत पांड्या की यह 'पदीय मजबूरी' है कि वह जिस भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के कार्यक्रम में जाएँ, उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करें - दीपक गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में शामिल हुए तो उन्हें दीपक गुप्ता की प्रशंसा वाले शब्द कहने ही थे - सुनने वालों को उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, और उनकी 'पदीय मजबूरी' को समझना चाहिए । दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को तो माजरा समझ में आ गया, लेकिन लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के प्रशंसाभरे शब्दों को दीपक गुप्ता ने गंभीरता से ले लिया और कुछ ज्यादा जोश में आ गए - और इसके चलते ही उन्होंने इस रिपोर्ट के मूल मुद्दे की रचना कर दी और अपनी फजीहत करवा ली ।
अब मूल मुद्दे पर आते हैं : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने खास तौर पर अपनी टीम के सदस्यों और आम तौर पर डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों के लिए 3 मई को एक मोटीवेशनल सेमीनार मीटिंग का आयोजन किया । आयोजन का निमंत्रण पत्र देख कर दीपक गुप्ता भड़क गए और उन्होंने आलोक गुप्ता को झट से पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनकी अनुमति लिए बिना किए जा रहे उक्त सेमीनार को करने पर आपत्ति की और उसे रद्द करने के लिए कहा । दीपक गुप्ता का कहना रहा कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, और रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार उनकी अनुमति लिए बिना डिस्ट्रिक्ट में कोई कार्यक्रम नहीं हो सकता है । दीपक गुप्ता ने उक्त पत्र काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सभी सदस्यों को तो भेजा ही, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या को भी भेजा । यूँ, यह इतना संगीन मामला नहीं था कि इसे लेकर दीपक गुप्ता को भरत पांड्या की 'अदालत' का दरवाजा खटखटाना पड़ता - लेकिन संभवतः वह अपनी मीटिंग में भरत पांड्या द्वारा 'पदीय मजबूरी' में की गई तारीफ के झाँसे में आ गए और उसे सचमुच की तारीफ समझ बैठे । दीपक गुप्ता को लगा कि भरत पांड्या ने जब उनकी इतनी तारीफ की है, तो उनकी शिकायत को जरूर ही गंभीरता से लेंगे और आलोक गुप्ता के 'कान उमेठेंगे' - और तब आलोक गुप्ता उक्त सेमीनार मीटिंग को स्थगित करने के लिए मजबूर होंगे । दीपक गुप्ता के लिए फजीहत की बात लेकिन यह रही कि उनकी शिकायत को न आलोक गुप्ता ने कोई तवज्जो दी और न भरत पांड्या ने उसका कोई संज्ञान लिया - तथा उक्त सेमीनार मीटिंग सदस्यों की अच्छी खासी उपस्थिति के साथ संपन्न हुई । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता का उक्त पत्र और उससे पहले अपनी मीटिंग में अपनी खुद की तारीफ करना दरअसल उनके फ्रस्टेशन का इजहार है । चूँकि कोई दूसरा तो उनकी तारीफ कर नहीं रहा है, और आलोक गुप्ता भी रोटरी के आधिकारिक आयोजनों के अलावा अपने दूसरे कार्यक्रमों में उन्हें 'घास' नहीं डाल रहे हैं, इसलिए वह बौखलाए हुए हैं । इस फ्रस्टेशन और बौखलाहट में वह भूल गए हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में पिछले रोटरी वर्ष में उन्होंने भी ऐसे बहुत से कार्यक्रम किए थे, जिनके लिए उन्होंने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से कोई अनुमति नहीं ली थी । यह कोई आपत्ति की बात है भी नहीं । इसीलिए, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद लेने की कोशिश करते हुए दीपक गुप्ता ने आलोक गुप्ता से भिड़ने की जो कोशिश की, उसमें उन्हें दोहरी फजीहत झेलना पड़ी है ।
तमाम माथापच्ची करने के बाद भी दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को जब अपने इस आश्चर्य का जबाव नहीं समझ में आया, तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों से इस बारे में बात की । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें 'ज्ञान' दिया कि रोटरी की बहुत सारी बातें तो आप पेट्स तथा दूसरे ट्रेनिंग सेमिनार्स में जानते/सीखते/समझते हैं, लेकिन रोटरी की दो बातें आप अपने अनुभव से सीखते हैं - एक 'गाल बजाना' और दूसरी 'पीठ थपथपाना' । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें बताया कि रोटरी में बहुत से लोग 'गाल बजाने' की कला में बड़े निपुण होते हैं; वह काम ज्यादा नहीं करेंगे, लेकिन गायेंगे ज्यादा । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग तो उनकी तारीफ करते नहीं हैं, इसलिए बेचारे को अपनी तारीफ खुद ही करना पड़ती है । दूसरी तरफ, रोटरी में हर बड़े पदाधिकारी को 'पीठ थपथपाने' के अलिखित नियम का पालन करना होता है । वह अच्छी तरह जानता है कि जिसने उसे अपने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया है, वह महानिकम्मा है - लेकिन उसकी 'पदीय मजबूरी' होती है कि वह यह कह नहीं सकता है । इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के नाते भरत पांड्या की यह 'पदीय मजबूरी' है कि वह जिस भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के कार्यक्रम में जाएँ, उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करें - दीपक गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में शामिल हुए तो उन्हें दीपक गुप्ता की प्रशंसा वाले शब्द कहने ही थे - सुनने वालों को उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, और उनकी 'पदीय मजबूरी' को समझना चाहिए । दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को तो माजरा समझ में आ गया, लेकिन लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के प्रशंसाभरे शब्दों को दीपक गुप्ता ने गंभीरता से ले लिया और कुछ ज्यादा जोश में आ गए - और इसके चलते ही उन्होंने इस रिपोर्ट के मूल मुद्दे की रचना कर दी और अपनी फजीहत करवा ली ।
अब मूल मुद्दे पर आते हैं : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने खास तौर पर अपनी टीम के सदस्यों और आम तौर पर डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों के लिए 3 मई को एक मोटीवेशनल सेमीनार मीटिंग का आयोजन किया । आयोजन का निमंत्रण पत्र देख कर दीपक गुप्ता भड़क गए और उन्होंने आलोक गुप्ता को झट से पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनकी अनुमति लिए बिना किए जा रहे उक्त सेमीनार को करने पर आपत्ति की और उसे रद्द करने के लिए कहा । दीपक गुप्ता का कहना रहा कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, और रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार उनकी अनुमति लिए बिना डिस्ट्रिक्ट में कोई कार्यक्रम नहीं हो सकता है । दीपक गुप्ता ने उक्त पत्र काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सभी सदस्यों को तो भेजा ही, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या को भी भेजा । यूँ, यह इतना संगीन मामला नहीं था कि इसे लेकर दीपक गुप्ता को भरत पांड्या की 'अदालत' का दरवाजा खटखटाना पड़ता - लेकिन संभवतः वह अपनी मीटिंग में भरत पांड्या द्वारा 'पदीय मजबूरी' में की गई तारीफ के झाँसे में आ गए और उसे सचमुच की तारीफ समझ बैठे । दीपक गुप्ता को लगा कि भरत पांड्या ने जब उनकी इतनी तारीफ की है, तो उनकी शिकायत को जरूर ही गंभीरता से लेंगे और आलोक गुप्ता के 'कान उमेठेंगे' - और तब आलोक गुप्ता उक्त सेमीनार मीटिंग को स्थगित करने के लिए मजबूर होंगे । दीपक गुप्ता के लिए फजीहत की बात लेकिन यह रही कि उनकी शिकायत को न आलोक गुप्ता ने कोई तवज्जो दी और न भरत पांड्या ने उसका कोई संज्ञान लिया - तथा उक्त सेमीनार मीटिंग सदस्यों की अच्छी खासी उपस्थिति के साथ संपन्न हुई । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता का उक्त पत्र और उससे पहले अपनी मीटिंग में अपनी खुद की तारीफ करना दरअसल उनके फ्रस्टेशन का इजहार है । चूँकि कोई दूसरा तो उनकी तारीफ कर नहीं रहा है, और आलोक गुप्ता भी रोटरी के आधिकारिक आयोजनों के अलावा अपने दूसरे कार्यक्रमों में उन्हें 'घास' नहीं डाल रहे हैं, इसलिए वह बौखलाए हुए हैं । इस फ्रस्टेशन और बौखलाहट में वह भूल गए हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में पिछले रोटरी वर्ष में उन्होंने भी ऐसे बहुत से कार्यक्रम किए थे, जिनके लिए उन्होंने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से कोई अनुमति नहीं ली थी । यह कोई आपत्ति की बात है भी नहीं । इसीलिए, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद लेने की कोशिश करते हुए दीपक गुप्ता ने आलोक गुप्ता से भिड़ने की जो कोशिश की, उसमें उन्हें दोहरी फजीहत झेलना पड़ी है ।