नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की रोटरी ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट बने रहने की अंतिम समय तक की गईं कोशिशें आखिरकार विफल रहीं, और उनके लिए खासे अपमानजनक रहे घटनाचक्र में उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया । उल्लेखनीय बात यह रही कि रोटरी ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों के चुनाव की तैयारी के बीच में ही बोर्ड मीटिंग में नए पदाधिकारियों का चयन कर लिया गया, जिसमें बाकी पदों के पदाधिकारी या तो यथावत रहे और या उनकी स्थिति अदली-बदली गई - लेकिन विनोद बंसल की प्रेसीडेंट पद से छुट्टी कर दी गई । रोटरी ब्लड बैंक के नए प्रेसीडेंट पूर्व गवर्नर सुरेश जैन बने हैं । विनोद बंसल ने सारे घटनाक्रम के प्रति नाराजगी और असंतोष प्रकट करते हुए बड़े दुखी मन से एक पत्र लिखा/भेजा है - जिससे लगता है कि रोटरी ब्लड बैंक में पिछले कई महीनों से चल रही उठापटक इस सत्ता परिवर्तन के बावजूद समाप्त नहीं होगी, तथा अभी आगे और तमाशे देखने को मिलेंगे । इसके संकेत विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा के तेवर देख/सुन कर भी मिले । संजीव राय मेहरा ने उक्त मीटिंग को असंवैधानिक बताया और आरोप लगाया कि जल्दबाजी में बुलाई गई उक्त मीटिंग में न नियमों की परवाह की गई और न उचित व्यवस्था का पालन किया गया । संजीव राय मेहरा ने उचित 'फोरम' पर 'असंवैधानिक रूप से आयोजित हुई' इस मीटिंग के मुद्दे को उठाने की बात भी कही । कई लोगों को लगता है कि विनोद बंसल अब आगे की 'लड़ाई' संजीव राय मेहरा के सहारे लड़ेंगे ।
रोटरी ब्लड बैंक में पिछले कुछेक महीने से चल रहा झमेला विनोद बंसल के लिए खासा फजीहत भरा रहा है । उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों को भी लगता है कि विनोद बंसल ने मामले को सही ढंग से हैंडल नहीं किया, और अपनी अकड़ तथा अपने अहंकार में अपनी मुसीबतों को बढ़ाते ही गए । विनोद बंसल दरअसल उस स्थिति का शिकार हो गए, जिसके लिए अंग्रेजी में एक जुमला कहा जाता है - 'एलिफैंट इन द रूम' । इसका प्रयोग ऐसी समस्या के लिए किया जाता है जो वास्तव में दिखाई तो नहीं देती है, लेकिन होती बहुत बड़ी है और आपके ठीक बगल में होती है । ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल के दरवाजे पर इस समस्या ने वास्तव में उस समय दस्तक दी, जब ब्लड बैंक के सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल और ट्रेजरर संजय खन्ना ने कुछेक बड़े बिलों पर हैरानी व्यक्त करते हुए विनोद बंसल से ब्लड बैंक के कामकाज में पारदर्शिता रखने/बरतने के लिए कहा । विनोद बंसल ने इस बात को बड़े हलके रूप में लिया; वह यह समझने/पहचानने में बुरी तरह चूक गए कि यह बात उनके लिए बड़ी फजीहत की नींव रखने वाली बन जाएगी । उनके शुभचिंतकों के साथ-साथ उनके विरोधियों को भी लगता है कि ब्लड बैंक के कामकाज में पारदर्शिता रखने/बरतने की रमेश अग्रवाल और संजय खन्ना की बात को विनोद बंसल ने यदि गंभीरता से लिया होता, और व्यावहारिक रवैया अपनाया होता - तो न तो उन्हें फजीहत का शिकार होना पड़ता और न प्रेसीडेंट का पद गँवाना पड़ता ।
ब्लड बैंक के कामकाज में झमेलेबाजी के आरोपों से शुरू हुई समस्या ने जब विनोद बंसल के बगल में जगह बनाना शुरू की, विनोद बंसल ने सिर्फ तब ही उसकी अनदेखी नहीं की - समस्या ने जब उन्हें चारों तरफ से घेरना शुरू किया, तब भी वह अकड़ और अहंकार की गिरफ्त में फँसे रह कर उससे अनजान बने रहे; और अपने व्यवहार से अपने समर्थकों को भी अपने से दूर करते गए । ब्लड बैंक के बोर्ड सदस्यों में जो लोग विनोद बंसल को घेर रहे थे, उनके तौर-तरीकों से नई टीम में ट्रेजरर बने आशीष घोष अकेले लोहा ले रहे थे - और इस कारण से आशीष घोष को विनोद बंसल के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा था । लेकिन एक मीटिंग में आशीष घोष के एक सुझाव पर विनोद बंसल इतनी बुरी तरह से भड़क गए कि फिर उसके बाद आशीष घोष को उनके समर्थन से दूर हटते देखा गया । विनोद बंसल के बड़े नजदीकी के रूप में देखे/पहचाने जाते रहे डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता पहले से ही उनके विरोधियों के साथ जा मिले थे । अपने व्यवहार और रवैये के चलते विनोद बंसल ब्लड बैंक के बोर्ड सदस्यों के बीच पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे; उसके बावजूद विनोद बंसल प्रेसीडेंट पद की कुर्सी पर बने रहने की उम्मीद रखे रहे । उनके कई शुभचिंतकों ने उन्हें सुझाव दिया था कि उन्हें स्वयं प्रेसीडेंट पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और गरिमापूर्ण तरीके से ब्लड बैंक से विदा ले लेना चाहिए - लेकिन विनोद बंसल को लगता रहा कि तमाम फजीहत और विरोध के बावजूद वह प्रेसीडेंट पद बचा लेंगे । दरअसल ब्लड बैंक के बोर्ड के कई सदस्यों का रवैया कई मौकों पर बड़ा ढुलमुल सा रहा, जिसके चलते कई बार कुछेक फैसले टलते से रहे - इसे देखते हुए विनोद बंसल को विश्वास रहा कि बोर्ड के सदस्य कभी फैसला कर ही नहीं पायेंगे, और इस वजह से उनकी प्रेसीडेंट की कुर्सी बची रहेगी । लेकिन उनका यह विश्वास दिवास्वप्न साबित हुआ और तमाम कोशिशों के बावजूद अंततः उन्हें रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से हाथ धोना पड़ा ।
मीटिंग में और मीटिंग के बाद संजीव राय मेहरा द्वारा दिखाए गए रवैये से लेकिन लगता है कि ब्लड बैंक का झगड़ा अभी और चलेगा; लोगों को लग रहा है कि संजीव राय मेहरा के जरिये विनोद बंसल उक्त मीटिंग को 'नल एंड वॉयड' घोषित करवा कर प्रेसीडेंट पद फिर से पाने की कोशिश करेंगे ।