Saturday, February 29, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में समय से ड्यूज जमा न हो पाने के कारण 15 से 20 वोटों के नुकसान की चपेट में आ चुके पंकज बिजल्वान अपनी हार को सुनिश्चित मानने/समझने के बावजूद चुनावी मैदान में दरअसल इसलिए बने हुए हैं, ताकि वह मैदान छोड़ते हुए न 'दिखें' - और अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी की संभावना बनी रहे 

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार पंकज बिजल्वान की तरफ से चुनावी प्रक्रिया को ईमानदारी से पूरा करने/करवाने के लिए ऑब्जर्वर की जो माँग की गई थी, वह उल्टी उन्हें ही भारी पड़ गई है - और अब वह उड़ क्षण को कोस रहे हैं, जब उन्होंने ऑब्जर्वर की माँग की थी । उल्लेखनीय है कि पंकज बिजल्वान की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग की तो इसलिए गई थी, ताकि प्रतिद्वंद्वी खेमा सत्ता में होने के कारण कोई चुनावी बेईमानी न कर सके - लेकिन ऑब्जर्वर के रूप में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना ने काम शुरू करते ही पंकज बिजल्वान की तरफ से होने वाली 'बेईमानी' को पकड़ लिया, जिसके चलते पंकज बिजल्वान के पक्के समझे जाने वाले 15 से 20 वोट घट गए हैं । वोटों की कमी से जूझ रहे पंकज बिजल्वान के लिए यह जोर का झटका है । इसके बाद पंकज बिजल्वान के नजदीकियों और समर्थकों ने ऑब्जर्वर विनोद खन्ना को ही कोसना शुरू कर दिया है । विनोद खन्ना ने दरअसल क्लब्स के ड्यूज जमा होने की स्थिति की जाँच-पड़ताल की, तो कुछेक क्लब्स के ड्यूज तय समयाविधि के बाद जमा होने की सच्चाई पता चली - नियमानुसार जिन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं मिल सकता था । नियमों का पालन करते हुए विनोद खन्ना ने उन क्लब्स को वोटिंग का अधिकार देने से इंकार कर दिया । उक्त क्लब्स पंकज बिजल्वान के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, और इस तरह पंकज बिजल्वान को उतने वोटों का तो सीधा सीधा नुकसान हो गया है । इस फैसले पर बाद में बबाल न हो, इसकी ऐहतियात बरतते हुए विनोद खन्ना ने लायंस इंटरनेशनल कार्यालय के लीगल डिपार्टमेंट से सलाह करके ही उक्त फैसला लिया है । इस कारण पंकज बिजल्वान और उनके समर्थकों के पास रोने और सिर पीटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है । उनका रोना है कि ऑब्जर्वर के रूप में विनोद खन्ना की नियुक्ति उनकी उम्मीदवारी के लिए विनाशकारी साबित हुई है ।
मजे की बात यह है कि इस विनाश के लिए खुद पंकज बिजल्वान और उनके सलाहकार ही जिम्मेदार हैं । पता नहीं किस अक्ल'बंद' की सलाह रही कि 'न्यूट्रल' ऑब्जर्वर की माँग करते हुए पंकज बिजल्वान ने अपनी पसंद के ऑब्जर्वर के नाम भी सुझा दिए गए । पंकज बिजल्वान की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग करते हुए लायंस इंटरनेशनल को जो आवेदन दिया गया, उसमें एपी सिंह, संगीता जटिया और राजु मनवानी में से किसी को ऑब्जर्वर के रूप में नियुक्त करने का अनुरोध किया गया था । अब यह कॉमनसेंस की बात है कि आप जिन लोगों के नाम दे रहे हैं, उन्हें 'न्यूट्रल' भला कैसे माना जा सकता है ? पंकज बिजल्वान के अक्ल'बंद' सलाहकार को पता नहीं क्यों, यह सामान्य सी बात समझ नहीं आई । इसका नतीजा हुआ कि लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने उनके द्वारा सुझाये गए नामों को रिजेक्ट करके विनोद खन्ना को ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया । विनोद खन्ना को अंदाजा है कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर खासी तनातनी है, इसलिए वह सावधानी के साथ रिकॉर्ड देख रहे हैं और फैसले ले रहे हैं । रिकॉर्ड के मामले में पंकज बिजल्वान का मामला बहुत ही कमजोर है । उनके समर्थकों में बड़बोले किस्म के और बकवास करने में एक्सपर्ट लोगों की तो बहुत भीड़ है, लेकिन गंभीरता से स्थितियों को समझने तथा होशियारी से उन्हें क्रियान्वित करने की कोशिश करने वाले लोगों का टोटा है । जो कुछ गंभीर व होशियार किस्म के लोग उनकी तरफ हैं भी, वह जब पंकज बिजल्वान को सड़कछाप किस्म के लोगों से घिरा देखते हैं - तो चुप रहने में ही अपनी भलाई देखते हैं; पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को इसी का नुकसान हो रहा है । ऑब्जर्वर वाले मामले में ठीक यही हुआ है, और यह मामला सिर्फ एक उदाहरण है ।
दूसरी तरफ, रजनीश गोयल के अभियान में बड़ी सुनियोजित रणनीति और तैयारी दिखाई देती है । ऐसा लगता है कि जैसे वहाँ हर काम बड़ा ठोक-बजा कर किया जाता है, और सभी के अनुभवों का फायदा लेते हुए सभी को बराबर से जिम्मेदारी तथा तवज्जो देते हुए अभियान चलाया जा  रहा है । इसी का नतीजा है कि रजनीश गोयल का अभियान संगठित रूप लेता हुआ दिखाई दिया है, और उनके समर्थक खुल कर उनके अभियान में संलग्न नजर आते हैं । इस का फायदा रजनीश गोयल को यह मिला है कि जो लोग बीच में रहते हैं, और आखिरी समय पर फैसला करते हैं, उन्होंने रजनीश गोयल के पक्ष में फैसला पहले से ही कर लिया है - और रजनीश गोयल एक बड़ी जीत की तरफ बढ़ते नजर आ रहे हैं । रजनीश गोयल का पलड़ा हालाँकि हमेशा ही भारी था, लेकिन उनके भारीपन का जो अंतर पहले कम दिख रहा था - अब वह खासा बढ़ा हुआ नजर आ रहा है । पंकज बिजल्वान के नजदीकी समर्थकों का ही कहना/बताना है कि उन्हें और पंकज बिजल्वान को अपनी पराजय सुनिश्चित ही लग रही है; अब तो वह चुनावी मैदान में सिर्फ इसलिए बने हुए हैं ताकि उनकी हार का अंतर बहुत ज्यादा न हो और वह मैदान छोड़ते हुए न 'दिखें' - जिससे कि अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी की संभावना बनी रहे । वास्तव में, इस समय एक उम्मीदवार के रूप में पंकज बिजल्वान की जो कवायद है, वह दरअसल अगले लायन वर्ष में अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बनाये रखने की कवायद है ।