नई दिल्ली । रोटी को बराबर बराबर बाँटने को लेकर हुई दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर द्वारा दोनों को ही ठग लेने की मशहूर कहानी को दोहराते हुए शशांक अग्रवाल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन हथिया लिया है । मजे की बात यह हुई है कि चेयरमैन पद के लिए शशांक अग्रवाल का नाम दूर दूर तक चर्चा में नहीं था । पिछले तीन/चार दिनों में शशांक अग्रवाल को छोड़ कर बाकी सदस्यों में छह छह सदस्यों के दो खेमे तो बन गए थे - और दोनों खेमे के लोग अपनी अपनी तरह से शशांक अग्रवाल को अपनी अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहे थे; जिसके चलते यह संभावना तो बन रही थी कि शशांक अग्रवाल को अबकी बार कोई न कोई पद तो मिल ही जायेगा, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि शशांक अग्रवाल इतने बड़े 'हार्ड बारगेनर' निकलेंगे कि चेयरमैन का पद जुगाड़ लेंगे । चेयरमैन पद के लिए ताल ठोक रहे दूसरे उम्मीदवार बेचारे ताकते रह गए और चेयरमैन पद का ताज शशांक अग्रवाल के माथे पर जैसे अपने आप आ सजा । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की राजनीति में रतन सिंह यादव को किस्मत ने लगातार दूसरी बार धोखा दिया और बैठते बैठते चेयरमैन पद की कुर्सी एक बार फिर उनके नीचे से निकल गई ।
रतन सिंह यादव ने इस बार चेयरमैन पद के लिए पक्की फील्डिंग सजाई थी, और पिछली बार जैसे धोखे का शिकार होने से बचने की पूरी व्यवस्था की थी । वह छह सदस्य थे और सातवें के लिए शशांक अग्रवाल से बात कर रहे थे । शशांक अग्रवाल के दोनों हाथों में लड्डू थे । दरअसल दूसरा खेमा भी उन्हें अपनी तरफ खींच रहा था । शशांक अग्रवाल ने मौका ताड़ा और चेयरमैन पद की माँग कर दी । रतन सिंह यादव पर उनके 'साथियों' का दबाव पड़ा कि सत्ता में आना है, तो शशांक अग्रवाल की माँग मान लेना चाहिए । रतन सिंह यादव ने चेयरमैन पद की कुर्सी पर बैठने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन एक बार फिर उनकी तैयारी धरी रह गई और जिन शशांक अग्रवाल को 'किंग मेकर' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह 'किंग' बन गए । रतन सिंह यादव को निकासा चेयरमैन पद से ही संतोष करना पड़ा ।
श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता की तिकड़ी ने पॉवर ग्रुप में तो लगातार दूसरी बार अपनी जगह बना ली है, लेकिन पद उन्हें एक ही मिला । पिछले वर्ष इन तीनों सदस्यों के पास पद थे, लेकिन इस वर्ष सिर्फ पंकज गुप्ता को ही पद मिल सका है और वह ट्रेजरर पद पर जीते हैं । देखा जाये तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इस बार जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, वह इस तिकड़ी के कारण ही हुआ है - पिछले वर्ष नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो झगड़ा/झंझट रहा, उसमें यह तिकड़ी एक पक्ष थी; और इसी तिकड़ी की एकजुटता ने इस वर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए आधार तैयार किया । इस नाते से उम्मीद की जा रही थी कि इस तिकड़ी के तीनों नहीं, तो दो सदस्यों को तो पद जरूर ही मिल जायेंगे । रतन सिंह यादव के जब तक चेयरमैन बनने की बात थी, तब तक अजय सिंघल को कोई पद मिलने की बात नहीं थी; किंतु जब चेयरमैन पद शशांक अग्रवाल को मिलना तय हुआ, तब माना गया कि रतन सिंह यादव कोई पद नहीं लेंगे और अजय सिंघल को पद मिलेगा । ट्रेजरर पद के साथ, निकासा चेयरमैन का पद तिकड़ी खेमे को मिलने की संभावना थी, लेकिन जिसे रतन सिंह यादव ने हथिया लिया । रतन सिंह यादव ने घोषणा की हुई थी कि वह तो चेयरमैन ही बनेंगे, कोई और पद उनके 'कद' के अनुरूप नहीं है । लेकिन निकासा चेयरमैन का पद उन्होंने जिस तरह से ले लिया है, उसे देख कर लोगों ने तिकड़ी को ठगी का शिकार होता हुआ पाया है ।
रतन सिंह यादव ने इस बार चेयरमैन पद के लिए पक्की फील्डिंग सजाई थी, और पिछली बार जैसे धोखे का शिकार होने से बचने की पूरी व्यवस्था की थी । वह छह सदस्य थे और सातवें के लिए शशांक अग्रवाल से बात कर रहे थे । शशांक अग्रवाल के दोनों हाथों में लड्डू थे । दरअसल दूसरा खेमा भी उन्हें अपनी तरफ खींच रहा था । शशांक अग्रवाल ने मौका ताड़ा और चेयरमैन पद की माँग कर दी । रतन सिंह यादव पर उनके 'साथियों' का दबाव पड़ा कि सत्ता में आना है, तो शशांक अग्रवाल की माँग मान लेना चाहिए । रतन सिंह यादव ने चेयरमैन पद की कुर्सी पर बैठने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन एक बार फिर उनकी तैयारी धरी रह गई और जिन शशांक अग्रवाल को 'किंग मेकर' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह 'किंग' बन गए । रतन सिंह यादव को निकासा चेयरमैन पद से ही संतोष करना पड़ा ।
श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता की तिकड़ी ने पॉवर ग्रुप में तो लगातार दूसरी बार अपनी जगह बना ली है, लेकिन पद उन्हें एक ही मिला । पिछले वर्ष इन तीनों सदस्यों के पास पद थे, लेकिन इस वर्ष सिर्फ पंकज गुप्ता को ही पद मिल सका है और वह ट्रेजरर पद पर जीते हैं । देखा जाये तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इस बार जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, वह इस तिकड़ी के कारण ही हुआ है - पिछले वर्ष नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो झगड़ा/झंझट रहा, उसमें यह तिकड़ी एक पक्ष थी; और इसी तिकड़ी की एकजुटता ने इस वर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए आधार तैयार किया । इस नाते से उम्मीद की जा रही थी कि इस तिकड़ी के तीनों नहीं, तो दो सदस्यों को तो पद जरूर ही मिल जायेंगे । रतन सिंह यादव के जब तक चेयरमैन बनने की बात थी, तब तक अजय सिंघल को कोई पद मिलने की बात नहीं थी; किंतु जब चेयरमैन पद शशांक अग्रवाल को मिलना तय हुआ, तब माना गया कि रतन सिंह यादव कोई पद नहीं लेंगे और अजय सिंघल को पद मिलेगा । ट्रेजरर पद के साथ, निकासा चेयरमैन का पद तिकड़ी खेमे को मिलने की संभावना थी, लेकिन जिसे रतन सिंह यादव ने हथिया लिया । रतन सिंह यादव ने घोषणा की हुई थी कि वह तो चेयरमैन ही बनेंगे, कोई और पद उनके 'कद' के अनुरूप नहीं है । लेकिन निकासा चेयरमैन का पद उन्होंने जिस तरह से ले लिया है, उसे देख कर लोगों ने तिकड़ी को ठगी का शिकार होता हुआ पाया है ।