Tuesday, September 17, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा दिलाकर विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बनाया

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को भरोसा दिलाने का जो अभियान छेड़ा है, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं में खासी गर्मी पैदा हुई है और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के दिलचस्प बनने के संकेत मिले हैं । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी की चर्चा तो पिछले काफी समय से है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा था । विक्रम शर्मा दरअसल पहले भी एक बार उम्मीदवार हो चुके हैं, लेकिन उस बार अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने जिस तरह से हैंडल किया, उसके कारण उनके बारे में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यही धारणा बनी कि विक्रम शर्मा उम्मीदवार तो बन सकते हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का 'काम' करना उनके लिए मुश्किल होता है । इसी धारणा के चलते इस बार जब एकबार फिर उनकी उम्मीदवारी की चर्चा चली तो उनकी उम्मीदवारी को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया । यहाँ तक कि जिस खेमे से विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी प्रस्तुत होनी है, उस खेमे के नेताओं तक को उनकी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा नहीं हुआ । इसके चलते खेमे के कुछेक नेताओं ने ओंकार सिंह को उम्मीदवार बनाने की संभावनाओं को टटोलने/पहचानने का काम भी शुरू कर दिया । खेमे के कुछेक नेताओं की 'इस' सक्रियता ने लगता है कि विक्रम शर्मा को सावधान किया और वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर गंभीर हुए ।
विक्रम शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, विक्रम शर्मा ने पहला काम तो खेमे के नेताओं को यह भरोसा देने/दिलाने का किया है कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर वास्तव में गंभीर हैं और उन सभी 'जिम्मेदारियों' को समझ रहे हैं तथा उन्हें निभाने के लिए तैयार हैं जो किसी भी उम्मीदवार को निभानी ही होती हैं । पिछली बार उम्मीदवार के रूप में उनका जो रवैया रहा था, उसके बारे में भी विक्रम शर्मा ने लोगों को सफाई दी कि उस बार वह वास्तव में उम्मीदवार नहीं थे, वह तो एक कॉम्बीनेशन को पूरा करने की गरज से उम्मीदवार 'बने' थे । चूँकि वह वास्तव में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उन्हें कुछ करने की जरूरत भी नहीं थी - और उन्होंने कुछ किया भी नहीं । उस समय जो कॉम्बीनेशन बना था, उसे बनाने वालों को चूँकि सारा मामला पता था - इसलिए उम्मीदवार के रूप में उनका कुछ न करना कहीं कोई मुद्दा बना ही नहीं था । अपने इस स्पष्टीकरण के जरिये विक्रम शर्मा ने पहले 'अपने' लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि उनके बारे में जो यह धारणा बनी है कि उम्मीदवार के रूप में वह कुछ करेंगे ही नहीं, यह पूरी तरह से बेबुनियाद है और इसे उनके विरोधी फैला रहे हैं तथा हवा दे रहे हैं । विक्रम शर्मा के नजदीकियों का ही कहना है कि विक्रम शर्मा ने जिन-जिन लोगों से यह बातें कीं, उन सभी ने विक्रम शर्मा को सलाह दी है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच फैली/बैठी इस धारणा को ख़त्म करने के लिए पूरी तरह से जुट जाना चाहिये ।
विक्रम शर्मा ने अपने लोगों को जिस 'बात' का भरोसा दिलाने का प्रयास किया है, उस बात को लोगों के बीच वह कब और कैसे प्रमाणित कर पायेंगे - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर हुआ है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के भरोसे जो नेता लोग डिस्ट्रिक्ट में राजनीति करना चाहते हैं उनमें जोश भर गया है । उन्हें उम्मीद हो चली है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के सहारे उन्हें डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में अपने-अपने निशाने लगाने का मौका मिल जायेगा । नेताओं में जो जोश पैदा हुआ है, उसे देख कर विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में हौंसला तो बढ़ा है - लेकिन नेताओं का यह जोश उनके लिए एक चुनौती भी है । दरअसल इस जोश के पैदा होने के चलते नेता लोग विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने से ज्यादा अपने अपने हिसाब-किताब बराबर करने में जुट गए हैं - किसी को विजय शिरोहा से निपटना है, तो किसी के पास दीपक टुटेजा को ठिकाने लगाने का काम है ।
विक्रम शर्मा के नजदीकियों का मानना और कहना है कि नेताओं के इसी तरह के रवैये के चलते पिछली बार सुरेश जिंदल को हार का मुँह देखना पड़ा था । सुरेश जिंदल और उनके नजदीकियों ने तो हार का नतीजा मिलने के बाद खुल कर आरोप लगाये थे कि उन्हें तो उनके अपनों ने हरा दिया है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के मामले में हुआ यही था कि जो लोग उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में थे, उन्होंने उनका चुनाव छोड़ कर राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने का जिम्मा ले लिया था और सुरेश जिंदल की चुनावी तैयारी से हाथ खींच लिया था । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने बाद में इस बात को समझा और स्वीकारा भी कि विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा ने बड़ी होशियारी से राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के जाल में फँसा कर कई क्लब्स के वोट अपने पक्ष में जुटा लिए थे । विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा द्धारा की गई होशियारी तो उन्हें बाद में तब समझ में आई जब पहले वह सुरेश जिंदल का चुनाव हार गए और फिर मल्टीपल काउंसिल में राकेश त्रेहन के लिए भी उन्हें कुछ नहीं मिला ।
विक्रम शर्मा के लिए चुनौती की बात यही है कि उनकी उम्मीदवारी के भरोसे उनके नेताओं में जो जोश पैदा हुआ है, वह जोश उनकी उम्मीदवारी के लिए ही काम करने में इस्तेमाल कैसे हो ? दरअसल विक्रम शर्मा और उनके नजदीकी यह मान/समझ रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में सफल होने के लिए उन्हें दूसरे ग्रुप के लोगों का भी समर्थन चाहिये होगा; दूसरे ग्रुप के कुछेक लोगों से उनके अच्छे संबंध हैं भी - उन्हें उम्मीद है कि उक्त संबंध उनके काम आयेंगे । इसके लिए लेकिन जरूरी है कि उनका और उनके ग्रुप के नेताओं का सारा ध्यान उनकी उम्मीदवारी पर हो । विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का मानना और कहना है कि उनके ग्रुप के नेताओं में किसी ने विजय शिरोहा को निशाने पर ले लिया, और किसी ने दीपक टुटेजा को - तो उनके चुनाव का भी कहीं वैसा ही हाल न हो, जैसा कि सुरेश जिंदल के चुनाव का हुआ । विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का दावा तो है कि वह इस चुनौती से निपट लेंगे । उनका तर्क है कि विक्रम शर्मा ने प्रयास किया तो जल्दी से अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा पैदा करने में तो उन्होंने काफी हद तक कामयाबी प्राप्त कर ही ली है । वह अपने प्रयासों को और संगठित करेंगे तो अपने ग्रुप के नेताओं को भी लाइन पर ले ही आयेंगे । विक्रम शर्मा की सक्रियता और उनकी सक्रियता के भरोसे जमे उनके नजदीकियों के विश्वास ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनावी समर को फ़िलहाल दिलचस्प तो बना ही दिया है ।