Thursday, May 30, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच 'खिचड़ी पकने' से डरे रतन सिंह यादव ने नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा पर डोरे डालने के लिए 'अपने' स्टडी सर्किल को 'मोहरा' बनाया

नई दिल्ली । रतन सिंह यादव ने 'अपने' स्टडी सर्किल में पहले राजेंद्र अरोड़ा और फिर नितिन कँवर को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करके दूसरों के साथ-साथ अपने नजदीकियों को भी चौंकाया है । दूसरे लोगों के साथ-साथ उनके नजदीकी भी उनकी इस 'कार्रवाई' को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की उनकी 'रणनीति' के रूप में तो देख/पहचान रहे हैं; लेकिन उनके लिए हैरानी की बात यह है कि जो रतन सिंह यादव हर समय राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर की बुराई करते रहते थे, वह अब इन दोनों के नजदीक होने की कोशिश आखिर किस 'मुँह' से कर रहे हैं । हालाँकि यह सच है कि चुनावी राजनीति में लंबे समय तक दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ नहीं चलती हैं; लेकिन सिद्धांतों और आदर्शों की बात करते रहने वाले रतन सिंह यादव इतनी जल्दी से 'रंग बदलने' का काम करेंगे, यह उनके नजदीकियों ने भी नहीं सोचा था । उल्लेखनीय है कि करीब तीन महीने पहले रतन सिंह यादव ने जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की तैयारी की थी, तब उन्होंने राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को अपनी 'तैयारी' से बाहर रखा था - और यह कहते/बताते हुए बाहर रखा था कि पिछले टर्म में इनकी बेईमानियों व बदतमीजियों के चलते प्रोफेशन के लोगों के बीच इनकी बड़ी बदनामी है, और यह यदि काउंसिल की सत्ता में रहे तो काउंसिल की भी बदनामी होगी । रीजनल काउंसिल की सत्ता हथियाने के लिए चले खेल में रतन सिंह यादव की बदकिस्मती यह रही कि जो मालाएँ उनके और सत्ता में उनके सहयोगी/साथी बनने वाले लोगों के गले में पड़ने के लिए मँगवाई गईं थी, वह उनके विरोधियों के गले की शोभा बन गईं - और बदनामी के चलते जिन राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को रतन सिंह यादव ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सत्ता से बाहर करने/रखने की तैयारी की थी, वह सत्ता के हिस्सेदार बन गए ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता पाने के लिए इस वर्ष जो खेल हुआ, रतन सिंह यादव को उसमें दोहरी चोट पड़ी है । चेयरमैन तो वह नहीं ही बन पाए; जिस ग्रुप में चेयरमैन पद के लिए उनके नाम की पर्ची निकली थी, उस ग्रुप के लोगों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बाकी के दो वर्षों में रतन सिंह यादव के नाम की पर्ची नहीं शामिल की जाएगी - एक बार जब उनका नाम निकल गया है, तो बार-बार उनके नाम की पर्ची नहीं शामिल होगी; पर्ची में नाम निकलने के बाद भी वह चेयरमैन नहीं बन सके, तो यह उनकी समस्या है - ग्रुप के दूसरे लोग उनकी असफलता की 'सजा' क्यों भुगतेंगे ? इससे, रतन सिंह यादव को यह समझ में आ गया है कि अभी तक वह जिस ग्रुप के हिस्सा हैं, उस ग्रुप में चेयरमैन का उम्मीदवार होने का मौका उन्हें नहीं मिलेगा - और इसलिए उन्हें अन्य लोगों का समर्थन जुटाने का प्रयास करना पड़ेगा । राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को बारी बारी से 'अपने' स्टडी सर्किल के आयोजनों में स्पीकर के रूप में बुलाये जाने की रतन सिंह यादव की कार्रवाई को उनके उसी 'प्रयास' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । रतन सिंह यादव की इस कार्रवाई को लेकिन उनके नजदीकी ही आत्मघाती कदम के रूप में देख रहे हैं । नजदीकियों का मानना/कहना है कि राजेंद्र अरोड़ा और या नितिन कँवर कभी भी और किसी भी हालत में रतन सिंह यादव का चेयरमैन पद के लिए समर्थन नहीं करेंगे । रतन सिंह यादव के नजदीकियों का रोना/रट्टा यह है कि इतनी स्पष्ट सी 'राजनीतिक' बात भी रतन सिंह यादव को समझ में क्यों नहीं आ रही है ?
रतन सिंह यादव के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना/बताना है कि नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच बढ़ती दिख रही नजदीकी ने रतन सिंह यादव को ज्यादा परेशान किया हुआ है; और उस 'परेशानी' में ही उन्होंने नितिन कँवर व राजेंद्र अरोड़ा पर डोरे डालने का काम शुरू किया है । रतन सिंह यादव को डर है कि नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच जो खिचड़ी पक रही है, और इन्होंने जिस तरह से चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के साथ 'कुछ पास/ कुछ दूर' का जो रिश्ता बनाया हुआ है - उसके चलते जो भी राजनीतिक समीकरण बनेंगे, उसमें रतन सिंह यादव के लिए तो कोई रोल बचेगा ही नहीं । कुछेक लोगों को लगता है कि रतन सिंह यादव अब नितिन कँवर के जरिये अविनाश गुप्ता को भी साधने की कोशिश कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष रतन सिंह यादव से चेयरमैन बनने का जो मौका छिना, रतन सिंह यादव ने उसके लिए अविनाश गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया था और उन्हें खूब कोसा था - जिसके चलते उनके और अविनाश गुप्ता के बीच छत्तीस का संबंध बन गया है । रतन सिंह यादव के नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव को अब लग रहा है कि जो हुआ सो हुआ, अब उन्हें 'आगे' देखना चाहिए और लोगों के साथ बिगड़े संबंधों को सुधारना चाहिए । राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर को 'अपने' स्टडी सर्किल में आमंत्रित करने से उन्होंने इसकी शुरुआत की है । उनकी यह शुरुआत लेकिन अधिकतर लोगों को, यहाँ तक कि उनके नजदीकियों को भी उनकी उल्टी चाल के रूप में नजर आ रही है । पिछले दिनों, गौरव गर्ग के फ्लॉप धरना प्रोग्राम में भी रतन सिंह यादव ने जबर्दस्ती 'फूफा' बनने की कोशिश की थी, जिसमें उन्हें फजीहत ही झेलना पड़ी थी । अपने प्रयासों के कारण रतन सिंह यादव जिस तरह से मुसीबतों से निकलने की बजाये मुसीबतों में और गहरे फँस जा रहे हैं, उससे लगता है कि रतन सिंह यादव के लिए 'आगे' का रास्ता आसान नहीं है ।