Monday, May 6, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की कार्रवाईयों से चौतरफा मुश्किलों में घिरे आरके शाह के लिए सबसे बड़ी मुश्किल की बात यह हो गई है कि उनके साथ किसी को जैसे कोई हमदर्दी ही नहीं है और हर कोई अपने अपने तरीके से उन्हें इस्तेमाल कर रहा है

नई दिल्ली । आरके शाह की यह स्थिति देख/जान कर उनके समर्थक व शुभचिंतक खासे निराश और परेशान हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की कार्रवाईयों और हरकतों की आलोचना करने वाले लोगों के बीच भी आरके शाह के प्रति हमदर्दी पैदा नहीं हो पा रही है, और अधिकतर लोगों को लग रहा है कि आरके शाह के साथ जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है और वह यही डिजर्व करते हैं । दरअसल वीके हंस की कार्रवाईयों और हरकतों के चलते आरके शाह को जबर्दस्ती चुनाव का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और उन्हें अनाप-शनाप पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं । हर कोई मान रहा है कि वीके हंस पता नहीं आरके शाह के साथ कौन सी दुश्मनी निकाल रहे हैं, जिसके चलते उन्होंने आरके शाह पर चुनाव जबर्दस्ती थोप दिया है, और लगातार यह कहते सुने गए हैं कि वह आरके शाह को गवर्नर बनने नहीं देंगे । वीके हंस के रवैये से आरके शाह को कोई राजनीतिक नुकसान तो होता हुआ नहीं दिख रहा है, लेकिन चुनाव उनके लिए भारी मुसीबत जरूर बन गया है । आरके शाह को खासी दौड़-भाग करना पड़ रही है, और खूब पैसे खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । आरके शाह और उनके नजदीकियों को यह देख/जान कर और ज्यादा बुरा लग रहा है कि वह वीके हंस द्वारा जिस मुसीबत में फँसा दिए गए हैं, डिस्ट्रिक्ट के लोग उसका फायदा उठाने में लगे हैं और मनमाने तरीके से उनसे पैसे खर्च करवा रहे हैं - और किसी को उनसे हमदर्दी तक नहीं हो रही है ।
कुछेक लोग तो यह तक कहते हुए सुने जा रहे हैं कि आरके शाह के साथ जोहो रहा है, वह ठीक ही हो रहा है - वह यही डिजर्व करते हैं । ऐसा मानने और कहने वाले लोग दरअसल पिछले वर्ष की उनकी कार्रवाई को याद कर रहे हैं, जब उन्होंने सर्वसहमति से उम्मीदवार चुने गए राजीव अग्रवाल की राह में रोड़े डालने का काम किया था, और सर्वसम्मत फैसले के विरोध में खड़े हो गए थे । नियमानुसार हालाँकि आरके शाह ने कुछ भी गलत नहीं किया था; उन्होंने जो कुछ भी किया था वह लायंस इंटरनेशनल, मल्टीपल और डिस्ट्रिक्ट के नियमों के तहत ही किया था; ठीक उसी तरह से इस बार दिल्ली और हरियाणा से उनके सामने जो उम्मीदवारी आई है, वह भी लायंस इंटरनेशनल, मल्टीपल और डिस्ट्रिक्ट के नियमों का पालन करते हुए ही आई है । आरके शाह और उनके नजदीकियों की शिकायत यह है कि दिल्ली और हरियाणा से जो उम्मीदवारी आई हैं, वह डिस्ट्रिक्ट में सर्वसहमति से बने फैसले का उल्लंघन करती हैं । यह आरोप सच है । लोगों का कहना है कि लेकिन यही काम तो खुद आरके शाह ने पिछले वर्ष किया था, इसलिए अब उन्हें ऐसी शिकायत करने का नैतिक हक नहीं है । यह तो ऐसी ही बात हुई कि वही काम जब आरके शाह करें, तो रासलीला - दूसरे लोग करें, तो करेक्टर ढीला । लोगों का कहना है कि इस बार जो उनके साथ हो रहा है, ठीक वही काम तो पिछले ही वर्ष उन्होंने राजीव अग्रवाल के साथ किया था । पिछले वर्ष, सर्वसम्मति से राजीव अग्रवाल के पक्ष में हुए फैसले के विरोध में खड़े होने की उन्होंने जब जिद पकड़ ली थी, तब कई लोगों ने उन्हें समझाया था कि डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाए रखने के लिए उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए और सर्वसम्मति से लिए गए फैसले का सम्मान करना चाहिए । आरके शाह ने लेकिन किसी की नहीं सुनी थी; और अपनी उम्मीदवारी उन्होंने तभी वापस ली थी, जब उन्हें अगली बार समर्थन देने के लिए सर्वसम्मत फैसला किया गया था । 
यह आरके शाह की बदकिस्मती है कि उनकी चुनावी राह को मुश्किल बनाने वाले उम्मीदवारों को मनाने के लिए नेता लोग उनके साथ 'सौदेबाजी' करने की कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हैं - जैसी सौदेबाजी पिछले वर्ष राजीव अग्रवाल की राह आसान बनाने के लिए उनके साथ कर ली गई थी । इससे ऐसा भी लगता है कि नेता लोग आरके शाह की उम्मीदवारी के साथ तो हैं, लेकिन वह आरके शाह की राह आसान बनाने के लिए उत्सुक व उत्साहित नहीं हैं । आरके शाह की यह हालत देख/जान कर उनके नजदीकियों को लग रहा है कि चौतरफा मुश्किलों में घिरे आरके शाह के लिए सबसे बड़ी मुश्किल की बात यह हो गई है कि उनके साथ किसी को जैसे कोई हमदर्दी ही नहीं है और हर कोई अपने अपने तरीके से उन्हें इस्तेमाल कर रहा है ।