Saturday, May 4, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में खासी फजीहत के बाद अंततः डीआरएफसी तय हुआ और सुशील गुप्ता के हस्तक्षेप तथा अशोक घोष की नर्म/गर्म कोशिशों के बावजूद बड़ी मुश्किल से संजय खन्ना के नाम पर सहमति बनी

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन (डीआरएफसी) पद को लेकर रंजन  ढींगरा व आशीष घोष के समर्थकों के बीच छिड़ी और कई दिनों से जारी लड़ाई का फायदा संजय खन्ना को मिला - और लंबी कश्मकश के बाद आखिरकार संजय खन्ना को डीआरएफसी घोषित कर दिया गया है । मजे की खास बात हालाँकि यह रही कि यूँ तो यह फैसला तीन-चार दिन पहले हो गया था, लेकिन फिर भी इसे छिपा कर रखा गया और जिन लोगों को इसकी भनक लग भी गई थी - उन्हें भी कन्फ्यूज करने की कोशिश की गई; ताकि कहीं कोई फैसले में अड़ंगा न डाल/डलवा दे । उल्लेखनीय है कि डीआरएफसी को लेकर इस बार जितनी राजनीति हुई, इससे पहले शायद ही कभी और कहीं हुई होगी । एक बार को तो लगने लगा था कि डिस्ट्रिक्ट में डीआरएफसी पर फैसला हो ही नहीं पायेगा, और डिस्ट्रिक्ट बिना डीआरएफसी के ही रहेगा । पिछले दिनों ही विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डीआरएफसी के लिए एक महत्त्वपूर्ण ट्रेनिंग प्रोग्राम हुआ, जिसमें डिस्ट्रिक्ट 3011 का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया और जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट की खासी बदनामी भी हुई । डिस्ट्रिक्ट 3011 एक महत्त्वपूर्ण डिस्ट्रिक्ट है । डिस्ट्रिक्ट ने रोटरी को चार इंटरनेशनल डायरेक्टर दिए हैं; डिस्ट्रिक्ट के दो लोग इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की प्रक्रिया के अंतिम चरण तक पहुँचे, जिनमें से एक सुशील गुप्ता तो कामयाब भी हुए; इस कारण से रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच डिस्ट्रिक्ट की एक विशेष पहचान है । इस विशेष पहचान के चलते डीआरएफसी पर फैसला न कर पाने के लिए रोटरी में डिस्ट्रिक्ट की फजीहत हो रही थी ।
डीआरएफसी के लिए रंजन ढींगरा और आशीष घोष के नाम थे - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुरेश भसीन और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेट अनूप मित्तल का समर्थन रंजन ढींगरा को था, जबकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी संजीव राय मेहरा ने आशीष घोष को समर्थन दिया हुआ था । दोनों पक्ष अपने अपने समर्थन-रवैये पर अड़े हुए थे, जिस कारण फैसला नहीं हो पा रहा था । लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट की फजीहत होना शुरू हुई, और बड़े नेताओं का दबाव पड़ना शुरू हुआ तो दोनों पक्ष हिले-डुले तो जरूर, लेकिन उससे मामला सुलझने की बजाये उलझ और गया । संजीव राय मेहरा ने नया नाम राजेश बत्रा का दिया, तो सुरेश भसीन व अनूप मित्तल की तरफ से दीपक तलवार, संजय खन्ना, अमित जैन के विकल्प दिए गए । मामला एक बार फिर वहीं फँस गया, जहाँ से निकलने के लिए नए नाम दिए गए थे । मामले में अपनी टाँग अड़ाते हुए विनोद बंसल ने विनय भाटिया का नाम बढ़ाया/सुझाया, लेकिन उनके सुझाव पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया । मामले को फिर से फँसता देख सुशील गुप्ता सक्रिय हुए और उन्होंने अशोक घोष को जिम्मेदारी सौंपी कि वह डीआरएफसी पर फैसला करवाएँ । अशोक घोष ने मामले में दिलचस्पी ली, और कुछ नर्म व कुछ गर्म रवैया दिखाते हुए फैसला करवाया । अशोक घोष यह भी समझ रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग ऐसे हैं जो डीआरएफसी पर फैसला नहीं होने देना चाहते हैं और इसलिए जिस भी नाम पर सहमति बनेगी, 'इसे'या 'उसे' भड़का कर फैसले को लटकवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक महत्त्वाकांक्षी लोग ऐसे हैं, जिनका संजय खन्ना से खासा विरोध है । अशोक घोष ने इसीलिए सहमति बन जाने के बाद भी फैसले की जानकारी को छिपा कर रखने पर जोर दिया ।उन्होंने संबंधित चारों लोगों को इसके लिए राजी किया कि जब तक फैसला रिकॉर्ड पर न चला जाये, किसी अन्य को फैसले की भनक भी न लगने दी जाए । कुछेक लोगों को हालाँकि भनक लग गई थी, उनके द्वारा जानकारी कन्फर्म करने की कोशिशों को लेकिन होशियारी के साथ टालमटोल करके कन्फ्यूज कर दिया गया । कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद ही संजय खन्ना के डीआरएफसी बनने की जानकारी दी गई है ।