नई दिल्ली । अतुल गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए फील्डिंग तो अच्छी सजाई है, लेकिन दूसरे कुछेक लोगों को लगता है कि उनके व्यवहार/रवैये से नाराज रहने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्य उनकी बजाये केमिशा सोनी का खेल जमा सकते हैं । इन दोनों को पछाड़ कर आगे रहने के लिए अब्राहम बाबु की पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के 'आदमी' होने की छवि से निकलने की जोरदार कोशिश ने लेकिन इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है । कंपनी सेक्रेटरीज इंस्टीट्यूट की तरह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में भी 'सरकारी' सदस्यों के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में भाग लेने की आशंकाएँ और चर्चाएँ काफी हैं, लेकिन साथ-साथ दावा भी सुना/कहा जा रहा है कि मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ ने 'सरकारी' सदस्यों की 'नस' दबा/दबवा कर वैसा कुछ न होने देने की व्यवस्था की हुई है । इस बारे में खास बात यह है कि इंस्टीट्यूट की अगली काउंसिल में चूँकि वही सरकारी सदस्य नोमीनेट हो गए हैं, जो मौजूदा काउंसिल में हैं - इसलिए वह प्रफुल्ल छाजेड़ को और प्रफुल्ल छाजेड़ उन्हें 'जानते' हैं; इसलिए विश्वास किया जा रहा है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में सरकारी सदस्य वैसी हरकत नहीं करेंगे, जैसी हरकत कंपनी सेक्रेटरीज इंस्टीट्यूट में सरकारी सदस्यों ने की है । प्रफुल्ल छाजेड़ की कुछ पर्दे के सामने की और कुछ पर्दे के पीछे की सक्रियता ने भी इस बार के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को 'गंभीर' रूप दिया हुआ है ।
सरकारी सदस्यों के समर्थन के बूते, दरअसल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में राजेश शर्मा, चरनजोत सिंह नंदा और अनुज गोयल ने वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने के दावे किए हैं । इस दावे के जरिये वास्तव में इन्होंने सेंट्रल काउंसिल के चुने हुए सदस्यों पर दबाव बनाने और उनका समर्थन जुटाने का प्रयास किया । इन तीनों को उम्मीद रही कि सरकारी सदस्यों के समर्थन का दावा करेंगे, तो सेंट्रल काउंसिल के चुने हुए सदस्य इनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेंगे और यह वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ में शामिल हो जायेंगे । लेकिन कोई इनके झाँसे में आता हुआ नजर तो नहीं आ रहा है । वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अब्राहम बाबु की उम्मीदवारी का ज्यादा शोर रहा है; हालाँकि इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के उनके समर्थन होने की चर्चा ने उस शोर को जल्दी ही दबाव में ले लिया । अब्राहम बाबु और उनके समर्थकों ने भाँप लिया कि उत्तम अग्रवाल का समर्थन उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाये नुकसान पहुँचाने का ही काम करेगा; और इसलिए पिछले कुछेक दिनों में उन्होंने उत्तम अग्रवाल की 'छाया' से बचने तथा दूर 'दिखने' का भरसक प्रयास किया है । दरअसल काउंसिल सदस्यों के बीच उत्तम अग्रवाल की जैसी बदनामी है, उसे देख/पहचान कर ही अब्राहम बाबु और उनके समर्थकों को इस बात की जरूरत महसूस हुई कि यदि उन्हें सचमुच वाइस प्रेसीडेंट बनना है - तो उन्हें उत्तम अग्रवाल का उम्मीदवार 'दिखने' से बचना होगा । अब्राहम बाबु की इस कोशिश ने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी के लिए मुकाबले को मुश्किल बना दिया है ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अब्राहम बाबु के साथ-साथ अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी की उम्मीदवारी को ही गंभीरता से लिया/देखा जा रहा है - और इन दोनों ने ही उत्तम अग्रवाल के विरोधी काउंसिल सदस्यों का समर्थन जुटाने पर जोर दिया है । इस जोर के बहाने वास्तव में इन्होंने मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ और उनके नजदीकियों व समर्थकों का समर्थन जुटाने का प्रयास किया है । अतुल गुप्ता के मुकाबले केमिशा सोनी का विवादों से चूँकि कम रिश्ता रहा है, इसलिए कुछेक लोगों को केमिशा सोनी का पलड़ा भारी दिखता है; लेकिन अतुल गुप्ता और उनके नजदीकियों को काउंसिल सदस्यों की पुरुषवादी सोच पर भरोसा है और उम्मीद है कि काउंसिल सदस्य एक महिला को (वाइस) प्रेसीडेंट चुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होंगे और यही बात केमिशा सोनी के मुकाबले उन्हें आगे रखेगी । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों को याद होगा भी कि भावना दोषी हर तरह से समर्थ होने के और अपना एक ऑरा रखने के बावजूद - सिर्फ महिला होने के कारण - (वाइस) प्रेसीडेंट नहीं बन सकीं । यह देखना सचमुच विडंबनापूर्ण होगा कि केमिशा सोनी के मामले में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट का चुनावी इतिहास क्या पहले जैसे फूहड़ तरीके से एक फिर अपने को दोहरायेगा ? इस बार के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को लेकर होने वाली उठापटक से परिचित लोगों का हालाँकि यह भी कहना है कि कम उम्मीदवार होने के कारण हो सकता है कि चुनावी नतीजा सभी को चौंका ही दे - और फिलहाल चुनावी दौड़ में आगे 'दिखने' वाले अब्राहम बाबु, अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी ताकते ही रह जाएँ !