देहरादून । राजेश गुप्ता ने अपने आपको 'वादाखिलाफी' का शिकार बता कर लोगों की सहानुभूति पाने तथा कुछेक जगह लायन सदस्यों को गिफ्ट देकर समर्थन/वोट पाने की जो कोशिश की है, उसका उन्हें कोई सार्थक और अनुकूल नतीजे मिलने के संकेत मिलते नहीं दिखे हैं । राजेश गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट के जो लोग उनके समर्थक हो भी सकते हैं, उन्हें भी यह विश्वास नहीं हो रहा है कि राजेश गुप्ता अंततः उम्मीदवार बने रहेंगे । उनके संभावित समर्थकों का ही मानना और कहना है कि राजेश गुप्ता चुनाव का दिन आते आते कभी भी पलटी मार कर मुकेश गोयल के 'साथ' जा सकते हैं । दरअसल राजेश गुप्ता ने पिछले तीन वर्षों में इतनी बार पाले बदले हैं, कि कोई भी उन पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल के साथ रहे हैं, लेकिन तीन वर्ष पहले सभी को हैरान करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी रेखा गुप्ता को मुकेश गोयल के उम्मीदवार विनय मित्तल के खिलाफ उम्मीदवार बना दिया । रेखा गुप्ता बुरी तरह चुनाव हारीं, तो राजेश गुप्ता ने एक बार फिर पलटी मारी और मुकेश गोयल के साथ आ गए थे । मुकेश गोयल के भरोसे पिछले वर्ष राजेश गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हो गए, लेकिन जब उन्हें लगा कि अश्वनी काम्बोज से चुनाव लड़ना उनके बस की बात नहीं है और वह चुनाव हार जायेंगे, तब उन्होंने अपनी उम्मीदवारी का समर्पण कर देने में ही अपनी भलाई देखी । अब राजेश गुप्ता का रोना यह है कि पिछले वर्ष मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज ने अगले वर्ष (यानि इस वर्ष) उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने का वायदा किया था । उन्होंने इसका 'सुबूत' भी दिखाया है । किंतु सवाल तो यह है कि राजेश गुप्ता जब एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय ही नहीं थे - तब मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज उनका समर्थन करके अपना वायदा कैसे निभाते ?
राजेश गुप्ता ने अपने एक वाट्सऐप मैसेज में उक्त वायदे का सुबूत देते हुए पिछले सात/आठ महीने लोगों से और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से दूर रहने की बात भी स्वीकार की है । ऐसे में 'वादाखिलाफी' की बात बेमानी हो जाती है । राजेश गुप्ता क्या यह उम्मीद कर रहे थे कि वह खुद तो डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और डिस्ट्रिक्ट के लोगों से दूर रहेंगे - और मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज उनकी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनायेंगे ? गौरतलब है कि गौरव गर्ग की उम्मीदवारी की आहट नबंवर माह में सुनाई दी थी; राजेश गुप्ता यदि एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहले से सक्रिय रहते तो बहुत संभव था कि गौरव गर्ग उम्मीदवार बनने का साहस न कर पाते । इसके बाद भी, मुकेश गोयल तो अभी करीब एक महीने पहले तक राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन राजेश गुप्ता ने ही उन्हें साफ इंकार कर दिया था । इन तथ्यों को देखते हुए राजेश गुप्ता का 'वादाखिलाफी' का रोना लोगों को नाटक ही लगता है । राजेश गुप्ता का कहना है कि एक महीने पहले मुकेश गोयल के लाख कहने पर भी वह उम्मीदवार बनने के लिए इसलिए राजी नहीं हुए थे, क्योंकि विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने को तैयार नहीं थे । कोई इस भले आदमी से पूछे कि विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल तो अभी भी इनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं कर रहे हैं, तो अब यह क्यों उम्मीदवार बन गए हैं ? इस तरह, राजेश गुप्ता ने तीन वर्षों में पाँचवीं पलटी मारी और मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार के खिलाफ एक बार फिर उम्मीदवार हो गए हैं ।
राजेश गुप्ता ने अपने एक वाट्सऐप मैसेज में एक बड़ा जेनुइन सवाल उठाया है; और वह सवाल यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर क्या मध्यम वर्ग के किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं है ? और क्या मुझे आगे बढ़ने का अधिकार नहीं है ? राजेश गुप्ता यह सवाल दूसरों से करने की बजाये खुद अपने आपसे करेंगे और ईमानदारी से जबाव सोचेंगे तो जबाव पा लेंगे । लायन राजनीति में - खुद डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की राजनीति में ज्यादातर मध्यम वर्ग के व्यक्ति ही गवर्नर बने हैं; इस वर्ष भी मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही गवर्नर बनेगा; लेकिन ऐसा व्यक्ति इस वर्ष क्या - कभी भी गवर्नर नहीं बन सकेगा, जो शुरू के महीनों में तो सोता रहे और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच नजर न आये तथा डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल न हो, और चुनाव से दो महीने पहले आकर कहे कि मुझे गवर्नर बनाओ ! राजेश गुप्ता को इतनी मामूली सी बात तो समझना ही चाहिए कि ऐसे व्यक्ति के लिए तो गवर्नर पद तक की राह और भी मुश्किल है जो किसी 'चोर गवर्नर' के कहने में आकर अपने पुराने साथियों के साथ ही राजनीतिक धोखाधड़ी करने को तैयार हो जाये और उसके बाद भी पाले बदलता रहे । दरअसल राजेश गुप्ता के इसी 'राजनीतिक करेक्टर' को ध्यान में रखते हुए डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया जा पा रहा है । 'वादाखिलाफी' के नाम पर सहानुभूति जुटाने की राजेश गुप्ता की कोशिश तो फेल हुई ही है; उनके लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि कुछेक लोगों को गिफ्ट बाँट कर अपनी उम्मीदवारी को विश्वसनीयता दिलवाने का उन्होंने जो प्रयास किया, उसका भी कोई असर पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है । हर किसी को लग रहा है कि उम्मीदवार के नाम पर खर्च की गई रकम राजेश गुप्ता ने जिस तरह पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज से बसूल ली थी, ऐसे ही इस वर्ष भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर वह गौरव गर्ग से भी वसूल लेंगे । राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त न होने के कारण ही राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के संभावित साथी/समर्थक नेता उनसे दूरी बनाये हुए हैं, जिसके चलते राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी की चाल और पस्त पड़ती नजर आ रही है ।