Wednesday, September 23, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल रीजन में छोटी ब्रांचेज तथा छोटे शहरों व कस्बों के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के स्वाभिमान को जगा कर और उन्हें अपनी ताकत का अहसास कराने के जरिए समर्थन जुटाने के नितीश अग्रवाल के फार्मूले ने सेंट्रल काउंसिल के चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बनाया

आबु रोड । नितीश अग्रवाल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु छोटी ब्रांचेज व छोटे शहरों/कस्बों के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर ध्यान देने की जो रणनीति अपनाई है, उसने आम तौर से रीजन के और खास तौर से राजस्थान के चुनावी समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है । मजे की बात यह है कि रीजन की चुनावी राजनीति का आकलन करने वाले लोग नितीश अग्रवाल को एक कमजोर उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं । उनकी उम्मीदवारी की कमजोरी का एक बड़ा कारण उनका एक छोटी जगह का होना माना/बताया जा रहा है । रीजन के चुनावी खिलाड़ियों का कहना है कि नितीश अग्रवाल जिस आबु रोड नामक कस्बे के हैं, वहाँ गिने-चुने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं; और यह तथ्य उनके आधार को कमजोर बनाता है - तथा एक कमजोर आधार पर मजबूत 'इमारत' को खड़ा करना मुश्किल ही है । नितीश अग्रवाल लेकिन अपने इस कमजोर आधार को ही अपनी मजबूती बनाने का प्रयास करते सुने/देखे गए हैं । विभिन्न ब्रांचेज के पदाधिकारियों की बातों पर यदि यकीन करें तो नितीश अग्रवाल ने छोटी जगह के होने के तथ्य का हवाला देते हुए छोटी ब्रांचेज तथा छोटे शहरों व कस्बों के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच यह तर्क देते हुए पैठ बनाने का प्रयास किया है कि उन्हें बड़े शहरों के उम्मीदवारों के जरिए इस्तेमाल होने से बचना चाहिए और अपने बीच ही लीडरशिप पैदा करनी चाहिए । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में जिस तरह कई उम्मीदवार बिग फोर व बड़ी फर्म का डर दिखा कर अपनी राजनीतिक कामयाबी की इबारत लिखते हैं, ठीक उसी तर्ज पर नितीश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कबायद शुरू की है । नितीश अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि इस कबायद का उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है ।
नितीश अग्रवाल ने यह तर्क देते हुए इंस्टीट्यूट के चुनावी माहौल में खासी गर्मी पैदा कर दी है कि रीजन की राजनीति जयपुर, इंदौर, कानपुर, गाजियाबाद जैसे बड़े शहरों में ही केंद्रित क्यों होनी चाहिए; और यह भी कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में छोटे शहरों व कस्बों को भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल इंडिया रीजन में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए जयपुर में चार, गाजियाबाद में तीन, इंदौर में दो उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर रहे हैं । लोगों के बीच नितीश अग्रवाल का कहना है कि रीजन में 40 से अधिक ब्रांचेज हैं, लेकिन सेंट्रल काउंसिल में रीजन के प्रतिनिधित्व की बात होती है, तो दो-तीन ब्रांचेज ही मौके कब्जा लेती हैं । सेंट्रल काउंसिल में रीजन की पाँच सीटों में अभी जयपुर और गाजियाबाद ने दो दो तथा एक सीट इंदौर ने कब्जा रखी है । नितीश अग्रवाल ने छोटी ब्रांचेज के लोगों के बीच सवाल उठाया है कि छोटी ब्रांचेज के लोग अपनी ताकत क्यों नहीं पहचानते हैं, और सेंट्रल काउंसिल में अपना प्रतिनिधि क्यों नहीं भेजते हैं ? विभिन्न ब्रांच के लोगों से जो सुनने को मिला है, उसके अनुसार नितीश अग्रवाल ने यह कहते हुए लोगों को आगाह किया है कि रीजन के चुनावी नेता कभी नहीं चाहेंगे कि छोटी ब्रांचेज के लोगों के बीच विश्वासपूर्ण संबंध बने और उनके बीच एकजुटता स्थापित हो; रीजन के चुनावी नेता छोटी ब्रांचेज को आपस में लड़वा कर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं, और आगे भी करते रहेंगे - जिसे समझने की और जिससे सावधान रहने की जरूरत है । 
नितीश अग्रवाल ने छोटी ब्रांचेज के लोगों के बीच 'अपने प्रतिनिधित्व' की बात उठाकर जो दाँव चला है, उसके कामयाब होने की संभावना इस तथ्य में देखी/पहचानी जा रही है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में नितीश अग्रवाल का पहले से ही छोटी ब्रांच के पदाधिकारियों के साथ सक्रियता भरा विश्वास का संबंध है । समझा जाता है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में नितीश अग्रवाल ने छोटी ब्रांचेज के लोगों के साथ जो दोस्ताना संबंध बनाए थे, उन्हीं संबंधों के सहारे वह अब सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में उनका स्वाभिमान जगाने का प्रयास कर रहे हैं । रीजन के चुनावी नेताओं का मानना और कहना है कि नितीश अग्रवाल का यह प्रयास यदि सफल हो गया, तो बड़े शहरों के उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी ही फिर जायेगा । उल्लेखनीय है कि जयपुर के चार, गाजियाबाद के तीन और इंदौर के दो उम्मीदवार अपनी अपनी जीत के लिए छोटी ब्रांचेज व छोटे शहरों व कस्बों में समर्थन जुटाने की जो तिकड़में लगा रहे हैं - उन तिकड़मों की सफलता नितीश अग्रवाल के प्रयास की सफलता पर निर्भर करेगी; और यदि नितीश अग्रवाल के प्रयास कामयाब हो गए, तो जयपुर, गाजियाबाद, इंदौर के उम्मीदवारों के सारे समीकरण उलट पलट जा सकते हैं ।
कुछेक लोगों को नितीश अग्रवाल के प्रयास दूर की कौड़ी लगते हैं; लेकिन अन्य कई लोगों का मानना और कहना है कि एक बहुत छोटी जगह से होने के बावजूद नितीश अग्रवाल यदि रीजनल काउंसिल का चुनाव जीत सकते हैं, तो सेंट्रल काउंसिल का चुनाव क्यों नहीं जीत पायेंगे ? यह ठीक है कि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव एक बड़ा चुनाव होता है, और इसमें ज्यादा समर्थन चाहिए होता है; लेकिन ध्यान देने की बात यह भी तो है कि नितीश अग्रवाल ने जब रीजनल काउंसिल का चुनाव जीता था, तब उनके सामने पहचान का संकट था, और रीजन में उन्हें कोई जानता नहीं था; अब लेकिन उनके सामने पहचान का कोई संकट नहीं है, और रीजनल काउंसिल के चेयरमैन रह चुकने के कारण वह रीजन की प्रत्येक ब्रांच में जाने/पहचाने जाते हैं । चुनावी राजनीति के पंडितों का मानना और कहना है कि छोटी ब्रांचेज तथा छोटे शहरों व कस्बों के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के स्वाभिमान को जगा कर और उन्हें अपनी ताकत का अहसास कराने के जरिए उनका समर्थन जुटाने का जो फार्मूला नितीश अग्रवाल ने अपनाया है, वह बहुत फिट फार्मूला है; हालाँकि इस फार्मूले की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि नितीश अग्रवाल इस फार्मूले को व्यावहारिक धरातल पर कितना उतार पाते हैं ?