गाजियाबाद । अमरेश वशिष्ट, जितेंद्र गोयल व ध्रुव अग्रवाल जैसे नॉन सीरियस उम्मीदवारों ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की गाजियाबाद क्षेत्र की चुनावी राजनीति में ऐसा घपड़चौथ मचा दिया है कि मुकेश कुशवाह व विनय मित्तल जैसे सीरियस उम्मीदवारों के लिए अपनी अपनी सीरियसनेस बचाना/दिखाना मुश्किल हो गया है । इंस्टीट्यूट की मौजूदा 22वीं सेंट्रल काउंसिल में गाजियाबाद के दो सदस्य हैं, लेकिन 23वीं काउंसिल में एक भी सीट मिलने का संदेह बन गया है । बात सिर्फ उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने की नहीं है, क्योंकि पिछली बार भी इस क्षेत्र में चार उम्मीदवार तो थे ही; इसलिए इस बार पाँच उम्मीदवार हो जाने से कोई खास फर्क पड़ना नहीं चाहिए था - किंतु इस बार के पाँच उम्मीदवारों ने चुनावी गणित कुछ ऐसा बनाया है कि किसी एक का जीतना भी मुश्किल लग रहा है ।
सबसे बड़ी मुश्किल मुकेश कुशवाह के सामने हैं - उन्हें काउंसिल में अपनी सीट बचाने के लिए कठिन जद्दोजहद करना पड़ रही है । पिछली बार मुकेश कुशवाह बहुत मामूली अंतर से जीते थे । इस जीत में उन्हें मनु अग्रवाल की चुनावी नादानियों से बड़ा फायदा मिला था । मनु अग्रवाल लेकिन इस बार अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेते दिख रहे हैं । मनु अग्रवाल ने पिछली बार जो चुनावी मूर्खताएँ की थीं, इस बार वह उन्हें दोहराने से बचने की कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं; लगता है कि उन्होंने समझ लिया है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को सॉफ्टवेयर बेचना जितना मुश्किल काम है, चार्टर एकाउंटेंट्स के वोट पाना उससे भी ज्यादा मुश्किल काम है । मनु अग्रवाल के लिए मुश्किलें हालाँकि कम नहीं हैं, किंतु इस बार चूँकि वह मुश्किलों को पहचानने/समझने तथा उन्हें दूर करने को लेकर तत्पर दिख रहे हैं - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इस बार उनकी नाव पार लग जानी चाहिए । मनु अग्रवाल की नाव के पार लगने की स्थिति में मुकेश कुशवाह की नाव के डूबने का खतरा देखा जा रहा है ।
सबसे बड़ी मुश्किल मुकेश कुशवाह के सामने हैं - उन्हें काउंसिल में अपनी सीट बचाने के लिए कठिन जद्दोजहद करना पड़ रही है । पिछली बार मुकेश कुशवाह बहुत मामूली अंतर से जीते थे । इस जीत में उन्हें मनु अग्रवाल की चुनावी नादानियों से बड़ा फायदा मिला था । मनु अग्रवाल लेकिन इस बार अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेते दिख रहे हैं । मनु अग्रवाल ने पिछली बार जो चुनावी मूर्खताएँ की थीं, इस बार वह उन्हें दोहराने से बचने की कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं; लगता है कि उन्होंने समझ लिया है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को सॉफ्टवेयर बेचना जितना मुश्किल काम है, चार्टर एकाउंटेंट्स के वोट पाना उससे भी ज्यादा मुश्किल काम है । मनु अग्रवाल के लिए मुश्किलें हालाँकि कम नहीं हैं, किंतु इस बार चूँकि वह मुश्किलों को पहचानने/समझने तथा उन्हें दूर करने को लेकर तत्पर दिख रहे हैं - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इस बार उनकी नाव पार लग जानी चाहिए । मनु अग्रवाल की नाव के पार लगने की स्थिति में मुकेश कुशवाह की नाव के डूबने का खतरा देखा जा रहा है ।
मुकेश कुशवाह को खतरा मनु अग्रवाल से नहीं है; खतरा तो उन्हें गाजियाबाद क्षेत्र में है । मुकेश कुशवाह के लिए समस्या की बात यह है कि 'अपने घर में' उनके सामने जो खतरा पैदा हो गया है, उससे उनकी स्थिति बिगड़ी - और कानपुर में मनु अग्रवाल की स्थिति सुधरी तो फिर उनके लिए अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जायेगा । इसीलिए मुकेश कुशवाह के लिए सेंट्रल काउंसिल के लिए राह आसान नहीं दिख रही है । मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी को इस बार सबसे बड़ी 'मार' यह पड़ेगी कि पिछली बार गाजियाबाद क्षेत्र में उन्हें अनुज गोयल विरोधी जो वोट मिले थे, उन वोटों को इस बार उन्हें विनय मित्तल के साथ बाँटना पड़ेगा । अनुज गोयल ने अपने भाई जितेंद्र गोयल को उम्मीदवार बना कर अपने वोटों को बँटने से रोकने की जो व्यवस्था की है, दरअसल उसके कारण मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल का मामला फँस गया है । यूँ तो हर कोई यह मान रहा है कि जितेंद्र गोयल एक कठपुतली उम्मीदवार हैं, और अनुज गोयल 'भाई साहब का ख्याल रखना' कहते हुए लोगों के चाहें जितना हाथ जोड़ लें, वह 'भाई साहब' को चुनाव जितवा तो नहीं पायेंगे; लेकिन 'भाई साहब' की उम्मीदवारी अनुज गोयल के पक्के वाले वोटों को अपने पास/साथ बाँधे रखने में कामयाब हो सकती है । इससे जो हालात बने हैं, उसमें मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल की उम्मीदें ध्वस्त होती नजर आ रही हैं । अनुज गोयल के उम्मीदवार न होने में विनय मित्तल ने फायदा उठाने की जो योजना बनाई थी, वह योजना तो फेल हुई ही; उनकी योजना के चक्कर में मुकेश कुशवाह को बैठे-बिठाए मुसीबत और मिल गई । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी से मुकेश कुशवाह को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था; जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के साथ साथ लेकिन विनय मित्तल की उम्मीदवारी आने से अनुज गोयल विरोधी वोटों का बँटवारा होने की जो स्थिति बनी है, उसमें मुकेश कुशवाह घिरते हुए नजर आ रहे हैं ।
जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिए अनुज गोयल ने जो चाल चली है, उससे विनय मित्तल को खासा धोखा मिला है । विनय मित्तल ने अनुज गोयल की खाली होने वाली सीट पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से बहुत पहले से ही सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी थी । उनके समर्थकों में से ही कईयों का मानना और कहना हालाँकि यह था कि उन्हें अभी एक टर्म और रीजनल काउंसिल में रहना चाहिए और यहाँ चेयरमैन बनना चाहिए तथा अपने अनुभव व अपने समर्थन-आधार में इजाफा करना चाहिए - फिर उसके बाद उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए आना चाहिए । विनय मित्तल को किंतु लगा कि अनुज गोयल की खाली हो रही सीट के कारण जो मौका बन रहा है, उससे अच्छा मौका उन्हें फिर नहीं मिलेगा; लिहाजा उन्होंने अपने ही समर्थकों की एक न सुनी और सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बन गए । विनय मित्तल ने जो सोचा, वह गलत नहीं था - उनकी जगह कोई भी होता, संभवतः ऐसा ही सोचता और करता । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी न होती, तो मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल के लिए इंस्टीट्यूट की 23वीं काउंसिल में अपनी अपनी जगह बनाना कोई मुश्किल भी नहीं होता । विनय मित्तल के नजदीकियों के अनुसार, विनय मित्तल लेकिन अब पछता रहे हैं - उन्हें लग रहा है कि वह न तो इधर के रहे, और न उधर के रहे । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के चलते विनय मित्तल की योजना तो पिटी ही, विनय मित्तल की उम्मीदवारी ने मुकेश कुशवाह के लिए भी आफत खड़ी कर दी है ।
मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल जैसे-तैसे करके जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के कारण पैदा हुई समस्या से निपट भी लेते; लेकिन अमरेश वशिष्ट व ध्रुव अग्रवाल की उम्मीदवारी ने उनके लिए वह रास्ता भी बंद कर दिया लगता है । अमरेश वशिष्ट का मामला तो खासा दिलचस्प है - पिछले दोनों चुनावों में वह अंगद के पाँव की तरह दसवें नंबर पर ही पैर जमाए मिले थे । अमरेश वशिष्ट पिछली बार अपनी उम्मीदवारी को लेकर खासे गंभीर थे, किंतु वोटर उनकी उम्मीदवारी को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हो सके । वोटरों की इस बेवफाई से अमरेश वशिष्ट इतने निराश और नाराज हुए कि उन्होंने चुनावी नतीजा आते ही सार्वजनिक रूप से आगे कभी चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया । लेकिन जैसे ही इस बार के चुनाव नजदीक आए, उनके चुनावी कीड़े कुलबुलाये और वह तीसरी बार फिर उम्मीदवार हो गए । लोगों का कहना है कि जो व्यक्ति अपनी ही घोषणा पर न टिका रह पाता हो, उसकी उम्मीदवारी के साथ भला कौन टिकना चाहेगा ? जाहिर है कि अमरेश वशिष्ट के लिए दिल्ली बहुत बहुत दूर है; उनकी उम्मीदवारी को लेकिन जो वोट मिलेंगे, वह मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल के लिए दिल्ली को दूर करने का काम तो करेंगे ही । ध्रुव अग्रवाल की उम्मीदवारी ने कभी उनके नजदीकी रहे लोगों को ही हैरान किया है । वर्ष 2009 के चुनाव में वह जिस बुरी तरह से हारे थे, उसके कारण वह वर्ष 2012 में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की हिम्मत तक नहीं कर पाए थे । इस बार उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई आहट या अफवाह तक नहीं थी । पर अब जब उनकी उम्मीदवारी एक सच है, तो माना/समझा यही जा रहा है कि उनकी उम्मीदवारी का तो कुछ नहीं होना है, वह लेकिन मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल की संभावनाओं को अवश्य ही नुकसान पहुँचायेंगे ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के संदर्भ में गाजियाबाद क्षेत्र में जितेंद्र गोयल, अमरेश वशिष्ट और ध्रुव अग्रवाल की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है; लेकिन इनकी उम्मीदवारी ने अपनी अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेने वाले मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल के सामने खासा गंभीर संकट जरूर खड़ा कर दिया है ।