नोएडा । सतीश सिंघल अपने नजदीकियों को आजकल खुशी खुशी यह बताने में खूब व्यस्त हैं कि जो जेके गौड़ और शरत जैन पहले उन्हें कोई भाव नहीं देते थे, अब लगातार उनकी खुशामद में लगे हुए हैं । जेके गौड़ और शरत जैन के इस बदले रवैये को सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच तय होते दिख रहे मुकाबले के नतीजे के रूप में देख/पहचान रहे हैं । सतीश सिंघल का कहना है कि उनको दीपक गुप्ता का समर्थन करने से रोकने के लिए ही जेके गौड़ और शरत जैन ने उनके प्रति अपना रवैया बदला है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी खुद दीपक गुप्ता का कितना भला करेगी, यह तो अभी नहीं पता - किंतु दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी ने सतीश सिंघल का भला जरूर कर दिया है । उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल इस बात से बहुत परेशान और निराश रहे हैं कि जेके गौड़ और शरत जैन उन्हें उचित तवज्जो नहीं देते हैं, और उन्हें अलग-थलग करने/रखने में लगे रहते हैं । जेके गौड़ और शरत जैन का कहना रहा है कि सतीश सिंघल की समस्या यह रही है कि वह इस तथ्य को मानने/समझने को तैयार ही नहीं होते हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट के प्रोटोकॉल में उनके एक जूनियर पार्टनर हैं, और उन्हें जूनियर पार्टनर के रूप में रहना है - वह उनके 'बाप' बनने की कोशिश करते हैं; अब 'बाप' उन्हें क्यों बनाएँ ? सतीश सिंघल के बारे में और भी कई लोगों की शिकायत रही है कि सतीश सिंघल को यदि ऊँगली पकड़ाओ तो वह पहुँचा पकड़ लेते हैं । सतीश सिंघल को लगता है, और वह समय समय पर लोगों के बीच इसे कहते भी रहे हैं कि उन्हें जेके गौड़ और शरत जैन से ज्यादा रोटरी आती है । यह बात मानने और कहने तक तो ठीक है, समस्या लेकिन तब होती है जब सतीश सिंघल इसे दिखाने/जताने पर उतर आते हैं । जेके गौड़ और शरत जैन का कहना रहा है कि कई मौकों पर उन्होंने जब देखा/पाया कि सतीश सिंघल ने इस बात को भूलकर कि रोटरी प्रोटोकॉल में वह उनके जूनियर हैं, उन पर हावी होने की कोशिश की - तो उन्होंने सतीश सिंघल से बच कर रहना शुरू कर दिया ।
सतीश सिंघल ने जेके गौड़ और शरत जैन के इस रवैये को यह कह कर राजनीतिक रंग दिया कि उन्हें अलग-थलग करने की इनकी कोशिश वास्तव में रमेश अग्रवाल का हुक्म बजाने की इनकी मजबूरी है । सतीश सिंघल ने रमेश अग्रवाल के प्रति अपने विरोध को हमेशा ही मुखर रूप में प्रकट किया है । रमेश अग्रवाल ने उनके चुनाव में चूँकि उनके प्रतिस्पर्द्धी प्रसून चौधरी का सहयोग/समर्थन किया था, इसलिए सतीश सिंघल का रमेश अग्रवाल के प्रति मुखर विरोध है और कई जगह उन्होंने कहा भी है कि रोटरी में उनकी राजनीति का एकमात्र उद्देश्य रमेश अग्रवाल की राजनीति की हवा बिगाड़ना ही है । रमेश अग्रवाल की राजनीति की हवा सतीश सिंघल जब बिगाड़ देंगे, वह तो तब देखेंगे - अभी तक तो लेकिन रमेश अग्रवाल ने सतीश सिंघल की हवा बिगाड़ी हुई है । सतीश सिंघल जब खुद मानते और कहते/बताते हैं कि जेके गौड़ और शरत जैन उन्हें जो उचित सम्मान नहीं देते हैं, उसके पीछे रमेश अग्रवाल हैं - तो यह एक तरह से सतीश सिंघल की स्वीकारोक्ति ही है कि डिस्ट्रिक्ट में इस समय रमेश अग्रवाल की ही तूती है । रमेश अग्रवाल की राजनीति की हवा बिगाड़ने की बातें करने वाले सतीश सिंघल को यूँ तो जेके गौड़ व शरत जैन जैसे रमेश अग्रवाल के घोषित 'आदमियों' से किसी भी तरह के अच्छे व्यवहार की उम्मीद भी नहीं रखना चाहिए; सतीश सिंघल लेकिन इनसे न सिर्फ अच्छे व्यवहार की उम्मीद करते रहे - बल्कि उम्मीद पूरी न होने पर शिकायत भी करते रहे हैं । जेके गौड़ और शरत जैन ने उनकी इस छटपटाहट का खूब मजा भी लिया ।
जेके गौड़ ने तो सतीश सिंघल की जैसी हालत की, उसकी सतीश सिंघल ने तो कल्पना भी नहीं की होगी । हालाँकि इसके लिए सतीश सिंघल ने ही उन्हें मजबूर किया । जेके गौड़ के साथ समस्या दरअसल यह हुई कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो बन गए, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ठसक नहीं बना पाए । उनकी बदकिस्मती यह रही कि मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल और अशोक अग्रवाल जैसे जिन लोगों पर वह निर्भर हुए, उन्होंने ही लोगों के बीच उनकी नकारात्मक छवि बनाई और तरह तरह से जेके गौड़ को 'शिकारपुर का' साबित करने की कोशिश की । उन्होंने तो ऐसा इसलिए किया, ताकि वह अपने आपको लोगों की नजरों में ऊँचा दिखा सकें; जेके गौड़ ने लेकिन उन्हें ऐसा करने दे कर अपना नुकसान किया । लोगों के बीच जेके गौड़ की जैसी नकारात्मक पहचान बनी, वैसी पहचान उनसे पहले शायद ही किसी गवर्नर की बनी हो । जेके गौड़ की इस पहचान का फायदा उठाने की सतीश सिंघल ने कोशिश की । सतीश सिंघल ने लेकिन मामले का एक ही पहलू देखा, दूसरे पहलू को उन्होंने अनदेखा ही कर दिया - उन्होंने यह तो देखा कि जेके गौड़ की छवि 'एक बेचारे गवर्नर' की है, लेकिन वह यह नहीं देख पाए कि जेके गौड़ उतने बेचारे हैं नहीं जितना कि उन्हें समझा जाता है । जेके गौड़ को बदला लेना भी खूब आता है । जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा जैसे तुर्रमखाँ को जिस तरह खुड्डे लाइन लगा दिया है, वह भी एक दिलचस्प नजारा है । सतीश सिंघल ने जेके गौड़ की बेचारगी देखी, तो तुरंत उन पर सवार होने के लिए तैयार हो गए । जेके गौड़ ने भी बदले में उन्हें ऐसी पटखनी दी कि फिर वह अपने नजदीकियों के बीच शिकायत करने लायक ही बचे कि जेके गौड़ उन्हें पर्याप्त इज्जत नहीं दे रहे हैं । किसी किसी से उन्हें सुनने को भी मिला कि जेके गौड़ गवर्नर हैं, पहले उन्हें उचित इज्जत दो तो फिर उनसे उचित इज्जत मिलने की उम्मीद करो ।
सतीश सिंघल ने रमेश अग्रवाल और उनके जेके गौड़ व शरत जैन जैसे 'आदमियों' से निपटने के लिए राजनीतिक तरीका अपनाया और मुकेश अरनेजा के साथ हाथ मिला लिया । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के बीच शक्ल ग्रहण करते देखा जा रहा है । रमेश अग्रवाल को सुभाष जैन की उम्मीदवारी के पीछे पहचाना जा रहा है, तो मुकेश अरनेजा को अशोक गर्ग-प्रवीन निगम-दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पीछे मौका खोजते/बनाते हुए देखा जा रहा है । मुकेश अरनेजा जब पूरी तरह अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के साथ थे, तब सतीश सिंघल भी अशोक गर्ग की वकालत कर रहे थे । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की वकालत के बावजूद अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच समर्थन जुटता हुआ जब नहीं दिखा, तब मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उकसाया । सतीश सिंघल के लिए तुरंत से तो अशोक गर्ग का साथ छोड़ना मुश्किल हुआ, किंतु अशोक गर्ग को जब खुद अपनी ही उम्मीदवारी के प्रति उत्साह छोड़ते हुए देखा गया तो सतीश सिंघल के लिए भी फैसला करना जरूरी हुआ । रमेश अग्रवाल से निपटने की अपनी शपथ को याद करते हुए, सतीश सिंघल के सामने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन की तरफ ही आना था और वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की तरफ आते हुए दिखे भी हैं; हालाँकि अभी वह ज्यादा खुली वकालत करने से बच रहे हैं । अशोक गर्ग के खुद ही पीछे हटने से और प्रवीन निगम के ढीले-ढाले रवैये से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई जिस तरह सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच होते मुकाबले में तब्दील होती नजर आ रही है, उसमें सतीश सिंघल का यह दावा महत्वपूर्ण संकेत देता हुआ तो लग रहा है कि उनको दीपक गुप्ता का समर्थन करने से रोकने के लिए ही जेके गौड़ और शरत जैन ने उनके प्रति अपना रवैया बदला है । सतीश सिंघल को विश्वास है कि इन दोनों का उनके प्रति जो रवैया बदला है - वह अवश्य ही रमेश अग्रवाल के कहने से बदला है । इससे सतीश सिंघल को यह विश्वास तो हो चला है कि आखिरकार रमेश अग्रवाल ने भी उनकी राजनीतिक ताकत को पहचान लिया है और डिस्ट्रिक्ट में अपनी राजनीतिक हैसियत बनाए रखने के लिए उनकी शरण में आने के लिए मजबूर हुए हैं । हालाँकि यह अभी उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है कि रमेश अग्रवाल ने पिछले रोटरी वर्ष में उन्हें हरवाने के लिए जो काम किए थे, उसके लिए वह उनसे माफी माँगेंगे तो वह रमेश अग्रवाल को माफ़ कर देंगे या नहीं ?