नई दिल्ली । हरित अग्रवाल और उनके समर्थकों ने जीएमसीएस में छात्रों को घटिया खाना परोसने के मामले की आड़ में राज चावला के लिए जो गड्ढा खोदना शुरू किया था, उसमें खुद हरित अग्रवाल और उनके समर्थकों के फँस जाने से राज चावला की किस्मत के चर्चे लोगों के बीच चल पड़े हैं - और इन चर्चों ने हंसराज चुग तथा उनके समर्थकों की नींद हराम कर दी है । हंसराज चुग तथा उनके समर्थकों को दरअसल डर यह हुआ है कि राज चावला की किस्मत क्या एक बार फिर कहीं हंसराज चुग का काम तो नहीं बिगाड़ेगी ? उनके बीच यह डर रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद को पाने को लेकर चले घटनाचक्र को याद करने के कारण पैदा हुआ । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मौजूदा वर्ष के चेयरमैन पद को लेकर जो राजनीतिक गोटियाँ बिछना शुरू हुईं थीं, उसमें राज चावला का तो कहीं नाम ही नहीं था - उन्हें तो हंसराज चुग के समर्थन में 'देखा' और प्रचारित किया जा रहा था । हंसराज चुग चेयरमैन पद के एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे थे । चेयरमैन पद को लेकर होने वाली चर्चाओं में तो छोड़िए, अफवाहों तक में राज चावला का जिक्र नहीं था । चेयरमैन पद के लिए राज चावला ने जब सभी को अचंभित करते हुए अचानक से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तब भी किसी ने भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया । दूसरे उन्हें क्या गंभीरता से लेते, खुद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया था; उन्हें कहते/बताते सुना गया था कि वह तो बस यूँ ही उम्मीदवार बनने का सुख लेना चाहते हैं, इसलिए उम्मीदवार बन गए हैं । चेयरमैन पद को लेकर जो भी तीन-तिकड़में हो रही थीं, जो भी चाल-बाजियाँ चल रहीं थीं, जो भी लॉबिंग हो रही थीं - उनमें किसी को भी राज चावला की दाल गलती हुई नहीं नजर आ रही थी । लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजन की राजनीति के सारे 'पंडितों' का गणित तब फेल हो गया, जब दाल राज चावला की गली पाई गई । चेयरमैन पद पर राज चावला की जीत को राज चावला की नहीं, 'राज चावला की किस्मत' की जीत के रूप में देखा और प्रचारित किया गया ।
हंसराज चुग तथा उनके समर्थकों को डर यही हुआ है कि राज चावला की किस्मत कहीं सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में भी वही कहानी तो नहीं दोहरायेगी ? सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में राज चावला की किस्मत का डर हंसराज चुग और उनके समर्थकों को इसलिए है क्योंकि सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में हंसराज चुग और राज चावला को एक दूसरे के साथ जोड़ कर ही देखा जा रहा है, और माना जा रहा है कि इन दोनों में से कोई एक ही सेंट्रल काउंसिल में जायेगा । लोगों के बीच की चर्चाओं में राज चावला के मुकाबले हंसराज चुग का पलड़ा भारी माना/देखा जा रहा है । हंसराज चुग की जीत का दावा करने वाले तो फिर भी मिल/दिख जायेंगे, लेकिन राज चावला की जीत का दावा उनके समर्थक व सहयोगी तक करने में हिचक रहे हैं । यानि कहानी - अभी तक - ठीक वैसी ही है, जैसी कि वह रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के चुनाव से पहले थी । हालाँकि इस बात पर किसी का ध्यान था नहीं । किंतु हरित अग्रवाल के समर्थकों द्वारा जीएमसीएस के मुद्दे पर घेरे जाने के प्रयासों का मुँह जिस तरह से राज चावला की बजाए हरित अग्रवाल की तरफ ही मुड़ गया है, उसमें जादुई चमत्कार का सा जो आभास मिला है - उससे राज चावला की किस्मत की चर्चा ने लोगों के बीच पुनः जोर पकड़ लिया है । उल्लेखनीय है कि हरित अग्रवाल के समर्थकों ने राज चावला को निशाना बनाते हुए जीएमसीएस के खाने को लेकर तूफान खड़ा किया हुआ था; रोज बातों व तथ्यों को दोहराते हुए राज चावला को कोसा जा रहा था । लेकिन जैसे ही भेद खुला कि जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन तो हरित अग्रवाल हैं, और वहाँ खाने की क्वालिटी तथा उसकी व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी तो उनकी है - वैसे ही जीएमसीएस के मामले में हरित अग्रवाल के समर्थकों के मुँह पर ताले पड़ गए । मजे की बात यह रही कि इस मामले में राज चावला ने एक शब्द नहीं कहा, और फिर भी वह तो 'हमले' में साफ बच निकले और हमलावर ही लहूलुहान हो गए ।
यह क्या किस्मत की बात है ? कई लोगों के लिए इसका जबाव 'हाँ' है, तो राज चावला के नजदीकियों का जबाव 'ना' है - उनका तर्क है कि किस्मत भी उनका साथ देती है, जो सही तरीके से अपना काम करते हैं । दूसरे लोगों का भी मानना और कहना है कि जीएमसीएस मामले में हरित अग्रवाल और उनके समर्थकों की फजीहत इसलिए नहीं हुई कि उनकी किस्मत खराब थी; उनकी फजीहत इसलिए हुई कि उन्होंने जो मुद्दा उठाया, उसमें 'बेईमानी' की - और उन्हें अपनी ही बेईमानी का फल मिला । राज चावला के समर्थकों का कहना है कि राज चावला बहुत आक्रामक तरीके से और बहुत शोर मचा कर काम करने वाले व्यक्ति नहीं हैं; वह चुपचाप तरीके से स्थिति को भाँपते हैं और अपने लिए मौका बनाते हैं; उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि प्रतिकूल हालात में भी वह उम्मीद नहीं छोड़ते हैं । राज चावला के नजदीकी उनके बारे में एक बड़ी मजेदार बात बताते हैं कि सड़क पर उनकी गाड़ी के सामने यदि कोई जानवर आ जाता है, तो वह उसे हटाने के लिए हॉर्न नहीं बजाते हैं; वह कहते हैं कि हॉर्न के शोर से जानवर असहज होगा तथा ज्यादा परेशान करेगा, इसलिए चुप रहने में ही फायदा है; जानवर खुद बहुत संवेदनशील होता है, वह खुद परेशानी महसूस कर रहा होता है, और अपने लिए रास्ता खोज कर निकल लेता है । राज चावला के समर्थकों का कहना है कि सड़क पर अपनाए जाने वाले इसी फार्मूले को उन्होंने रीजनल काउंसिल के चेयरमैन बनने के लिए भी आजमाया था, और बिना कोई शोर-शराबा किए उन्होंने अपनी तरकीब लगाई और चेयरमैन पद पा लिया ।
चेयरमैन 'बनने' के बाद भी राज चावला ने इसी फार्मूले को अपनाया हुआ है - और इसी फार्मूले के चलते वह 'बचे' भी हुए हैं । उनकी राह में मुसीबतें कम नहीं पैदा की गईं - चेयरमैन 'बनने' के बाद भी, चेयरमैन घोषित होने के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ा; नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इससे पहले शायद ही किसी चेयरमैन के साथ ऐसा हुआ हो । जाहिर है कि 'बनने' और 'घोषित' होने के बीच उन्हें न बनने देने के खूब प्रयास हुए, किंतु जो कामयाब नहीं हो सके । राज चावला चेयरमैन घोषित भी हो गए, तो उन्हें चेयरमैन के अधिकार नहीं लेने दिए गए । अधिकार मिले तो उनके हर फैसले में टाँग अड़ाने के तरीके अपनाए गए । काउंसिल में उनके साथियों द्वारा सामने कुछ तथा पीछे कुछ और कहने के जरिए उनके फैसलों पर विवाद खड़ा करने के प्रयास हुए हैं । काउंसिल में उनके सहयोगी/साथी हरित अग्रवाल ने अपने समर्थकों के जरिए अपना 'पाप' उनके सिर मढ़ने की जो कोशिश की, वह तो सभी ने देखी/जानी । इसके बाद भी राज चावला न सिर्फ चेयरमैन के रूप में अपना काम किए जा रहे हैं, बल्कि सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए भी अभियान चलाए हुए हैं । राज चावला के इसी रवैये में हंसराज चुग और उनके समर्थकों को खतरे की घंटी सुनाई दे रही है ।
उल्लेखनीय है कि राज चावला के समर्थक भी मानते और कहते हैं कि राज चावला की उम्मीदवारी ही हंसराज चुग की जीत की राह का रोड़ा है । दोनों का समर्थन-आधार लगभग समान है, और दोनों को ही समान लोगों से ही समर्थन की उम्मीद है - कई लोगों को लगता है कि चेयरमैन होने का फायदा तो राज चावला को मिलेगा ही, साथ ही उनके खिलाफ जिस तरह से जो जो षड्यंत्र होते रहे हैं, उसके चलते लोगों के बीच उनके प्रति हमदर्दी भी है । राज चावला के खिलाफ होते षड्यंत्र जिस तरह अभी तक बेअसर साबित होते रहे हैं, उसे चाहें उनकी किस्मत का नतीजा मानें; और चाहें वह उनकी सुनियोजित रणनीति का प्रतिफल हो - उससे भी हंसराज चुग और उनके समर्थकों की नींद खराब हो रही है । हाँ, इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के पंडित अभी राज चावला की उम्मीदवारी को बहुत तवज्जो देते हुए नहीं दिख रहे हैं - पर चुनावी राजनीति के इन्हीं पंडितों ने रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के चुनाव में भी राज चावला की उम्मीदवारी को कहाँ कोई तवज्जो दी थी ?