मुंबई । दृष्टि देसाई ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके वेस्टर्न रीजन में ही नहीं, बल्कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में हलचल मचा दी है । दृष्टि देसाई बंसीधर मेहता की बेटी हैं । बंसीधर मेहता का परिचय सिर्फ यही नहीं है कि वह करीब तीन दशक पूर्व, वर्ष 1981-82 में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट थे; उनका परिचय इससे कहीं बड़ा है - और वह यह कि वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच आज भी एक 'सुपर स्टार' की हैसियत रखते हैं; मुंबई जैसे शहर के किसी सेमिनार में वह स्पीकर होते हैं तो तीन-चार हजार चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तुरंत से उपस्थित हो जाते हैं; और इन उपस्थित होने वालों में भी अधिकतर नामी और व्यस्त रहने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स होते हैं । उनकी प्रोफेशनल एक्सपर्टीज की स्थिति यह है कि देश के बड़े कॉर्पोरेट्स घरानों की कंपनियाँ उनकी क्लाइंट हैं, और उनकी फर्म के ऑर्टिकल्स बड़ी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स फर्मों में - यहाँ तक की बिग फोर फर्मों में पार्टनर हैं । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उनकी 'उपस्थिति' की स्थिति यह है कि उनके बाद सेंट्रल काउंसिल में गौतम दोषी, भावना दोषी, पंकज जैन, प्रफुल्ल छाजेड़ उनके नाम को बनाए हुए हैं । ऐसे में दृष्टि देसाई के इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में पड़े कदम को इंस्टीट्यूट की राजनीति के संदर्भ में एक बड़ी घटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और लोग चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट की अगले वर्षों की चुनावी राजनीति को दृष्टि देसाई के इर्द-गिर्द घूमते हुए देखने/पहचानने लगे हैं ।
देखने/पहचानने की इसी प्रक्रिया में लोगों को हालाँकि आश्चर्य इस बात पर है कि दृष्टि देसाई ने रीजनल काउंसिल की बजाए सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत क्यों नहीं की ? सभी मानते और कहते हैं कि दृष्टि देसाई यदि सेंट्रल काउंसिल के लिए भी उम्मीदवारी प्रस्तुत करतीं, तो शर्तिया जीततीं । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उन्हें सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इस नाते दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी को प्रीति सावला और श्रुति शाह के लिए खासी बड़ी चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । प्रीति सावला तो पिछली बार वोट पाने वालों में पहली वरीयता के 1514 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थीं, इसलिए बहुत संभव है कि दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी से उन्हें वोटों का झटका भले ही लगे, लेकिन रीजनल काउंसिल में उनकी सीट बची रह जाए; किंतु पहली वरीयता के 516 वोटों के साथ 28वें नंबर पर रहने वाली श्रुति शाह के लिए हालात सचमुच मुश्किल हो गए हैं । मामूली अंतर से पिछड़ जाने वाली वंदना डोढिया के लिए, दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी के चलते इस बार संभावना और कमजोर पड़ गई दिख रही है । दरअसल इसीलिए दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मुंबई के उम्मीदवारों के बीच खासी हलचल मचा दी है । माना जा रहा है कि दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी - और उनकी निश्चित जीत की उम्मीद ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मुंबई के उम्मीदवारों की किस्मत को नए सिरे से बनाने-बिगाड़ने के हालात पैदा कर दिए हैं । रीजनल काउंसिल के मुंबई के बाहर के उम्मीदवारों को लग रहा है कि दृष्टि देसाई मुंबई के उम्मीदवारों को वोटों का जो नुकसान पहुँचाएंगी, उसके कारण उनकी 'लॉटरी' निकल सकती है ।
देखने/पहचानने की इसी प्रक्रिया में लोगों को हालाँकि आश्चर्य इस बात पर है कि दृष्टि देसाई ने रीजनल काउंसिल की बजाए सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत क्यों नहीं की ? सभी मानते और कहते हैं कि दृष्टि देसाई यदि सेंट्रल काउंसिल के लिए भी उम्मीदवारी प्रस्तुत करतीं, तो शर्तिया जीततीं । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उन्हें सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इस नाते दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी को प्रीति सावला और श्रुति शाह के लिए खासी बड़ी चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । प्रीति सावला तो पिछली बार वोट पाने वालों में पहली वरीयता के 1514 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थीं, इसलिए बहुत संभव है कि दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी से उन्हें वोटों का झटका भले ही लगे, लेकिन रीजनल काउंसिल में उनकी सीट बची रह जाए; किंतु पहली वरीयता के 516 वोटों के साथ 28वें नंबर पर रहने वाली श्रुति शाह के लिए हालात सचमुच मुश्किल हो गए हैं । मामूली अंतर से पिछड़ जाने वाली वंदना डोढिया के लिए, दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी के चलते इस बार संभावना और कमजोर पड़ गई दिख रही है । दरअसल इसीलिए दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मुंबई के उम्मीदवारों के बीच खासी हलचल मचा दी है । माना जा रहा है कि दृष्टि देसाई की उम्मीदवारी - और उनकी निश्चित जीत की उम्मीद ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मुंबई के उम्मीदवारों की किस्मत को नए सिरे से बनाने-बिगाड़ने के हालात पैदा कर दिए हैं । रीजनल काउंसिल के मुंबई के बाहर के उम्मीदवारों को लग रहा है कि दृष्टि देसाई मुंबई के उम्मीदवारों को वोटों का जो नुकसान पहुँचाएंगी, उसके कारण उनकी 'लॉटरी' निकल सकती है ।
रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के बीच हो रहे नफे-नुकसान के इस आकलन के बीच कुछेक लोगों का हालाँकि यह भी मानना और कहना है कि दृष्टि देसाई की सफलता एक उम्मीदवार के रूप में उनकी चुनावी व्यूह-रचना और उनकी सक्रियता पर निर्भर करेगी । यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके पिता बंसीधर मेहता उनकी उम्मीदवारी के लिए वैसी सक्रियता बिलकुल भी नहीं दिखाएंगे, जैसी सक्रियता अहमदाबाद से रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले अनिकेत तलति के लिए उनके पिता पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति दिखा रहे हैं । बंसीधर मेहता को बहुत ही सिद्धांत-प्रिय और तड़क-भड़क तथा महत्वाकांक्षाओं से दूर रहने वाले व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है; इसीलिए विश्वास किया जाता है कि दृष्टि देसाई को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी । बंसीधर मेहता के ऑरा का, लोगों के बीच उनके प्रभाव का, लोगों की उनके प्रति 'भक्ति' का फायदा दृष्टि देसाई को अवश्य ही मिल सकेगा - लेकिन यह तब मिल सकेगा, जब दृष्टि देसाई इस फायदे को जुटाने के लिए 'व्यवस्था' करेंगी । इस बात को स्वीकार करते हुए दूसरे लोगों का कहना है कि दृष्टि देसाई अब जब चुनावी मैदान में कूद पड़ी हैं, तो इतना तो वह समझ ही रही होंगी कि यहाँ एक उम्मीदवार के रूप में उन्हें अपनी सक्रियता तो दिखानी ही होगी और चुनाव को 'मैनेज' करने में उन्हें जुटना ही होगा । उन्होंने देखा ही है, और अवश्य ही इसे नोट भी किया होगा कि बंसीधर मेहता के 'नाम' के बावजूद गौतम दोषी, भावना दोषी, पंकज जैन और प्रफुल्ल छाजेड़ ने इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अपने अपने पापड़ स्वयं ही बेले हैं ।
दृष्टि देसाई एक प्रोफेशनल होने के साथ साथ सामाजिक भूमिका निभाने में दिलचस्पी लेती रही हैं, और सेमीनारों में वक्ता के रूप में वह अपनी रुचि से भाग लेती रही हैं । वह जिन कुछेक कमेटियों में सदस्य और या पदाधिकारी रही हैं, वहाँ भी उन्होंने अपनी संलग्नता प्रदर्शित की है । इन तथ्यों को रेखांकित करते हुए उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि 'चुनावी जरूरतों' का उन्हें निश्चित ही अहसास और आभास होगा, तथा उन्हें पूरा करने में वह कोई कमी भी नहीं रहने देंगी । उन्हें निश्चित ही इस बात का भी अहसास और आभास होगा कि उनकी चुनावी सक्रियता और उपलब्धियाँ प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट में 'लेजेंड' के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले उनके पिता बंसीधर मेहता की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी है - और इसलिए वह एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को गंभीरता से ही लेंगी । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दृष्टि देसाई ने अपनी उपस्थिति को यदि सचमुच गंभीरता से लिया - तो लोगों का मानना और विश्वासपूर्वक कहना है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में वह एक नया अध्याय लिखेंगी ।