Saturday, September 5, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत धीरज खण्डेलवाल तथा बीएम अग्रवाल की उम्मीदवारी ने अग्रवाल वोटों पर कब्जे की लड़ाई को दिलचस्प बनाया

मुंबई । बीएम अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल के लिए अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने धीरज खण्डेलवाल की उम्मीदवारी के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है । दरअसल धीरज खण्डेलवाल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और उत्तम अग्रवाल चूँकि इंस्टीट्यूट की राजनीति के साथ साथ अग्रवाल समाज की राजनीति में भी सक्रिय हैं - इस नाते उम्मीद की जाती है कि धीरज खण्डेलवाल अग्रवाल वोटों का अच्छा-खासा समर्थन प्राप्त कर सकेंगे । किंतु बीएम अग्रवाल की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने धीरज खण्डेलवाल की इन उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया है । धीरज खण्डेलवाल की उम्मीदवारी के लिए यह झटका इसलिए और बड़ा है - क्योंकि अभी तक अग्रवाल वोटों के सबसे बड़े सौदागर राजकुमार अदुकिया रहे हैं, जिनकी उत्तम अग्रवाल से बनती नहीं है; और ऐसे में समझा जाता है कि राजकुमार अदुकिया के जो समर्थक हैं, वह धीरज खण्डेलवाल की बजाए बीएम अग्रवाल के साथ जुड़ सकते हैं । उत्तम अग्रवाल के 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाने के कारण धीरज खण्डेलवाल को एक तरफ बहुत से फायदे हैं, तो साथ ही साथ नुकसान भी बहुत हैं । उत्तम अग्रवाल ने दरअसल दुश्मनियाँ बहुत बनाई हैं; और समझा जाता है कि अलग अलग कारणों से जिन लोगों की भी दुश्मनियाँ उत्तम अग्रवाल से हैं, वह सब उसका बदला धीरज खण्डेलवाल से लेंगे । धीरज खण्डेलवाल का स्वभाव हालाँकि दोस्ती करने और निभाने का है - और इस तरह उत्तम अग्रवाल के स्वभाव के ठीक विपरीत है; लेकिन खतरा यह देखा जा रहा है कि चुनाव में लोग धीरज खण्डेलवाल को नहीं, उनके रूप में उत्तम अग्रवाल को देखेंगे । धीरज खण्डेलवाल के लिए यही बात सबसे बड़ी समस्या है, और उनकी इस समस्या को बीएम अग्रवाल की उम्मीदवारी ने और बड़ा कर दिया है । 
इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के जो खिलाड़ी हैं, वह बीएम अग्रवाल और धीरज खण्डेलवाल की तुलना करते हुए धीरज खण्डेलवाल का पलड़ा भारी पाते हैं । बीएम अग्रवाल पिछले छह वर्ष से लोगों के संपर्क में नहीं हैं, जबकि पिछले नौ वर्षों से रीजनल काउंसिल में होने के कारण धीरज खण्डेलवाल का लोगों के साथ निरंतर संपर्क बना हुआ है; मंच पर भूमिका निभाने के मामले में धीरज खण्डेलवाल, बीएम अग्रवाल के मुकाबले ज्यादा स्मार्ट 'दिखते' रहे हैं; 'साधनों' के मामले में भी धीरज खण्डेलवाल को बीएम अग्रवाल से ज्यादा समर्थ माना जाता है - धीरज खण्डेलवाल ने पिछले दिनों ही अपनी पत्नी के जन्मदिन पर उन्हें महंगी बीएमडब्ल्यूएक्सथ्री कार गिफ्ट करके अपने 'साधनों' की जो धमक प्रस्तुत की है, उसकी गूँज दूर और देर तक सुनाई दी है; इन सबसे बड़ी बात यह कि धीरज खण्डेलवाल के पास उत्तम अग्रवाल जैसा एक 'गॉडफादर' है, बीएम अग्रवाल के पास कोई 'गॉडफादर' तो नहीं ही है - जिन दोस्तों के समर्थन का वह भरोसा कर भी रहे हैं, उनका भी कोई भरोसा नहीं कि कौन कब किस राह मुड़ जाए ? जैसा कि एनसी हेगड़े के मामले में हुआ - बीएम अग्रवाल दावा कर रहे थे कि एनसी हेगड़े उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे और कॉर्पोरेट्स के वोट उन्हें दिलवायेंगे, बाद में लेकिन लोगों ने देखा/पाया कि एनसी हेगड़े खुद उम्मीदवार हो गए हैं । इन कुछेक तुलनाओं के आधार पर बीएम अग्रवाल के मुकाबले धीरज खण्डेलवाल का पलड़ा भारी भले ही देखा/पहचाना जा रहा हो - किंतु फिर भी उन्हें 'वॉकओवर' मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । 
राजनीति - और चुनावी राजनीति दरअसल अंतर्विरोधों को साधने तथा समन्वय बैठाने की कला है - जिसमें धीरज अग्रवाल व बीएम अग्रवाल के बीच तुलना करें तो बीएम अग्रवाल को बढ़त बनाते देखते/पाते हैं । इसका सबसे बड़ा सुबूत यह है कि तमाम खूबियों के बावजूद धीरज खण्डेलवाल रीजनल काउंसिल में चेयरमैन नहीं बन पाए । धीरज खण्डेलवाल का स्वभाव यूँ तो बहुत मिलनसार है, और राजनीतिक विरोधियों से भी वह संबंध बनाने का प्रयास करते हैं तथा उन्हें तवज्जो देते हैं - लेकिन राजनीतिक रूप से समीकरण बनाने/बैठाने के मामले में वह प्रायः फेल हो जाते हैं । रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बनने की उनकी कोशिशें इसीलिए कामयाब नहीं हो पाई । इसके लिए हालाँकि उत्तम अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया जाता है । तमाम लोगों का कहना है कि उत्तम अग्रवाल के कारण ही धीरज खण्डेलवाल वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन नहीं बन पाए हैं । धीरज खण्डेलवाल ने यद्यपि उत्तम अग्रवाल के कारण होने वाले नुकसान से बचने का भरसक प्रयास किया है, और उत्तम अग्रवाल से अलग अपनी एक पहचान बनाने के लिए भी उन्होंने हाथ-पैर मारे हैं, किंतु सफलता प्राप्त करने में वह चूकते ही रहे हैं । दूसरी तरफ, बीएम अग्रवाल बिना किसी 'गॉडफादर' के होते हुए भी तथा अन्य कई 'कमजोरियों' के बावजूद रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बने हैं - जिससे साबित है कि राजनीतिक समीकरण बनाने के लिए जिस तरह का लचीलापन चाहिए होता है, वह बीएम अग्रवाल में है और प्रतिकूल स्थितियों के बीच भी राह बनाने का हुनर उन्हें आता है । 
अपनी अपनी कमियों और अपनी अपनी खूबियों की इस पृष्ठभूमि के साथ बीएम अग्रवाल और धीरज खण्डेलवाल के बीच खासतौर से अग्रवाल वोटों पर कब्जे की लड़ाई खासी दिलचस्प हो जाती है । उत्तम अग्रवाल का जो समर्थन कुछेक लोगों के अनुसार धीरज खण्डेलवाल के लिए वरदान है, वही अन्य बहुत से लोगों के लिए अभिशाप है । हालाँकि चुनावी खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि धीरज खण्डेलवाल ने यदि उत्तम अग्रवाल के समर्थन को होशियारी से इस्तेमाल किया तथा अपनी भी एक अलग पहचान वह यदि बना सके तो अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटा सकेंगे । उधर बीएम अग्रवाल के सामने अपने समर्थक नेताओं को 'सचमुच में' सक्रिय बनाने/करने की चुनौती है - इस चुनौती को वह यदि संभव कर सके, तो अपनी उम्मीदवारी की बढ़त बनाने में सफल हो सकेंगे । बाकी तो जो है, सो हइये है !