Wednesday, September 9, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए संजय पवार की उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के जरिए एसबी जावरे को घेर कर यशवंत कसार को मिल सकने वाले समर्थन को कमजोर करने की सर्वेश जोशी द्वारा चली गई चाल ने पुणे में चुनावी राजनीति के परिदृश्य को रोमांचक बनाया

पुणे । संजय पवार की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत होने के साथ ही सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी की 'पोजीशन' को लेकर घिरे हुए अनिश्चय के बादल पूरी तरह छंट गए हैं, और पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य लगभग साफ हो गया है । उल्लेखनीय है कि पुणे के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पिछले कई दिनों से सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी को लेकर यह अनिश्चय बना हुआ था कि वह रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार होंगे, और या सेंट्रल काउंसिल के लिए । दरअसल रीजनल काउंसिल के लिए यशवंत कसार की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से रीजनल काउंसिल में सर्वेश जोशी की सीट खतरे में पड़ती/फँसती हुई दिख रही है । यशवंत कसार की उम्मीदवारी को लेकर सर्वेश जोशी ने एसबी जावरे के प्रति गुस्सा और नाराजगी व्यक्त की है - उन्हें लगता है कि रीजनल काउंसिल से उन्हें बाहर धकेलने के लिए ही एसबी जावरे ने यशवंत कसार को उम्मीदवार बनाया/बनवाया है । सर्वेश जोशी की इस बात से पुणे में उनके विरोधी भी बहुत हद तक सहमत हैं । इससे सर्वेश जोशी को बल मिला, तथा एसबी जावरे के प्रति उनकी नाराजगी और परवान चढ़ी । एसबी जावरे के प्रति सर्वेश जोशी की नाराजगी के जाहिर होने के साथ-साथ पुणे में सर्वेश जोशी की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी की चर्चा भी गर्म होने लगी । सर्वेश जोशी ने अपनी तरफ से इस चर्चा को ठंडा करने की कोई कोशिश नहीं की; उनके नजदीकियों ने बल्कि यह कहते हुए इस चर्चा में और उबाल पैदा किया कि सर्वेश जोशी का उद्देश्य अब अपना चुनाव जीतना नहीं रह गया है, बल्कि उनका उद्देश्य अब एसबी जावरे को सबक सिखाना हो गया है । सर्वेश जोशी के कुछेक समर्थकों ने तो बाकायदा लोगों को बताया कि एसबी जावरे ने यशवंत कसार के जरिए सर्वेश जोशी के लिए जो मुसीबत खड़ी की है, उसका बदला सर्वेश जोशी सेंट्रल काउंसिल लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके लेंगे । नजदीकियों व समर्थकों की इसी तरह की बातों के कारण सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी को लेकर पुणे में संशय के बादल घिरे और कन्फ्यूजन पैदा हुआ । 
संजय पवार की उम्मीदवारी ने लेकिन इस कन्फ्यूजन को दूर कर दिया है । सर्वेश जोशी की उम्मीदवारी को लेकर कन्फ्यूजन भले ही दूर हो गया है, किंतु संजय पवार की उम्मीदवारी से सर्वेश जोशी की 'राजनीति' पर मोहर भी लग गई है । संजय पवार को सर्वेश जोशी के 'आदमी' के रूप देखा/पहचाना जाता है - और इसी आधार पर माना/कहा जा रहा है कि सर्वेश जोशी ने संजय पवार को एसबी जावरे की नाक में दम करने के लिए ही उम्मीदवार बनाया/बनवाया है । एसबी जावरे के कट्टर से कट्टर विरोधी और आलोचक भी मान रहे हैं तथा कह रहे हैं कि एक उम्मीदवार के रूप में संजय पवार कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पायेंगे तथा जीत से बहुत दूर ही छूट जायेंगे । मजे की बात यह है कि संजय पवार और सर्वेश जोशी के नजदीकी भी/ही यह कह/बता रहे हैं कि संजय पवार का उद्देश्य चुनाव जीतना है भी नहीं - इसीलिए अपनी उम्मीदवारी घोषित करने के बावजूद संजय पवार अपनी उम्मीदवारी के अभियान चलाने को लेकर गंभीर नहीं हुए हैं । इन नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि संजय पवार की उम्मीदवारी के जरिए सर्वेश जोशी ने एसबी जावरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने की व्यूह-रचना की है । सर्वेश जोशी ने संजय पवार को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनाया/बनवाया ही इसलिए है क्योंकि संजय पवार, एसबी जावरे की ही जाति के हैं; और संजय पवार इस नाते से एसबी जावरे को मिलने वाले वोटों में तोड़फोड़ मचायेंगे । किसी को भी यह उम्मीद तो नहीं है कि संजय पवार की उम्मीदवारी के सहारे एसबी जावरे को चुनाव हरवाया जा सकता है, लेकिन सर्वेश जोशी और संजय पवार के कुछेक समर्थकों को यह विश्वास जरूर है कि संजय पवार की उम्मीदवारी के भरोसे एसबी जावरे के वोटों को कम अवश्य किया जा सकेगा, तथा एसबी जावरे को अपने चुनाव अभियान को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर किया जा सकेगा । 
एसबी जावरे को संजय पवार की उम्मीदवारी के मार्फ़त सेंट्रल काउंसिल के अपने चुनाव में 'फँसा' कर सर्वेश जोशी ने दरअसल रीजनल काउंसिल के अपने चुनाव को सुरक्षित बनाने का दाँव चला है । उनका आकलन है कि एसबी जावरे अपने चुनाव में व्यस्त होंगे, तो यशवंत कसार के लिए कम समय निकाल सकेंगे । यशवंत कसार को एसबी जावरे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । यशवंत कसार की उम्मीदवारी को सर्वेश जोशी के लिए बड़े खतरे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सर्वेश जोशी पिछली बार लुढ़कते/पुढ़कते ही जीत प्राप्त कर सके थे - और 21वें नंबर पर रहे थे । इस बार के चुनाव आते आते तक सर्वेश जोशी ने अपनी पिछली बार के बहुत से समर्थकों को अलग अलग कारणों से खो दिया है, जिस कारण उनके लिए अपनी सीट बचा पाना पहले से ही मुश्किल हो रहा था । यशवंत कसार की उम्मीदवारी ने उनकी मुसीबतों को और बढ़ाने का ही काम किया है । दरअसल यशवंत कसार की उम्मीदवारी के चलते सर्वेश जोशी के सामने पिछली बार उन्हें मिले मराठा वोटों के छिन जाने का खतरा पैदा हो गया है - इसके चलते सर्वेश जोशी के लिए रीजनल काउंसिल में अपनी सीट बचा पाना वास्तव में मुश्किल हो गया है । यशवंत कसार की उम्मीदवारी को चूँकि एसबी जावरे की प्रेरणा व प्रोत्साहन से प्रस्तुत हुआ माना/देखा जा रहा है, इसलिए आशंका और डर यह भी है कि एसबी जावरे ने यदि यशवंत कसार की खुली वकालत कर दी, तो फिर सर्वेश जोशी को कोई नहीं बचा सकेगा । 
एसबी जावरे किसी भी तरह से यशवंत कसार की मदद न कर सकें, इस वास्ते उन्हें घेरने के लिए सर्वेश जोशी ने संजय पवार को 'फील्डिंग' पर लगाया है । सर्वेश जोशी के समर्थकों का कहना है कि संजय पवार की उम्मीदवारी के जरिए एसबी जावरे को घेर कर यशवंत कसार को मिल सकने वाले समर्थन को कमजोर करने की चाल चली गई है । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि एसबी जावरे को संदेश भेजा गया है कि वह यदि यशवंत कसार की उम्मीदवारी को वापस कर/करा लें, तो संजय पवार की उम्मीदवारी भी वापस हो जाएगी - और एसबी जावरे बड़ी जीत प्राप्त करने की अपनी तैयारी को सफल कर सकेंगे । इसीलिए उम्मीदवारी घोषित करने के बावजूद संजय पवार अपनी उम्मीदवारी के अभियान को लेकर सुस्त बने हुए हैं - दरअसल उन्हें लगता है कि एसबी जावरे 'उनके' ऑफर को स्वीकार कर लेंगे और यशवंत कसार की उम्मीदवारी को वापस कर/करा लेंगे; इसलिए अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्हें कुछ करने की जरूरत ही क्या है ? एसबी जावरे और यशवंत कसार के समर्थकों ने हालांकि यशवंत कसार की उम्मीदवारी वापस होने की संभावना से स्पष्ट रूप से इंकार किया है । उनका कहना है कि संजय पवार की उम्मीदवारी से एसबी जावरे की उम्मीदवारी की जीत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, और यशवंत कसार को भी लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के लिए अच्छा समर्थन मिल रहा है, इसलिए सर्वेश जोशी की चाल में फँसने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है । संजय पवार के जरिए सर्वेश जोशी ने जो चाल चली है, उससे उन्हें सचमुच क्या फायदा मिलेगा - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन उनकी इस चाल से पुणे में चुनावी राजनीति का परिदृश्य रोमांचक जरूर हो गया है ।