नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देकर सुशील गुप्ता ने देश के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के रोटेरियंस को उदास और निराश करने के साथ-साथ असमंजस और संशय में डाल दिया है । रोटेरियंस दरअसल इस बात पर फूले फूले फिर रहे थे कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट की कुर्सी पर उनके बीच रहने वाला व्यक्ति बैठेगा । सुशील गुप्ता का एक बड़ा लंबा सक्रिय रोटरी जीवन रहा है, और प्रायः हर डिस्ट्रिक्ट में ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनकी रोटरी में कुल हैसियत/पूँजी और उपलब्धि यह है कि वह सुशील गुप्ता के नजदीक रहे हैं । कई डिस्ट्रिक्ट्स में दो/चार ऐसे लोग मिल जायेंगे जो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में सिर्फ इस वजह से 'जिंदा' हैं कि उनकी सुशील गुप्ता तक सीधी पहुँच है; डिस्ट्रिक्ट्स में कोई लफड़ा होता है, तो लफड़े से जुड़े लोग उसकी शरण में आते हैं कि भाई, सुशील गुप्ता के यहाँ ले चल ! सुशील गुप्ता काम तो शायद ही किसी के आए हों, लेकिन अपने तौर-तरीकों से उन्होंने अपना ऐसा ऑरा (आभामंडल) जरूर बनाया, जिसकी बदौलत उन्होंने तो उन्होंने, उनके नजदीकियों तक ने अपना अपना 'सिक्का' चला लिया । ऑरा के मामले में सुशील गुप्ता ने राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को टक्कर दी है; रोटरी में राजा साबू ने जो 'हैसियत' पाई उसे छू पाने में सिर्फ सुशील गुप्ता ही कामयाब हो सके हैं - कुछेक संदर्भ में सुशील गुप्ता का पलड़ा बल्कि भारी ही रहा है । राजा साबू की जो हैसियत बनी, वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के बाद बनी, जबकि सुशील गुप्ता ने प्रेसीडेंट नोमीनेट होने से पहले ही उस हैसियत को पा लिया - यही कारण है कि प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के लिए राजा साबू को चुनाव का सामना करना पड़ा था, लेकिन सुशील गुप्ता के सामने वैसी कोई समस्या पैदा नहीं हुई । राजा साबू ने अपने खुन्नसी व्यवहार के चलते अपने विरोधी व 'दुश्मन' भी खूब बनाये, जबकि सुशील गुप्ता ने अपने उदार रवैये के चलते विरोधियों व 'दुश्मनों' को भी 'अपना' बनाया । यही कारण रहा कि सुशील गुप्ता जब प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित हुए, तब देश में हर खेमे का रोटेरियन उत्साहित हुआ, उसे एक खास किस्म के भावनात्मक गर्व की अनुभूति हुई और प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता का अप्रत्याशित स्वागत हुआ ।
और यही कारण है कि प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से सुशील गुप्ता के इस्तीफे की खबर ने हर किसी को उदास और निराश किया है । बीमारी को इस्तीफा देने का कारण बताये जाने से लोगों के बीच असमंजस और पैदा हुआ है । रोटरी में हर तरफ पदों के लिए भयंकर किस्म की 'मारकाट', तिकड़म और झूठ-फरेब देखते रहे रोटेरियंस के लिए इस बात को हजम कर पाना मुश्किल हो रहा है कि ठीक हो सकने वाली बीमारी के कारण सुशील गुप्ता ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जैसा बड़ा पद यूँ ही छोड़ दिया है । सुशील गुप्ता को जबड़े संबंधी समस्या बताई जा रही है, जिसके चलते उनके लिए खाना-पीना और बोल पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा बना हुआ है । रोटेरियंस भी लेकिन मजेदार लोग हैं; अपना अपना डॉक्टरी-ज्ञान पेल कर हर कोई सवाल उठा रहा है कि यह न तो ऐसी बीमारी है जो लंबी चले और न ऐसी है कि ठीक न हो सके - तब फिर सुशील गुप्ता को इस्तीफा देने की जल्दी क्या पड़ गई ? सुशील गुप्ता के शुभचिंतकों की तरफ से इसके जबाव में कहा/बताया जा रहा है कि ऊपर से 'देखने' पर यह बीमारी ज्यादा गंभीर भले ही न लगे, लेकिन सोचने की बात यह है कि जब समस्या शुरू हुई होगी, तब सुशील गुप्ता ने ईलाज तो करवाया ही होगा; ईलाज के बावजूद समस्या खत्म होने की बजाये बढ़ती गई है - जिससे लग रहा है कि बीमारी उतनी सरल नहीं है, जितनी लोग समझ रहे हैं । शुभचिंतकों का यह भी कहना है कि सुशील गुप्ता एक आदर्शवादी व्यक्ति हैं और संगठन को प्राथमिकता देते हैं । बीमारी के चलते वह अपने पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं, और पता नहीं आगे कितना समय उन्हें अपनी जिम्मेदारियों से विमुख रहना पड़े - लिहाजा यह विचार करके कि उनकी अनुपस्थिति में संगठन के काम पर प्रतिकूल असर न पड़े, उन्होंने पद छोड़ने का फैसला कर लिया है । सुशील गुप्ता के लिए संगठन पहले है, और उन्होंने साबित कर दिया है कि अपनी निजी वजह से वह संगठन के काम पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ने देंगे ।
हिन्दुस्तानियों का किसी भी बात को लेकर कयास लगाने का जो स्वभाव है, जिसके चलते सीता तक को अग्निपरीक्षा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उसके चलते कई लोगों को लेकिन सुशील गुप्ता के शुभचिंतकों का तर्क हजम नहीं हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि सुशील गुप्ता के इस्तीफे के पीछे की कहानी कुछ और ही है, जिसे बीमारी की आड़ में छिपाया जा रहा है । यह कयास असल में रॉन बुर्टोन को रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाये जाने के तुरंत बाद ही सुशील गुप्ता द्वारा इस्तीफा देने से पैदा हुआ है । उल्लेखनीय है कि चेयरमैन के रूप में रॉन बुर्टोन का कार्यकाल कुल दो महीने ही बाकी बचा था, लेकिन फिर भी अचानक लिए गए फैसले में उन्हें हटा कर ब्रेंडा क्रेसी को बाकी दो माह के लिए उनकी चेयर दे दी गई है । सुशील गुप्ता भी हाल ही के वर्षों में रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी रहे हैं । यदि यह सिर्फ एक इत्तफाक है, तो भी बहुत संदेह पैदा करने वाला इत्तफाक है कि 22 अप्रैल को रॉन बुर्टोन को ट्रस्टी चेयर से हटाया जाता है, और चार दिन बाद ही पूर्व ट्रस्टी सुशील गुप्ता प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे देते हैं । यह संदेह तब और बढ़ जाता है, जब सुशील गुप्ता के नजदीकी उनके इस्तीफे पर हैरानी व्यक्त करते हैं और कहते/बताते हैं कि सुशील गुप्ता से उनकी रोज ही बात होती है, लेकिन उन्हें यह आभास नहीं मिला कि सुशील गुप्ता इतना बड़ा फैसला करने वाले हैं । इस तरह की बातों से लोगों के बीच संशय है कि हो न हो रोटरी फाउंडेशन में कुछ बड़ी ही गड़बड़ हुई है, जिसके कारण रॉन बुर्टोन को फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाया गया है, और सुशील गुप्ता का प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा 'लिया' गया है । हालाँकि रॉन बुर्टोन को हटाने के तथा सुशील गुप्ता के इस्तीफे के जो जो कारण बताये गए हैं, उनमें कोई साम्य नहीं बैठता दिखता है; लेकिन 'टाइमिंग' के चलते सुशील गुप्ता का इस्तीफा संशय में जरूर आ जाता है । मौजूदा समय ऐसा है, जिसमें दुनिया में, समाज में, देश में और रोटरी में हम बड़ी बड़ी 'मूर्तियों' को 'ढहते' हुए देख रहे हैं, तब फिर कोई भी बुरी बात चौंकाती नहीं है; इसलिए भी सुशील गुप्ता का प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से हुआ इस्तीफा संशय के घेरे में आ जाता है ।