नई दिल्ली । विजय गुप्ता और अनुज गोयल के नजदीकियों का दावा है कि इस बार तो वह निश्चित ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट बन जायेंगे । दोनों
के नजदीकियों के इस दावे में समस्या लेकिन यही है कि इंस्टीट्यूट का वाइस
प्रेसीडेंट तो एक ही बनेगा - ऐसे में दोनों के दावों में किसी एक का दावा
तो कोरा दावा ही रह जाना है । दोनों में से लेकिन कोई भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि उसका दावा ख़ारिज हो सकता है ।
विजय गुप्ता इस बार वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने के लिए इस कारण से
आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्हें इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट सुबोध
अग्रवाल और वाइस प्रेसीडेंट के रघु के सहयोग/समर्थन का भरोसा है ।
विजय
गुप्ता का कहना है कि सुबोध अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में उन्होंने जिस
तरह से सुबोध अग्रवाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है, उसके चलते
सुबोध अग्रवाल उनसे बहुत ही खुश हैं और खुश होने के कारण सुबोध अग्रवाल
निश्चित ही उन्हें वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने में मदद करेंगे । के रघु को
लेकर विजय गुप्ता का दावा है कि पिछली बार के रघु को वाइस प्रेसीडेंट
चुनवाने में चूँकि उन्होंने बहुत मेहनत और तिकड़म की थी तथा कई लोगों का
समर्थन के रघु को दिलवाया था इसलिए इस बार 'अपने' लोगों का समर्थन के रघु
उन्हें दिलवायेंगे ।
विजय गुप्ता का एक जोरदार तर्क यह भी है कि वह जब
के रघु को वाइस प्रेसीडेंट चुनवा सकते हैं, तो अपने आप को क्यों नहीं चुनवा
सकते हैं ? विजय गुप्ता ने दावा किया है कि पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत
चोपड़ा की मदद भी उन्हें मिल रही है । विजय गुप्ता ने अपने नजदीकियों को
बताया/जताया है कि जब इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट के साथ-साथ एक पूर्व
प्रेसीडेंट का सहयोग/समर्थन उनके साथ है तो फिर भला वह क्यों नहीं चुने
जायेंगे ?
अनुज गोयल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम कुमार अग्रवाल
का भरोसा है । उत्तम कुमार अग्रवाल हालाँकि इंस्टीट्यूट की काउंसिल में
नहीं हैं, लेकिन फिर भी काउंसिल के कई सदस्यों पर उनका असर/प्रभाव
माना/बताया जाता है ।
अनुज गोयल के साथ उत्तम कुमार अग्रवाल की अच्छी
दोस्ती रही है - उस दोस्ती के चलते अनुज गोयल को यद्यपि काफी बदनामी भी
उठानी पड़ी है, लेकिन उन दोनों की दोस्ती पर उससे कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा
। उत्तम कुमार अग्रवाल का इंस्टीट्यूट की मौजूदा काउंसिल के कुछेक
सदस्यों के साथ तो अच्छे संबंध हैं ही, साथ ही समर्थन जुटाने का हुनर भी
उन्हें खूब आता है । इसी हुनर के चलते वह ऐसी स्थिति में (वाइस) प्रेसीडेंट
चुने गए थे, जबकि किसी को उनके चुनने/बनने की कतई उम्मीद नहीं थी ।
प्रेसीडेंट के रूप में उत्तम कुमार अग्रवाल के साथ अनुज गोयल का 'जिस तरह'
का एसोसिएशन रहा था, उसके चलते उत्तम कुमार अग्रवाल का एक एजेंडा/लक्ष्य
अनुज गोयल को इंस्टीट्यूट का (वाइस) प्रेसीडेंट बनवाना/चुनवाना भी है ।
पिछले वर्षों में उत्तम कुमार अग्रवाल ने हालाँकि अनुज गोयल को चुनवाने का
प्रयास किया था, लेकिन तब उनकी दाल नहीं गाल सकी ।
अनुज गोयल काउंसिल
सदस्यों के बीच दरअसल इतनी बुरी तरह से बदनाम हैं, कि हर कोई यही मानता है
कि अनुज गोयल यदि इंस्टीट्यूट के (वाइस) प्रेसीडेंट बनते हैं तो यह
इंस्टीट्यूट के लिए और प्रोफेशन के लिए बहुत ही बदकिस्मती की बात होगी ।
असल में, बदनामी के कारण ही अनुज गोयल की उम्मीदवारी को कोई गंभीरता से
नहीं लेता है । अनुज गोयल लेकिन इस बार बहुत उम्मीद में हैं । बदनामी वाले
पक्ष से वह इसलिए चिंतित नहीं हैं क्योंकि बदनामी के बाद भी उत्तम कुमार
अग्रवाल और सुबोध अग्रवाल भी (वाइस) प्रेसीडेंट बने ही न !
अनुज गोयल
आश्वस्त हैं क्योंकि वह जानते हैं कि फूलन देवी भी संसद का चुनाव जीती ही
थी । इसी विश्वास के भरोसे अनुज गोयल ने इस बार काफी मेहनत की है और
काउंसिल के सदस्यों के वोट जुटाने के लिए उन्हें हर तरह से घेरने का काम
किया है ।
विजय गुप्ता और अनुज गोयल की तैयारी ने लेकिन चरनजोत सिंह नंदा के
गेम प्लान को गड़बड़ कर दिया है । चरनजोत सिंह नंदा ने भी वाइस प्रेसीडेंट
बनने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी हुई है ।
मजे की बात लेकिन यह है कि
अपनी निरंतर तैयारी के बाद भी चरनजोत सिंह नंदा अपने चुने जाने को लेकर
खुद ही बहुत आश्वस्त नहीं हैं - जैसे कि विजय गुप्ता और अनुज गोयल हैं ।
चरनजोत सिंह नंदा दरअसल अपना अभियान खुद ही चला रहे हैं, उन्हें किसी
'नामी' व्यक्ति का समर्थन घोषित रूप से नहीं सुना जा रहा है - इसलिए उनकी
उम्मीदवारी में 'वजन' ज्यादा नहीं बन पा रहा है । नीलेश विकमसे, संजीव
माहेश्वरी, मनोज फडनिस, संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी को भी किसी बड़े नेता का
समर्थन हालाँकि प्राप्त नहीं है -
लेकिन फिर भी उनकी उम्मीदवारी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है तो इसका कारण इनके अपने अपने व्यक्तित्व में हैं ।
इन्होँने अपने कामकाज, अपने व्यवहार, अपनी सक्रियता और अपनी सामर्थ्य से
अपनी पहचान बनाई है और अब उसी पहचान के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में
उम्मीदवार बने हैं ।
वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी प्रक्रिया से परिचित लोगों का मानना और
कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव एक घोर अनिश्चितता भरा चुनाव है और
किसी के लिए भी यह समझना/पहचानना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव भी है
कि वाइस प्रेसीडेंट पद की कुर्सी पर कौन बैठेगा । अक्सर ही, जीतने/बनने
वाले को भी यह भरोसा नहीं होता है कि वह जीत/बन ही जायेगा ।
यह एक ऐसा
चुनाव है जहाँ हर पल नए समीकरण बनते और बिगड़ते हैं, इसलिए किसी नए बने
समीकरण के हवाले से अनुमान लगाना धोखापूर्ण हो जाता है । इसके बावजूद
उम्मीदवारों को अनुमानों के आधार पर और उनके भरोसे ही काम करना पड़ता है ।
इस बार भी वाइस प्रेसीडेंट पद के सभी उम्मीदवार अपने अपने अनुमानों के
आधार पर ही बनाई गईं अपनी अपनी रणनीतियों के आधार पर ही अपने लिए मौका
बनाने का प्रयास कर रहे हैं । दूसरे उम्मीदवार जहाँ अपने अपने तरीके से
सिर्फ प्रयास कर रहे हैं, वहाँ विजय गुप्ता और अनुज गोयल प्रयासों के
साथ-साथ जीत का दावा भी कर रहे हैं ।
उनका दावा सच होगा या नहीं, यह तो
बाद में पता चलेगा, अभी लेकिन उनके दावों ने इंस्टीट्यूट के वाइस
प्रेसीडेंट के चुनाव को खासा दिलचस्प बना तो दिया है ।