Sunday, February 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पड़ताल फर्जी क्लब्स के असली मुजरिम की और चुनाव पर पड़ने वाले उनके असर की उर्फ़ चुनाव 'मुर्दा' लोगों के नहीं, बल्कि 'जिन्दा' लोगों के समर्थन से जीते जाते हैं

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में जिस हार का सामना करना पड़ा है, उसके लिए उन्होंने और उनके समर्थक नेताओं ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक टुटेजा के फर्जी क्लब्स को जिम्मेदार ठहराया है । हार से बौखलाए विक्रम शर्मा और उनके समर्थक नेता दीपक टुटेजा पर जैसे टूट पड़े हैं और उन्होंने दीपक टुटेजा के खिलाफ अपमानजनक व अशालीन फब्तियों का ढेर लगा दिया है । दीपक टुटेजा को फर्जी क्लब्स के एक बड़े सौदागर के रूप में पेंट किया जा रहा है और ऐसा प्रचार किया जा रहा है जैसे डिस्ट्रिक्ट में फर्जी क्लब्स के लिए एक अकेले दीपक टुटेजा ही जिम्मेदार हैं । दीपक टुटेजा के पास सात फर्जी क्लब होने की बात कही/सुनी जाती है, जिनके नाम दिल्ली आनंदवन, दिल्ली आरती, दिल्ली सेंट्रल, दिल्ली फेडरल, दिल्ली हरी नगर, दिल्ली जनकपुरी और नई दिल्ली द्धारका कैंप्स हैं । इन सातों क्लब के वोटों की संख्या बीस है । फर्जी क्लब्स के मामले में दीपक टुटेजा को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उससे लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में यही कुल सात क्लब फर्जी हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में लेकिन 45 फर्जी क्लब बताये जाते हैं । इन 45 में से दीपक टुटेजा के पास यदि सिर्फ सात क्लब ही हैं तो बाकी क्लब किसके/किनके पास हैं; और सिर्फ सात क्लब होने मात्र से फर्जी क्लब्स के प्रति विरोध का सारा ठीकरा दीपक टुटेजा के सिर पर ही क्यों फोड़ा जा रहा है ? दीपक टुटेजा को निशाना बनाने की आड़ में कहीं असली मुजरिम को बचाने की कोशिश तो नहीं की जा रही है ? असली मुजरिम कौन है - आईये इसे तथ्यों के आईने में देखें । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हर्ष बंसल के पास 10 फर्जी क्लब हैं, जिनके नाम दिल्ली आनंद निकेतन, दिल्ली अशोक फोर्ट, दिल्ली भगवान नगर, दिल्ली दीपाली, दिल्ली किरन गैलेक्सी, दिल्ली महानगर रॉयल, दिल्ली सुविधा कुञ्ज, हाँसी प्रेरणा, हाँसी युवा, जींद एक्टिव हैं । इन 10 क्लब्स के वोटों की संख्या 29 है । इस तरह साफ है कि फर्जी क्लब्स की संख्या और उनके वोटों की संख्या के मामले में दीपक टुटेजा की तुलना में हर्ष बंसल का पलड़ा भारी है और तथ्यों के इस आईने में फर्जी क्लब्स का असली मुजरिम हर्ष बंसल हैं । यहाँ ध्यान में रखने वाला तथ्य यह भी है कि डिस्ट्रिक्ट में फर्जी क्लब बना कर राजनीति करने का फार्मूला सबसे पहले हर्ष बंसल की ही खोपड़ी में आया था; और डिस्ट्रिक्ट को फर्जी क्लब्स की जो देन है उसके जिम्मेदार हर्ष बंसल ही हैं ।
हर्ष बंसल की बदकिस्मती यह रही कि उनके इस फार्मूले को बाद में दूसरे लोगों ने भी हथिया लिया - और फिर हुआ यह कि हर्ष बंसल भले ही फर्जी क्लब्स के मामले में गुरु रहे हों, लेकिन वह तो गुड़ ही रह गए और उनके चेले शक्कर हो गए । मजे की बात यह रही कि ज्यादा फर्जी क्लब्स और उनके वोट रखने के बावजूद हर्ष बंसल हर बार अपने उम्मीदवार को जितवाने में फेल हो जाते हैं, और कम फर्जी क्लब्स व उनके वोट रखने के बावजूद दीपक टुटेजा अपने उम्मीदवार को चुनाव जितवा लेते हैं । ऐसा होने का कारण दोनों की सोच के, दोनों के तौर-तरीकों के, दोनों के व्यवहार और दोनों के व्यक्तित्व के अंतर में है । हर्ष बंसल सोचते हैं कि वह सिर्फ फर्जी वोटों से ही अपने उम्मीदवार को चुनाव जितवा देंगे; बार-बार ठोकरें खाने के बाद भी उनकी अकल में यह बात घुसती ही नहीं है कि चुनाव का फैसला मुर्दा लोग नहीं करते, बल्कि जिंदा लोग करते हैं ।
इसे वीके हंस के मामले से समझा जा सकता है : वीके हंस को चुनवाने का ठेका जब हर्ष बंसल ने लिया था, तब हर्ष बंसल ने करीब चालीस फर्जी क्लब बनाये थे और सभी का गणित था कि वीके हंस 50 वोटों से जीतेंगे, वीके हंस लेकिन तब 80 वोटों से हार गए थे । पिछले लायन वर्ष में जब वीके हंस फिर से उम्मीदवार बने और उन्हें दीपक टुटेजा की मदद का भरोसा था, तब भी वोटों की गिनती के 'आंकड़े' उनकी जीत के पक्ष में नहीं थे । लेकिन हर्ष बंसल की एक मूर्खता ने वीके हंस का काम आसान कर दिया । चुनाव से पहले जो प्रोपेगैंडा होता है और उसमें जो झूठ-सच बोला जाता है उसमें डिस्ट्रिक्ट के एक वरिष्ठ लायन एसी दासन के क्लब को हर्ष बंसल ने अपनी तरफ दिखाया, जिसका एसी दासन ने विरोध किया । एसी दासन के विरोध से चिढ़ कर हर्ष बंसल ने एसएमएस किया कि 'एसी दासन है कौन ?' यह ठीक है कि चुनावी राजनीति में अपनी तिकड़मी चालों से जो लोग खिलाड़ी समझे जाते हैं, उनमें एसी दासन का नाम न आता हो - लेकिन एसी दासन कोई ऐसे व्यक्ति भी नहीं हैं जिनके लिए हर्ष बंसल यह कहें कि 'एसी दासन हैं कौन ?' 'मुर्दा' लोगों पर भरोसा करते हुए हर्ष बंसल ने एक 'जिंदा' व्यक्ति का तिरस्कार किया और उसे भड़का दिया । दीपक टुटेजा ने क्या किया ? 'मुर्दा' लोग उनकी जेब में भी थे, लेकिन फिर भी वह जिंदा लोगों का शिकार करने के लिए निकले हुए थे और उन्होंने अपने सबसे बड़े दुश्मन राकेश त्रेहन का शिकार कर लिया । वीके हंस को चुनाव जितवाने की मुहिम में जुटे दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा ने राकेश त्रेहन की कमजोरियों को पहचाना और जाल बिछाया - उन्होंने राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए समर्थन का पत्र दिया और राकेश त्रेहन ने जितने पैसे माँगे उतने पैसे दिए । यह सब पाते हुए भी राकेश त्रेहन ने उन्हें छकाया तो वह छके भी - और यह सब करते हुए उन्होंने राकेश त्रेहन से अपने कुछेक क्लब्स को क्लियर करवाने का ऐसा काम करवा लिया जो यदि नहीं होता तो वीके हंस का जीतना असंभव ही होता । यानि राकेश त्रेहन यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन के पद का और कुछ पैसों का लालच नहीं करते तो आज वीके हंस की जगह सुरेश जिंदल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते ।
हर्ष बंसल और दीपक टुटेजा की सोच में और तौर-तरीके में यही एक बड़ा अंतर है । हर्ष बंसल के लिए अपने उम्मीदवार को जितवाना महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि अपनी निजी खुन्नस निकालना महत्वपूर्ण होता है । इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में दिल्ली में हुई मीटिंग में उन्होंने घोषणा कर दी कि उनके क्लब्स वीके हंस को समर्थन नहीं देंगे । उनके लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने से जयादा जरूरी काम वीके हंस के साथ अपनी खुन्नस निकलना था - जिसका नतीजा यह हुआ कि वह न वीके हंस का कुछ बिगाड़ सके और न विक्रम शर्मा को चुनाव जितवा सके । दूसरी तरफ आरके शाह के  समर्थक नेता थे, जिनमें से कुछ नरेश गुप्ता को सबक तो सिखाना चाहते थे लेकिन उन्होंने भी नरेश गुप्ता के खिलाफ अपनी खुंदक को जाहिर कभी नहीं होने दिया । आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का एक ही एजेंडा था - आरके शाह को जितवाओ ! उन्होंने इसी एक एजेंडे पर ध्यान दिया और सफल रहे ।
विक्रम शर्मा की हार के लिए विक्रम शर्मा और उनके समर्थक नेता लगातार रोना मचा रहे हैं कि आरके शाह को फर्जी क्लब्स के कारण जीत मिली है । किंतु तथ्य बताते हैं कि सच्चाई इसके विपरीत है । फर्जी क्लब्स के वोट यदि आरके शाह को मिले हैं तो वह विक्रम शर्मा को भी मिले हैं, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में दोनों खेमों के कई नेताओं के पास फर्जी क्लब्स हैं । हर्ष बंसल के बारे में बता ही चुके हैं । अजय बुद्धराज के पास 4 फर्जी क्लब्स है : दिल्ली मायापुरी, दिल्ली फुलवारी, दिल्ली सुप्रीम और नई दिल्ली हिमगिरी । इनके वोट 6 हैं । राकेश त्रेहन के पास 10 वोटों के 4 क्लब्स हैं : दिल्ली जेपी कैंप्स, दिल्ली कृष्णा, दिल्ली राइसिंग सन और नई दिल्ली सार्थक । नरेश गुप्ता के पास 9 वोटों वाले 4 फर्जी क्लब्स हैं : दिल्ली मंथन, दिल्ली सहयोग, दिल्ली समर्पण और नई दिल्ली युवा कैम्पस । डीके अग्रवाल के पास भी 2 वोटों वाला एक फर्जी क्लब - दिल्ली जीटीबी नगर है । इनके सब मिला कर विक्रम शर्मा को 56 फर्जी वोट मिले । आरके शाह के मामले में दीपक टुटेजा के 20 फर्जी वोटों की बात पहले बता चुके हैं । उनके अलावा विजय शिरोहा के पास 14 वोटों वाले 5 फर्जी क्लब हैं : बहादुरगढ़, बहादुरगढ़ क्रिएटिव कैंप्स, बहल जागृति, झज्जर टाउन और सांपला टाउन । अरुण पुरी के पास 10 वोटों वाले 4 क्लब हैं : दिल्ली क्राउन, दिल्ली पदम, दिल्ली रोहिणी और नई दिल्ली पश्चिम विहार । सुशील खरिंटा के पास 12 वोटों के 6 क्लब्स हैं : आदमपुर, दिल्ली आन, भटटू, हाँसी आस्था, हिसार आस्था और मेहम । इनके मिला कर आरके शाह को भी 56 फर्जी वोट मिले ।
इस तरह, फर्जी वोटों की जहाँ तक बात है - आरके शाह और विक्रम शर्मा को बराबर-बराबर वोट ही मिले हैं । जाहिर है कि विक्रम शर्मा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव मुर्दा लोगों के कारण नहीं, बल्कि जिंदा लोगों के कारण हारे हैं ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं के बीच तालमेल की कमी रही और उनमें आपस में विश्वास का अभाव था । वह विक्रम शर्मा को जिताने के लिए प्रयास करने की बजाये अपने अपने फर्जी क्लब्स के ड्यूज जुगाड़ने में दिलचस्पी लेते हुए दिख रहे थे । उन्हें दरअसल विक्रम शर्मा पर भरोसा नहीं था कि विक्रम शर्मा से उन्हें समय से पैसे मिल जायेंगे । विक्रम शर्मा अपने क्लब के लोगों से चंदा जुगाड़ने में व्यस्त रहे । इस कारण लोगों के बीच कैम्पेन ही नहीं हो पाया और विक्रम शर्मा तथा उनके समर्थक धूल चाटते हुए नजर आये ।
अपनी नाकामी, मूर्खताओं के कारण लगातार मिल रही नाकामियों से बौखलाए विक्रम शर्मा के समर्थको ने दीपक टुटेजा और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ अशालीन किस्म का प्रचार अभियान छेड़ दिया है । उन्हें लगता है कि इस तरह की हरकतों से वह सच्चाई पर पर्दा डाल सकेंगे तथा दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा को बदनाम करके अपना काला चेहरा छिपा लेंगे और अपना उल्लू सीधा करते रह सकेंगे ।