नई दिल्ली । विक्रम शर्मा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुई पराजय से बौखलाए उनके समर्थक नेता पूरी तरह नंग-नाच पर उतर आये हैं । विक्रम
शर्मा की उम्मीदवारी के एक समर्थक हर्ष बंसल हालाँकि पहले से ही अपनी
कुत्सित और नीच किस्म की हरकतों के लिए बदनाम हैं, लेकिन इस बार लग रहा है
कि उन्हें अपने जैसे और भी कुछ सहयोगी मिल गए हैं । सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीतने वाले आरके शाह के समर्थक नेताओं के
खिलाफ जिस तरह की नामी-बेनामी चिट्ठियाँ धड़ाधड़ आईं हैं, जिस जिस तरह की
शिकायतें दर्ज कराईं गईं हैं - उससे एक बात बहुत साफ दिख रही है कि सेकेंड
वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में आया फैसला विक्रम शर्मा की
उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को हजम नहीं हो पाया है और विक्रम शर्मा की
हार से वह बुरी तरह बौखला गए हैं । बौखलाहट में वह गाली-गलौच पर उतर आये हैं ।
विक्रम शर्मा की हार का फैसला आने के बाद, विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने कहीं अपनी पहचान बता कर तो
कहीं - कायरों की तरह - अपनी पहचान छिपा कर आरके शाह की उम्मीदवारी के
समर्थक नेताओं के खिलाफ जो हमला बोला है, उसे देख/जान कर कई लोगों को
हैरानी हुई है । लोगों का कहना/पूछना है कि इस तरह से अपनी बौखलाहट जता
कर विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता आखिर साबित क्या करना चाहते
हैं ? विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता साबित क्या करना चाहते
हैं, इसे समझने में एक छोटी-सी कहानी मदद कर सकती है :
एक बंदर को जंगल की व्यवस्था चलाने/संभालने का मौका मिला । बंदर
ने व्यवस्था संभाली ही थी कि एक बकरी शिकायत ले कर आई कि उसके बच्चे को
शेर ले गया है । बकरी ने बंदर से गुहार लगाई कि वह शेर से उसका बच्चा वापस
दिलवाये । बंदर ने पहले तो शेर के खिलाफ बयानबाजी की कि 'मेरी व्यवस्था में
शेर की मजाल कैसे हुई कि वह तुम्हारा बच्चा ले गया', 'मैं उसे छोड़ूँगा
नहीं', आदि-इत्यादि । फिर बंदर बकरी को लेकर शेर की गुफा की तरफ गया । गुफा
के नजदीक पहुँच कर बंदर ने गुलाटियाँ खानी और उछल-कूद करना शुरू किया ।
बकरी ने थोड़ी देर तो बंदर का यह तमाशा देखा और फिर पूछा कि तुम यह क्या कर
रहे हो, मेरे बच्चे को छुड़वाने के लिए कुछ कर क्यों नहीं रहे हो । बंदर
ने इस पर जबाव दिया कि तुम देख तो रही ही हो, कि मैं कितनी मेहनत कर रहा
हूँ । मेरी मेहनत में तुम्हें कोई कमी दिख रही है क्या ? मेरा काम तो मेहनत
करना है, तुम्हारा बच्चा छूटेगा या नहीं - यह बच्चे की और तुम्हारी किस्मत
है ।
इस कहानी के बंदर की तरह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक
नेताओं को भी विक्रम शर्मा के सामने दरअसल मेहनत करके दिखाना है और यही वह
दिखा रहे हैं । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए ऐसा
करना दरअसल इसलिए जरूरी है क्योंकि उन्होंने विक्रम शर्मा से उनकी
उम्मीदवारी का समर्थन करने के पैसे लिए हैं; वह विक्रम शर्मा को सेकेंड
वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवा तो नहीं सके, इसलिए उनके लिए
मेहनत करके दिखाना जरूरी हो गया है, ताकि वह उनसे लिए गए पैसों को जस्टिफाई
कर सकें ।
विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को लगता है कि
शिकायत करने की, रोने की जैसे बीमारी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा
ने इन्हें पूरे समय बुरी तरह रुलाये भी रखा है । मौजूदा लायन वर्ष के शुरू
में ही इन्होंने विजय शिरोहा की लायन इंटरनेशनल में शिकायत की थी । लायन
इंटरनेशनल ने लेकिन इनकी शिकायत को कोई तवज्जो नहीं दी । तवज्जो देने लायक
कोई बात थी ही नहीं । व्यवस्था संबंधी छोटी-छोटी बातें ही थीं - जो यदि सच
भी थीं, तो भी ऐसी महत्व की नहीं थीं कि लायंस इंटरनेशनल उनका संज्ञान
ले । अब भी, ये इस बात को लेकर रोना मचाये हुए हैं कि विजय शिरोहा ने
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस जल्दी कर ली । तकनीकी रूप से, नियम-कानून के संदर्भ
में इसमें कुछ भी गलत नहीं है । यह सच है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस
जल्दी कराने का विजय शिरोहा का फैसला एक राजनीतिक फैसला था; विजय शिरोहा ने
राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए यह फैसला किया था - इसका मुकाबला
राजनीतिक चतुराई से ही किया जा सकता था, किया जाना चाहिए था; आप आवश्यक
राजनीतिक चतुराई नहीं दिखा सके और चुनाव हार गए तो अब रोना-धोना क्यों
मचाये हुए हो ?
विजय शिरोहा ने इन्हें कुछ ज्यादा ही गहरी चोट दी हुई है । विजय शिरोहा पर आरोप लगाने की कोशिश में इन्होँने यह आरोप अभी फिर दोहराया कि नया लायन होते हुए भी विजय शिरोहा ने डिस्ट्रिक्ट के अनुभवी लायन प्रदीप जैन को चुनाव हरा दिया और गवर्नर बन बैठे । अब इसमें आरोप वाली बात भला क्या है ? विजय शिरोहा और प्रदीप जैन के बीच जब चुनाव हो रहा था, तब वोट देने वाले लोगों को अच्छे से पता था कि विजय शिरोहा को लायनिज्म में अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं और प्रदीप जैन डिस्ट्रिक्ट के धुरंधर लायन हैं - लेकिन फिर भी बहुमत का समर्थन विजय शिरोहा को मिला और वह गवर्नर बने तो इसमें विजय शिरोहा की भला क्या गलती है और इसके लिए उन्हें दोष कैसे दिया जा सकता है ? दरअसल इसी तरह के बेमतलब के आरोपों से विजय शिरोहा को घेरने की कोशिश की गई, जिसका कोई नतीजा नहीं ही निकलना था और न निकला ।
विजय शिरोहा ने इन्हें कुछ ज्यादा ही गहरी चोट दी हुई है । विजय शिरोहा पर आरोप लगाने की कोशिश में इन्होँने यह आरोप अभी फिर दोहराया कि नया लायन होते हुए भी विजय शिरोहा ने डिस्ट्रिक्ट के अनुभवी लायन प्रदीप जैन को चुनाव हरा दिया और गवर्नर बन बैठे । अब इसमें आरोप वाली बात भला क्या है ? विजय शिरोहा और प्रदीप जैन के बीच जब चुनाव हो रहा था, तब वोट देने वाले लोगों को अच्छे से पता था कि विजय शिरोहा को लायनिज्म में अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं और प्रदीप जैन डिस्ट्रिक्ट के धुरंधर लायन हैं - लेकिन फिर भी बहुमत का समर्थन विजय शिरोहा को मिला और वह गवर्नर बने तो इसमें विजय शिरोहा की भला क्या गलती है और इसके लिए उन्हें दोष कैसे दिया जा सकता है ? दरअसल इसी तरह के बेमतलब के आरोपों से विजय शिरोहा को घेरने की कोशिश की गई, जिसका कोई नतीजा नहीं ही निकलना था और न निकला ।
आरोप लगाने वाले नेताओं की समस्या लेकिन यह है कि उन्हें 'मेहनत
करते हुए' दिखना है, इसलिए वह तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं और झमेले खड़े
करने की कोशिशों में लगे हैं । ऐसी कोशिशों से लेकिन उनकी फजीहत और हो रही
है । एक उदाहरण देखें : विजय शिरोहा के विरोधियों ने एक नियम यह खोज लिया
कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ शिकायत को निवृतमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के
यहाँ दर्ज करवाया जा सकता है । बस उन्हें लगा कि अब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की गर्दन नाप सकते हैं ।
किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ज्यादा होशियार निकले । उन्होंने निवृतमान
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन को लिखा कि उन्हें सिर्फ शिकायत स्वीकार
करने का अधिकार है । राकेश त्रेहन को झटका देते हुए विजय शिरोहा ने उन्हें
लिखा कि शिकायत के साथ जो रकम जमा होने की बात उन्होंने स्वीकार की है, उस
रकम को अपने पास रखने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है इसलिए उस रकम को वह
तुरंत या तो डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को भेजे और या इंटरनेशनल कार्यालय को । विजय
शिरोहा से मिले इस आदेश ने राकेश त्रेहन को सुन्न कर दिया है । राकेश
त्रेहन के लिए इसका जबाव देते हुए नहीं बन रहा है और शिकायत के साथ मिली
रकम को उन्होंने अभी तक भी न डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को भेजा है और न
इंटरनेशनल कार्यालय को । दरअसल इसी तरह से बिना सोचे-विचारे काम करने
के कारण विजय शिरोहा के विरोधियों को पहले विजय शिरोहा से हारना पड़ा और फिर
विजय शिरोहा के उम्मीदवार से भी हारना पड़ा है ।
हारने के बाद भी लेकिन उन्हें मेहनत करना पड़ रही है और कोई शक नहीं कि मेहनत करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । उनकी इस मेहनत से विक्रम शर्मा को लेकिन न पहले कोई फायदा हुआ और न आगे कुछ फायदा होगा ।
कहानी वाले बंदर की तरह विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को भी पता है कि वह
विक्रम शर्मा का कोई फायदा नहीं करा सकते हैं, वह तो बस विक्रम शर्मा से
लिए गए पैसों को जस्टिफाई करने के लिए उछल-कूद मचा रहे हैं ।