Monday, March 11, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की लड़ाई में विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल के तेवरों को देख कर सुरेश जिंदल अपनी उम्मीदवारी को फ़िलहाल स्थगित करने पर मजबूर हुए


रोहतक/नई दिल्ली । विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल ने मिलकर डिस्ट्रिक्ट के दिल्ली के नेताओं की राजनीति में ऐसा पंक्चर किया है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर होने वाली सारी राजनीति का तमाशा ही बन गया है । दिल्ली के नेताओं ने एकसाथ मिल कर जिन सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार घोषित किया था, विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल के कारण उन सुरेश जिंदल के लिए अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में अभियान चलाना तक मुश्किल हो गया है और इसीलिये उन्हें रोहतक में घोषित की गई अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । सिर्फ इतना ही नहीं, सुरेश जिंदल अपनी उम्मीदवारी के समर्थन को लेकर तैयार किये गए अपने दूसरे कार्यक्रमों को भी स्थगित करने के लिए मजबूर हुए हैं । इस तरह, सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी ही संकट में पड़ गई है ।
दिल्ली के कुछेक नेताओं ने हालाँकि सुरेश जिंदल को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि उन्हें विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल की चिंता नहीं करना चाहिए तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम जारी रखना चाहिए, लेकिन सुरेश जिंदल ने लगता है कि तय कर लिया है कि उन्हें यदि विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल का समर्थन नहीं मिला तो फिर वह उम्मीदवार नहीं बनेंगे । विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल का सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी से विरोध सिर्फ इस बात को लेकर है कि सुरेश जिंदल उन्हें विश्वास में लिए बिना ही उम्मीदवार बन गए हैं । सुरेश जिंदल की इस 'हरकत को इन्होंने बड़ी होशियारी से 'हरियाणा के लोगों के अपमान' के साथ जोड़ दिया है । उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले राजिंदर बंसल ने पहल करके रोहतक में हरियाणा के लोगों की एक मीटिंग आयोजित की थी, जिसका कुल लुब्बोलुबाब यह था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संदर्भ में हरियाणा की बारी के समय हरियाणा के लोगों को उम्मीदवार चुनने का मौका मिलना चाहिए । उक्त मीटिंग में विजय शिरोहा की उपस्थिति को सुनिश्चित करके राजिंदर बंसल ने एक बड़ी 'जीत' प्राप्त की थी, हालाँकि तब उनकी इस 'जीत' को दूसरे नेताओं ने इग्नोर ही किया था । दरअसल, उस समय इस बात को कोई समझ ही नहीं पाया कि उक्त मीटिंग से राजिंदर बंसल ने 'पाया' क्या ? इसीलिये किसी ने भी राजिंदर बंसल की 'चालों' को गंभीरता से नहीं लिया ।
यही कारण रहा कि दिल्ली के नेताओं ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को हरी झंडी देते समय इस बात का जरा भी ख्याल नहीं रखा कि राजिंदर बंसल इस हरी झंडी के बावजूद सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी की ट्रेन को रोक लेंगे । दिल्ली के नेताओं ने चूँकि चंद्रशेखर मेहता को साध लिया था, इसलिए उन्होंने मान लिया था कि अब राजिंदर बंसल ही क्या कर लेंगे ? राजिंदर बंसल को इग्नोर करने के साथ-साथ दिल्ली के नेताओं ने विजय शिरोहा को भी अनदेखा करने का एक और दुस्साहस किया । बस यही दुस्साहस उन्हें भारी पड़ा । राजिंदर बंसल ने विजय शिरोहा के साथ मिल कर - जिसकी आधार-भूमि वह पहले ही तैयार कर चुके थे - हरियाणा से आने वाले उम्मीदवार का फैसला हरियाणा के लोगों द्धारा तय करने का नारा उछाला । इसके बाद सुरेश जिंदल के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो गया । सुरेश जिंदल ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु रोहतक में जो मीटिंग बुलाई उसमें रोहतक के अधिकतर लोगों के अनुपस्थित रहने का उन्हें जैसे ही आभास हुआ, उन्होंने उक्त मीटिंग स्थगित ही कर दी । सुरेश जिंदल के लिए बुरी बात यह हुई कि हरियाणा के जिन भी नेताओं से उन्होंने समर्थन को लेकर बात की, उनसे उन्हें यही ताना सुनने को मिला कि उम्मीदवार बनने के लिए तो हमसे सलाह करने की आपने जरूरत नहीं समझी, तो अब जिनकी सलाह से उम्मीदवार बने हो उनसे ही समर्थन मांगो ।
राजिंदर बंसल ने विजय शिरोहा के हाव-भाव देख/जान कर दरअसल बहुत पहले ही यह भाँप लिया था कि विजय शिरोहा जिन लोगों के साथ हैं, उन्हें बहुत दिनों तक झेल नहीं पाएंगे । राजिंदर बंसल ने जिस 'आधार' पर विजय शिरोहा को भाँपने/पहचानने में देर नहीं की, उस 'आधार' को समझने/पहचानने की लेकिन विजय शिरोहा के 'साथियों' ने कभी कोई जरूरत ही नहीं समझी और विजय शिरोहा की बातों को अव्यावहारिक बता कर उन्हें अनदेखा ही करते रहे । विजय शिरोहा के साथी नेताओं ने विजय शिरोहा को और उनके आदर्शों व लक्ष्यों को तो कोई तवज्जो नहीं ही दी, उनके राजनीतिक महत्व को भी कम करके आँका । विजय शिरोहा के प्रति विजय शिरोहा के साथी नेताओं की इसी लापरवाही को राजिंदर बंसल ने अपनी पूँजी बनाया और डिस्ट्रिक्ट के धुरंधर समझे जाने वाले नेताओं की साझी राजनीति के 'घोड़े' को न केवल थाम लिया, बल्कि उसे उल्टा लौटने पर भी मजबूर कर दिया । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का अभी का सच यही है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के सभी तुर्रमखां समझे जाने वाले नेताओं का समर्थन है, लेकिन फिर भी वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर आगे नहीं बढ़ रहे हैं क्योंकि विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल उनके समर्थन में नहीं हैं । अभी का नजारा यही है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार होने की इच्छा रखने वाले सभी संभावित उम्मीदवार विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल से हरी झंडी मिलने के बाद ही आगे बढ़ने को तैयार होने की बात कर रहे हैं ।
विजय शिरोहा के बारे में पता नहीं कितने लोगों को यह जानकारी है कि वह कवितायेँ भी लिखते हैं । अपने फेसबुक अकाउंट पर अभी हाल में उन्होंने अपनी जिस कविता को पोस्ट किया है, उसे पढ़ कर उनके इरादों और उनकी जिद की थाह ली जा सकती है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में हाल ही में घटी घटनाओं को याद करते हुए इस कविता को पढ़िए और यह समझने की कोशिश कीजिये कि विजय शिरोहा के मन में आखिर चल क्या रहा है ? 

"चक्रव्यूह से निकलने की कोशिश में लगा मन,
मकसद की पतवार लेकर
भंवर से भरे झील में
चलाता रहा नाव
प्यास से अनजान
प्यास से विमुख
हर रात सोया झील में......
चाँद हंसा शरद पूर्णिमा का
अमृत की बूंद गिरी....
मन ने अलसाई आँखों को खोला
पतवार की पकड़ मजबूत हुई
रास्ते का ज्ञान मिला..................

मकसदों की रास थामे ज़िन्दगी यूँ मिलेगी
कब सोचा था !
मन मचला , बलखाया, इतराया
अमावस्या की आहट से बेखबर
मंजिल की ओर बढा...
घना अँधेरा जब छाया
मन अकुलाया , घबराया
उजाले का इंतज़ार किया...
हँसा मन बिलख कर -
चक्रव्यूह के घेरे में मकसद की पतवार लेकर
न थी कहीं कोई ज़िन्दगी,
न कोई हल...
चलना था, बस चलना था...

मन को थी एक आस
एक छोटा-सा विश्वास
गर परिवर्तन जीवन का नियम है
तो इतना तो तय है
अमावस्या को भी जाना है
चाँद को फिर आना है..."