Monday, March 18, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अजय बुद्धराज ने अपनी नेतागिरी बचाने/ज़माने के लिए क्या विजय शिरोहा को किनारे करने की चाल चली है

नई दिल्ली । अजय बुद्धराज ने जो किया, विरोधी खेमे के नेता उसे करने में लगातार लहूलुहान हुए जा रहे थे - लेकिन फिर भी नहीं कर पा रहे थे । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को मोहरा बना कर अजय बुद्धराज ने जो 'राजनीति' की है, उसे देख/जान कर विरोधी खेमे के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है कि जिस सत्ता खेमे की ताकत को वह हर तरह की तीन-तिकड़म के बाद भी कमजोर नहीं कर पा रहे थे, उसे अजय बुद्धराज की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने लगभग छिन्न-भिन्न कर दिया है । ऊपर-ऊपर से देखें तो लगता है कि जैसे अजय बुद्धराज ने सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की बिसात भर बिछाई है, लेकिन इस बिसात के जरिये उन्होंने जो पाने की कोशिश की है उसे देखना/समझना भी कोई मुश्किल नहीं है । उनकी कोशिश को समझने के लिए घटनाओं के सिर्फ सीक्वेंस पर गौर करना काफी होगा ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के अचानक से अवतरित होने की जो कहानी डिस्ट्रिक्ट के पक्ष-विपक्ष के लोगों के बीच चर्चा में है उसके अनुसार सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन की खोज है । यह सवाल हालाँकि अभी तक भी अनुत्तरित है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को राकेश त्रेहन ने खोजा या फिर अपनी उम्मीदवारी के साथ सुरेश जिंदल ने सबसे पहले राकेश त्रेहन के यहाँ शरण ली ? हुआ चाहे जो हो यहाँ से आगे की कहानी का घटनाक्रम यह बताया जा रहा है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को पक्का करने के बाद राकेश त्रेहन ने अजय बुद्धराज से संपर्क किया । इसके बाद सारी कमान अजय बुद्धराज के हाथ में आ गई । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को समर्थन दिलाने के लिए अजय बुद्धराज ने आश्चर्यजनक रूप से अपने खेमे के दिल्ली के अरुण पुरी और दीपक टुटेजा जैसे नेताओं से भी पहले विरोधी खेमे के हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल से संपर्क किया । अपने खेमे में उन्होंने डीके अग्रवाल से जरूर बात कर ली थी । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु अजय बुद्धराज ने हरियाणा में चंद्रशेखर मेहता से तो बात कर ली, लेकिन अपने खेमे के सुशील खरिंटा से बात करना उन्होंने जरूरी नहीं समझा । यहाँ तक कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा तक को उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी ।
विजय शिरोहा के प्रति दिखाया गया अजय बुद्धराज का यह रवैया हर किसी के लिए चौंकाने वाला रहा । आने वाले लायन वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते विजय शिरोहा का चुनावी नजरिये से खासा महत्व है, लेकिन फिर भी अजय बुद्धराज ने उनकी पूरी तरह से उपेक्षा की । विजय शिरोहा और हरियाणा के पक्ष-विपक्ष के अधिकतर नेताओं को सुरेश जिंदल के उम्मीदवार होने का पता तब चला जब अजय बुद्धराज ने दिल्ली के नेताओं से सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दिलवा दी थी । विजय शिरोहा को अँधेरे में रख कर अजय बुद्धराज ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को जिस तरह से आगे बढ़ाया है उसने हर किसी के सामने यह सवाल खड़ा किया है कि विजय शिरोहा से अजय बुद्धराज ने आखिर किस दुश्मनी का बदला लिया है ? जल्दी ही लेकिन हर किसी की समझ में आ गया कि अजय बुद्धराज ने बदला विजय शिरोहा से नहीं, बल्कि दीपक टुटेजा से लिया है । विजय शिरोहा को तो दीपक टुटेजा का 'खास' होने का नुकसान उठाना पड़ा है । अजय बुद्धराज ने विजय शिरोहा को इसीलिये अलग-थलग करने की कोशिश की, ताकि दीपक टुटेजा को कमजोर किया जा सके ।
दीपक टुटेजा के कारण अजय बुद्धराज को अपनी नेतागिरी दरअसल खतरे में पड़ी दिख रही थी । असल में, अभी तक भी हालाँकि खेमे के नेता के तौर पर पहचाना डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज को ही जा रहा है, लेकिन देखने में आ रहा है कि चल दीपक टुटेजा की रही है । चुनावी तीन-तिकड़म में दरअसल दीपक टुटेजा ने ऐसी महारथ हासिल कर ली है कि चुनावी लड़ाई उनकी देख-रेख में ही होने लगी और इसका नतीजा यह हुआ कि दीपक टुटेजा की भूमिका महत्वपूर्ण हो उठी । दीपक टुटेजा ने हालाँकि कभी भी अपनी इस हैसियत का फायदा उठाने या अपने आप को खेमे का मुखिया दिखाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन अजय बुद्धराज को कई बार यह बात भी नागवार गुजरी कि किन्हीं-किन्हीं मौकों पर दीपक टुटेजा ने उनसे पूछे बिना ही फैसले कर लिए । डीके अग्रवाल को तो इस स्थिति से कभी कोई शिकायत नहीं हुई लेकिन अजय बुद्धराज के लिए यह बर्दाश्त करना मुश्किल होता गया । इसलिए उन्हें दीपक टुटेजा के असर को कम करना जरूरी लगने लगा । दीपक टुटेजा से निपटने के लिए अजय बुद्धराज को हर्ष बंसल और चंद्रशेखर मेहता से हाथ मिलाने में भी कोई गुरेज नहीं हुआ है - उन चंद्रशेखर मेहता के साथ भी, जिनके साथ उनका गाली-गलौच पूर्ण समारोह सार्वजनिक रूप से आयोजित हुआ था ।
दीपक टुटेजा से निपटने की कोशिश में अजय बुद्धराज ने दाँव तो बहुत बड़ा और ऊँचा चला है - देखने की बात होगी कि उनका यह दाँव डिस्ट्रिक्ट की राजनीति को किस मोड़ पर ले जाता है और इससे अजय बुद्धराज को सचमुच कोई फायदा होता भी है या नहीं ?