Thursday, March 7, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में चरनजोत सिंह नंदा के लोगों ने राजिंदर नारंग को तोड़ने पर सारा जोर लगाया

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों के लिए अपनी पहचान और साख खोने का खतरा पैदा हो गया है । इस खेमे के नेताओं के सामने समस्या यह पैदा हो गई है कि चेयरमैन के चुनाव का जो परिदृश्य अभी तक बना हुआ है उसमें इनके पास करने को कुछ है ही नहीं । खेमे से जुड़े नेता यूँ तो अपने आप को बड़ा नेता मानते/समझते हैं, लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में वह खाली बैठे हुए हैं और एक-दूसरे का तथा दूसरों का मुँह ताकने के अलावा उनके पास कोई काम ही नहीं है । इस खेमे के एसबी सिंह, सुधीर कत्याल, सुनील मग्गू, राजेश शर्मा आदि नेताओं ने अपने-अपने तरीके से अपने आप को चुनावी परिदृश्य में लाने की कोशिशें तो बहुत की हैं लेकिन उनकी दाल गली नहीं है । मजे की बात यह है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सबसे ज्यादा सदस्य इसी खेमे के पास हैं, लेकिन फिर भी इनके लिए करने को कुछ बचा नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने गए सदस्यों में मनोज बंसल, हरित अग्रवाल और राज चावला को इसी खेमे का माना/देखा जाता है । इन तीन में से एक - राज चावला उस आठ सदस्यीय ग्रुप का हिस्सा हो गए हैं, जिसने चेयरमैन पद की राजनीति की संभावना के विकल्पों को सीमित कर दिया है । बाकी दो - मनोज बंसल और हरित अग्रवाल उन लोगों में रह गए जिन्हें सिर्फ दर्शक की भूमिका निभानी पड़ सकती है । चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों को विश्वास था कि उनके पास चूँकि तीन सदस्य हैं, इसलिए चेयरमैन चुनने की चाबी उनके पास ही रहेगी । उनका यह विश्वास तब भी बना रहा जब आठ सदस्यों ने एक ग्रुप बना लिया । यह विश्वास बने रहने का कारण यह उम्मीद बनी कि आठ सदस्यों का ग्रुप बन जरूर गया है, लेकिन यह ग्रुप चलेगा नहीं । आठ सदस्यों का ग्रुप लेकिन जब चलता हुआ दिखा तो इन्होंने ग्रुप को तोड़ने की कोशिशें शुरू कीं - इनकी कोशिशों से झटका लेकिन ग्रुप को नहीं, इन्हें ही लगा । पहला झटका राज चावला ने ही इन्हें दिया । सुधीर कत्याल का दावा था कि उन्होंने राज चावला को चुनाव जितवाने के लिए दिन-रात एक किया था, लिहाजा अब वह जैसे जहाँ बैठने को कहेंगे राज चावला वहीं बैठेंगे । राज चावला ने लेकिन उन्हें और उनकी राजनीति को कोई तवज्जो नहीं दी । राज चावला ने उन्हें साफ बता दिया कि उनके चक्कर में वह अपनी संभावना को धूमिल नहीं करेंगे ।
चरनजोत सिंह नंदा खेमे के नेताओं को दूसरा झटका राजिंदर नारंग और योगिता आनंद से मिला । आठ सदस्यीय खेमे को तोड़ने में लगे नेताओं ने दरअसल इन्हीं दोनों को खेमे की कमजोर कड़ियों के रूप में देखा/पहचाना था । आठ सदस्यीय खेमे के बाकी छह सदस्यों को चूँकि 'इस' या 'उस' नेता के साथ जोड़ा जाता है, इसलिए उनके टूटने की संभावना कम देखी गई - और इस कारण आठ सदस्यीय खेमे को तोड़ने में लगे लोगों ने सारा जोर राजिंदर नारंग और योगिता आनंद को तोड़ने पर लगाया । योगिता आनंद को चुनाव के दौरान चूँकि चरनजोत सिंह नंदा के समर्थक राजेश शर्मा ने तरह-तरह से बहुत परेशान किया था, इसलिए उनके ग्रुप से आसानी से अलग होने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी - लिहाजा सारा जोर राजिंदर नारंग पर लगाया गया । राजिंदर नारंग को चूँकि आठ सदस्यीय ग्रुप के पीछे की मुख्य चालक शक्ति के रूप में देखा/पहचाना गया इसलिए भी उन्हें घेरने/तोड़ने की कोशिशों पर ज्यादा जोर दिया गया ।
राजिंदर नारंग को ऑफर दिया गया कि वह यदि 'उनके' साथ आ जायें तो चेयरमैन बन सकते हैं । उल्लेखनीय है कि आठ सदस्यीय ग्रुप बनाने और उसे सँभाले रखने का काम तो राजिंदर नारंग कर रहे हैं, लेकिन चेयरमैन पद के लिए उनका खुद का नाम ही नहीं है - लिहाजा उन्हें घेरने/तोड़ने की कोशिशों में लगे लोगों को लगा कि उनकी महत्वाकांक्षा को भड़का कर वह अपना काम बना सकते हैं । राजिंदर नारंग को यह पहचानने/समझने में कोई देर नहीं लगी कि जो लोग उन्हें चेयरमैन का पद ऑफर कर रहे हैं, वह सिर्फ उन्हें झाँसा दे रहे हैं, क्योंकि उनके पास ऐसा कुछ है ही नहीं जिसके भरोसे वह किसी को चेयरमैन बनवा सकें । आठ सदस्यीय ग्रुप के बाहर जो पाँच सदस्य हैं उनमें एक गोपाल कुमार केडिया चेयरमैन बनने के लिए ताल ठोंके बैठे हैं । बाकी चार सदस्यों में एक मनोज बंसल भी 'मौके' की ताक में हैं । जाहिर है कि राजिंदर नारंग और योगिता आनंद को तोड़ने की कोशिश करने वाले चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों के पास कुछ है नहीं - वह तो दरअसल अपने आप को परिदृश्य में बनाये रखने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं ।
चरनजोत सिंह नंदा खेमे के नेताओं को अभी तक कामयाबी मिली नहीं है - लेकिन उन्होंने अभी तक हार भी नहीं मानी है । वह अभी भी तोड़-फोड़ की अपनी कोशिशों में लगे हुए हैं । वह सिर्फ यह दिखाना चाहते हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो कुछ भी हो रहा है, वह उनके किये से हो रहा है - हो चाहे जो भी । उनके निशाने पर अभी भी राजिंदर नारंग ही हैं । उनका खेल यह है कि राजिंदर नारंग के टूटने से या उनकी भूमिका के संदिग्ध होने से आठ सदस्यीय ग्रुप अपने आप ही बिखर जायेगा । ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि वह राजिंदर नारंग पर भारी पड़ते हैं या राजिंदर नारंग उन पर भारी पड़ते हैं ।