नई
दिल्ली । 'सीए डे' फंक्शन की बदइंतजामी तथा फंक्शन-स्थल के बाहर चार्टर्ड
एकाउंटेंट्स के साथ हुए अपमानजनक व हिंसक व्यवहार के खिलाफ चार्टर्ड
एकाउंटेंट्स का गुस्सा आज दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में देखने
को मिला । सोशल मीडिया में आ रही प्रतिक्रियाओं से यह आभास तो मिल रहा
था कि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से बुरी तरह
नाराज हैं, लेकिन उनकी नाराजगी की संगठित अभिव्यक्ति का जो नजारा
इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में आज देखने को मिला - वह सचमुच इस बात का गवाह
रहा कि 'सीए डे' फंक्शन में जो हुआ, उसकी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को गहरी चोट
पड़ी/लगी है । 'सीए डे' फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर जो बीती,
उसके लिए मुख्य तौर पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा को जिम्मेदार
ठहराया गया, और इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में उनके खिलाफ जहाँ-तहाँ जमकर
नारेबाजी हुई । राजेश शर्मा को भी शायद इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि
उनकी कारस्तानियों और करतूतों के खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच कितना
तीखा गुस्सा बना है - और इसीलिए वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के विरोध प्रदर्शन
के दौरान मुख्यालय पहुँचे । उन्हें देखकर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स जिस तरह
भड़के और उनके खिलाफ गालियों और अपशब्दों की बौछार करने लगे - उसमें अपने
लिए खतरा भाँप कर राजेश शर्मा अलमारियों के पीछे छिप-छिपा कर और खिड़कियों
से कूद-फांद कर मुख्यालय से भागे और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से से
उन्होंने बड़ी मुसीबत से अपने आप को बचाया ।
इंस्टीट्यूट प्रशासन ने भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से की गर्मी को पहचाना है, और इसलिए ही वह - दो दिन बाद ही सही - 'सीए डे' फंक्शन में हुई घटनाओं के लिए माफी माँगने के मजबूर हुआ । लेकिन अपने माफीनामे में भी इंस्टीट्यूट प्रशासन अपनी शातिराना चाल चलने/दिखाने से बाज नहीं आया है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और सेक्रेटरी की तरफ से जो माफीनामा सामने आया है, उसमें 'सीए डे' फंक्शन में घटी घटनाओं के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया है । विडंबना की और मजे की बात यह है कि अभी तक भी कोई भी समस्या की मुख्य वजहों को पहचानने की कोशिश करता हुआ नहीं दिख रहा है - न तो काउंसिल के लोग और न विरोध करने वाले लोग । उल्लेखनीय है कि 'सीए डे' से तीन दिन पहले ही, 28 जून को 'रचनात्मक संकल्प' ने रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के ही हवाले से कहा/बताया गया था कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे 'सीए डे' जैसे महत्त्वपूर्ण आयोजन को अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, और इसके लिए उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'किराए का आदमी' बना दिया है । दरअसल जैसे ही यह तथ्य सामने आए कि 'सीए डे' फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को लाने/पहुँचाने के लिए बसों की व्यवस्था की गयी है, वैसे ही यह संकेत मिल गया था कि उक्त फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपमानित करने की 'तैयारी' कर ली गयी है । इंस्टीट्यूट में राजनीति करने वाले नेता लेकिन इस महत्त्वपूर्ण संकेत को या तो पढ़/समझ नहीं पाए और या अपने अपने स्वार्थ में जानबूझ कर इसकी अनदेखी कर बैठे ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से का निशाना बन रहे सेंट्रल काउंसिल सदस्य बड़ी मासूमियत से पूछ रहे हैं कि जो हुआ, उसमें उनका क्या कसूर है ? कोई इनसे पूछे कि सेंट्रल काउंसिल में आप लोग क्या मंजीरे बजाने के लिए बैठे हो ? इंस्टीट्यूट के एक बड़े फंक्शन की तैयारी हो रही है, जिसका चार्ज प्रेसीडेंट ने काउंसिल के एक 'युवा' सदस्य राजेश शर्मा को दे दिया है - और काउंसिल सदस्य मुँह पर पट्टी बाँधे बैठे रहे । प्रोफेशन के लोगों के बीच राजेश शर्मा की पहचान एक 'सामान्य किस्म के दलाल' की है - जो सरकार और सरकारी पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं के साथ खिंचवाई गयी तस्वीरों को दिखा दिखा कर अपना 'धंधा' करता है । इंस्टीट्यूट की काउंसिल के सदस्य भी उसकी इस पहचान से परिचित हैं - लेकिन फिर भी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति करने और या सवाल उठाने की कोशिश तक नहीं की कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने इंस्टीट्यूट के एक बड़े आयोजन के लिए राजेश शर्मा के सामने समर्पण क्यों किया हुआ है ? एक कुशल 'दलाल' और धंधेबाज के रूप में राजेश शर्मा ने तो नीलेश विकमसे के 'स्वार्थ' को पहचान कर उन्हें अपने सामने समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के बाकी सदस्य किस मजबूरी और या किस स्वार्थ में अपने प्रेसीडेंट की हरकत को नजरअंदाज करते हुए अपने आप को मंजीरे बजाने में ही व्यस्त किए रहे ? हद की बात यह तक हुई कि राजेश शर्मा का प्रोफेशनल पार्टनर तक 'सीए डे' की तैयारी में नीलेश विकमसे के साथ मंच शेयर कर रहा था; तैयारी के काम में तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण मौकों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को किनारे लगाया/बैठाया हुआ था - लेकिन मजाल है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने चूँ भी की हो । सेंट्रल काउंसिल सदस्य 'सीए डे' के आयोजन से पहले नीलेश विकमसे और राजेश शर्मा के सामने 'बेचारे' बने बैठे रहे, और अब विरोधियों के सामने अपनी बेचारगी दिखाते हुए पूछ रहे हैं कि उनका क्या कसूर है ? मुट्ठी भर बेईमान चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सामने काउंसिल और इंस्टीट्यूट प्रशासन को यदि कमजोर और असहाय देखा/पाया जाता है, तो इसका कारण काउंसिल सदस्यों की इसी 'बेचारगी' वाली अदा में देखा/पहचाना सकता है ।
'सीए डे' के इस वर्ष के फंक्शन में हुई बदनीयतभरी राजनीति तथा अव्यवस्था ने इंस्टीट्यूट में पल रही सड़ांध की बदबू से खुद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ही परिचित कराने का काम जरूर किया है । यह देख कर भी उम्मीद बंधी है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बदबू और सड़ांध से विचलित हुए हैं और इसके विरोध में आवाज उठा रहे हैं । उनका विरोध हालाँकि अभी अराजकता का शिकार हैं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि शातिर और दलाल किस्म के नेता इस विरोध को भटकाने तथा कमजोर करने के लिए क्या तरकीबें लगाते हैं ?
इंस्टीट्यूट प्रशासन ने भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से की गर्मी को पहचाना है, और इसलिए ही वह - दो दिन बाद ही सही - 'सीए डे' फंक्शन में हुई घटनाओं के लिए माफी माँगने के मजबूर हुआ । लेकिन अपने माफीनामे में भी इंस्टीट्यूट प्रशासन अपनी शातिराना चाल चलने/दिखाने से बाज नहीं आया है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और सेक्रेटरी की तरफ से जो माफीनामा सामने आया है, उसमें 'सीए डे' फंक्शन में घटी घटनाओं के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया है । विडंबना की और मजे की बात यह है कि अभी तक भी कोई भी समस्या की मुख्य वजहों को पहचानने की कोशिश करता हुआ नहीं दिख रहा है - न तो काउंसिल के लोग और न विरोध करने वाले लोग । उल्लेखनीय है कि 'सीए डे' से तीन दिन पहले ही, 28 जून को 'रचनात्मक संकल्प' ने रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के ही हवाले से कहा/बताया गया था कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे 'सीए डे' जैसे महत्त्वपूर्ण आयोजन को अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, और इसके लिए उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'किराए का आदमी' बना दिया है । दरअसल जैसे ही यह तथ्य सामने आए कि 'सीए डे' फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को लाने/पहुँचाने के लिए बसों की व्यवस्था की गयी है, वैसे ही यह संकेत मिल गया था कि उक्त फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपमानित करने की 'तैयारी' कर ली गयी है । इंस्टीट्यूट में राजनीति करने वाले नेता लेकिन इस महत्त्वपूर्ण संकेत को या तो पढ़/समझ नहीं पाए और या अपने अपने स्वार्थ में जानबूझ कर इसकी अनदेखी कर बैठे ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से का निशाना बन रहे सेंट्रल काउंसिल सदस्य बड़ी मासूमियत से पूछ रहे हैं कि जो हुआ, उसमें उनका क्या कसूर है ? कोई इनसे पूछे कि सेंट्रल काउंसिल में आप लोग क्या मंजीरे बजाने के लिए बैठे हो ? इंस्टीट्यूट के एक बड़े फंक्शन की तैयारी हो रही है, जिसका चार्ज प्रेसीडेंट ने काउंसिल के एक 'युवा' सदस्य राजेश शर्मा को दे दिया है - और काउंसिल सदस्य मुँह पर पट्टी बाँधे बैठे रहे । प्रोफेशन के लोगों के बीच राजेश शर्मा की पहचान एक 'सामान्य किस्म के दलाल' की है - जो सरकार और सरकारी पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं के साथ खिंचवाई गयी तस्वीरों को दिखा दिखा कर अपना 'धंधा' करता है । इंस्टीट्यूट की काउंसिल के सदस्य भी उसकी इस पहचान से परिचित हैं - लेकिन फिर भी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति करने और या सवाल उठाने की कोशिश तक नहीं की कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने इंस्टीट्यूट के एक बड़े आयोजन के लिए राजेश शर्मा के सामने समर्पण क्यों किया हुआ है ? एक कुशल 'दलाल' और धंधेबाज के रूप में राजेश शर्मा ने तो नीलेश विकमसे के 'स्वार्थ' को पहचान कर उन्हें अपने सामने समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के बाकी सदस्य किस मजबूरी और या किस स्वार्थ में अपने प्रेसीडेंट की हरकत को नजरअंदाज करते हुए अपने आप को मंजीरे बजाने में ही व्यस्त किए रहे ? हद की बात यह तक हुई कि राजेश शर्मा का प्रोफेशनल पार्टनर तक 'सीए डे' की तैयारी में नीलेश विकमसे के साथ मंच शेयर कर रहा था; तैयारी के काम में तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण मौकों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को किनारे लगाया/बैठाया हुआ था - लेकिन मजाल है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने चूँ भी की हो । सेंट्रल काउंसिल सदस्य 'सीए डे' के आयोजन से पहले नीलेश विकमसे और राजेश शर्मा के सामने 'बेचारे' बने बैठे रहे, और अब विरोधियों के सामने अपनी बेचारगी दिखाते हुए पूछ रहे हैं कि उनका क्या कसूर है ? मुट्ठी भर बेईमान चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सामने काउंसिल और इंस्टीट्यूट प्रशासन को यदि कमजोर और असहाय देखा/पाया जाता है, तो इसका कारण काउंसिल सदस्यों की इसी 'बेचारगी' वाली अदा में देखा/पहचाना सकता है ।
'सीए डे' के इस वर्ष के फंक्शन में हुई बदनीयतभरी राजनीति तथा अव्यवस्था ने इंस्टीट्यूट में पल रही सड़ांध की बदबू से खुद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ही परिचित कराने का काम जरूर किया है । यह देख कर भी उम्मीद बंधी है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बदबू और सड़ांध से विचलित हुए हैं और इसके विरोध में आवाज उठा रहे हैं । उनका विरोध हालाँकि अभी अराजकता का शिकार हैं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि शातिर और दलाल किस्म के नेता इस विरोध को भटकाने तथा कमजोर करने के लिए क्या तरकीबें लगाते हैं ?