नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट मुख्यालय में छह दिन बाद दूसरी बार 'राजेश शर्मा हाय हाय' और 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे । फर्क
यह रहा कि पिछली बार राजेश शर्मा ने जब यह नारे सुने थे, तब वह अलमारियों
के पीछे छिप-छिपा कर और खिड़कियों से कूद-फांद कर मुख्यालय से भाग गए थे -
लेकिन अब की बार उन्हें भागने का मौका नहीं मिला । कुछ लोगों का कहना है कि
इस बार उन्हें भागना था भी नहीं; इस बार उन्हें साबित करना था कि उनकी
चमड़ी बड़ी मोटी है और इस तरह के नारों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है । राजेश
शर्मा को इस बार इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और इंस्टीट्यूट
के सेक्रेटरी वी सागर सहित सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों की मौजूदगी में अपने
खिलाफ होने वाली नारेबाजी को झेलना पड़ा । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल
काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना तथा निकासा चेयरमैन नितिन कँवर के
साथ-साथ ट्रेजरर सुमित गर्ग और सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा तक ने राजेश शर्मा
के खिलाफ जो स्टैंड दिखाया, उसने कई लोगों को चौंकाया; क्योंकि इन चारों
को राजेश शर्मा के नजदीकी और समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है;
इन चारों को चूँकि किसी भी मामले में मुखर होते हुए भी कभी नहीं देखा गया -
इसलिए प्रेसीडेंट और सेक्रेटरी की मौजूदगी में राजेश शर्मा की
कारस्तानियों को लेकर इनकी मुखरता ने हर किसी का ध्यान खींचा । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि इंस्टीट्यूट के 68 वर्षों के इतिहास में इतनी बेइज्जती किसी सेंट्रल
काउंसिल सदस्य की नहीं हुई है, जितनी राजेश शर्मा की हुई है और हो रही है - और सार्वजनिक रूप से हो रही है ।
मजे की बात लेकिन यह है कि राजेश शर्मा और उनके समर्थक आश्वस्त हैं कि उनका यह 'बुरा' समय जल्दी ही बीत जाएगा और कुछ दिनों में ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भूल जायेंगे कि इस वर्ष के 'सीए डे' में उनके साथ क्या हुआ ? अपने आश्वस्त होने का कारण बताते हुए वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट ही नहीं, बल्कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैए को भी वह रेखांकित कर रहे हैं । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि कल हुई मीटिंग में सभी ने देखा कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने कैसे राजेश शर्मा की वकालत की और सेंट्रल काउंसिल सदस्य मुँह पर ताला डाले हुए चुपचाप बैठे रहे । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि यह इस बात का सुबूत है कि राजेश शर्मा ने प्रेसीडेंट और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को तो 'सेट' कर लिया है; उनकी तरफ से तो उन्हें कोई खतरा नहीं होगा - रही बात छुटभैये चार्टर्ड एकाउंटेंट्स नेताओं की, तो वह भी आखिर कब तक गला फाड़ सकेंगे ? राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि इंस्टीट्यूट के पिछले चुनाव में हार चुके कुछेक नेता इस उम्मीद में राजेश शर्मा के खिलाफ माहौल बनाए हुए हैं, कि इससे लोगों के बीच अपनी सक्रियता दिखाते हुए उनके लिए अगले चुनाव में जीत हासिल कर पाना आसान हो जाएगा - लेकिन ऐसे लोगों से राजेश शर्मा को कोई खतरा नहीं है ।
राजेश शर्मा और उनके समर्थक भले ही बेशर्मी के साथ 'बहादुरी' दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और इस उम्मीद में हैं कि उनके खिलाफ मुखर बनी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी जल्दी ही खत्म हो जाएगी; लेकिन सात दिन के भीतर ही राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के सामने ही जिस तरह की जलालत झेलनी पड़ी - उसे देख कर दूसरे लोगों को लगता नहीं है कि राजेश शर्मा के बुरे दिन जल्दी ही खत्म होंगे । राजेश शर्मा की कारस्तानियों को और उन कारस्तानियों के चलते उनके खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैदा हुई नाराजगी को देखते हुए उनके कई समर्थकों ने जिस तरह से उनके साथ दूरी बना ली है, उससे राजेश शर्मा का संकट काफी बढ़ गया है । राजेश शर्मा ने अपने रवैये और अपने व्यवहार से तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को, खासतौर से इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाराज किया हुआ है - उन्हें 'सीए डे' के हादसे के चलते राजेश शर्मा से बदला लेने का अच्छा मौका मिला है, जिसे वह किसी भी तरह से खोना नहीं चाहेंगे । राजेश शर्मा के विरोधियों को लगता है कि इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने तो राजेश शर्मा के सामने समर्पण किया हुआ है, इसलिए उनसे तो कोई उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह राजेश शर्मा की नकेल कस सकें; लेकिन विरोधियों को लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ यदि माहौल बनाए रखा गया तो अगले प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को जरूर इस बात के लिए 'तैयार' किया जा सकेगा कि अगले वर्ष के अपने प्रेसीडेंट-काल में वह राजेश शर्मा को कोई तवज्जो न दें - और बिना तवज्जो के राजेश शर्मा की हालत जल बिन मछली वाली ही हो जाएगी ।
प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की खुली तरफदारी करने और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के मौन समर्थन के बावजूद कल की मीटिंग में लोगों ने राजेश शर्मा को जिस तरह से बोलने तक नहीं दिया, और बोलने की उनकी हर कोशिश को उनके खिलाफ नारेबाजी तथा भद्दे कमेंट करके विफल कर दिया - उसे देख/जान कर लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी की जड़ें काफी फैल गईं हैं और राजेश शर्मा को जलालत भरी मुसीबत से जल्दी ही छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है ।
मजे की बात लेकिन यह है कि राजेश शर्मा और उनके समर्थक आश्वस्त हैं कि उनका यह 'बुरा' समय जल्दी ही बीत जाएगा और कुछ दिनों में ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भूल जायेंगे कि इस वर्ष के 'सीए डे' में उनके साथ क्या हुआ ? अपने आश्वस्त होने का कारण बताते हुए वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट ही नहीं, बल्कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैए को भी वह रेखांकित कर रहे हैं । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि कल हुई मीटिंग में सभी ने देखा कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने कैसे राजेश शर्मा की वकालत की और सेंट्रल काउंसिल सदस्य मुँह पर ताला डाले हुए चुपचाप बैठे रहे । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि यह इस बात का सुबूत है कि राजेश शर्मा ने प्रेसीडेंट और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को तो 'सेट' कर लिया है; उनकी तरफ से तो उन्हें कोई खतरा नहीं होगा - रही बात छुटभैये चार्टर्ड एकाउंटेंट्स नेताओं की, तो वह भी आखिर कब तक गला फाड़ सकेंगे ? राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि इंस्टीट्यूट के पिछले चुनाव में हार चुके कुछेक नेता इस उम्मीद में राजेश शर्मा के खिलाफ माहौल बनाए हुए हैं, कि इससे लोगों के बीच अपनी सक्रियता दिखाते हुए उनके लिए अगले चुनाव में जीत हासिल कर पाना आसान हो जाएगा - लेकिन ऐसे लोगों से राजेश शर्मा को कोई खतरा नहीं है ।
राजेश शर्मा और उनके समर्थक भले ही बेशर्मी के साथ 'बहादुरी' दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और इस उम्मीद में हैं कि उनके खिलाफ मुखर बनी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी जल्दी ही खत्म हो जाएगी; लेकिन सात दिन के भीतर ही राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के सामने ही जिस तरह की जलालत झेलनी पड़ी - उसे देख कर दूसरे लोगों को लगता नहीं है कि राजेश शर्मा के बुरे दिन जल्दी ही खत्म होंगे । राजेश शर्मा की कारस्तानियों को और उन कारस्तानियों के चलते उनके खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैदा हुई नाराजगी को देखते हुए उनके कई समर्थकों ने जिस तरह से उनके साथ दूरी बना ली है, उससे राजेश शर्मा का संकट काफी बढ़ गया है । राजेश शर्मा ने अपने रवैये और अपने व्यवहार से तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को, खासतौर से इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाराज किया हुआ है - उन्हें 'सीए डे' के हादसे के चलते राजेश शर्मा से बदला लेने का अच्छा मौका मिला है, जिसे वह किसी भी तरह से खोना नहीं चाहेंगे । राजेश शर्मा के विरोधियों को लगता है कि इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने तो राजेश शर्मा के सामने समर्पण किया हुआ है, इसलिए उनसे तो कोई उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह राजेश शर्मा की नकेल कस सकें; लेकिन विरोधियों को लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ यदि माहौल बनाए रखा गया तो अगले प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को जरूर इस बात के लिए 'तैयार' किया जा सकेगा कि अगले वर्ष के अपने प्रेसीडेंट-काल में वह राजेश शर्मा को कोई तवज्जो न दें - और बिना तवज्जो के राजेश शर्मा की हालत जल बिन मछली वाली ही हो जाएगी ।
प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की खुली तरफदारी करने और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के मौन समर्थन के बावजूद कल की मीटिंग में लोगों ने राजेश शर्मा को जिस तरह से बोलने तक नहीं दिया, और बोलने की उनकी हर कोशिश को उनके खिलाफ नारेबाजी तथा भद्दे कमेंट करके विफल कर दिया - उसे देख/जान कर लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी की जड़ें काफी फैल गईं हैं और राजेश शर्मा को जलालत भरी मुसीबत से जल्दी ही छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है ।