Wednesday, July 5, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के असली गुनहगारों के खिलाफ सचमुच कोई कार्रवाई करवा सकेंगे या मामला यूँ ही रफा दफा हो जाएगा ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता की पहल ने 'सीए डे' के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी पर विरोध के मुद्दे को प्रभावी और निर्णायक रूप देने का जो काम किया, उसके चलते काउंसिल के बाहर के नेताओं से नेतागिरी करने/दिखाने का मौका छिनता दिख रहा है । विजय गुप्ता की पहल को सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे संजय अग्रवाल, अतुल गुप्ता, संजीव चौधरी और संजय वासुदेव का जो समर्थन मिला - उससे भी मुद्दे की लड़ाई सेंट्रल काउंसिल में ही केंद्रित होती हुई दिख रही है । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने भी चूँकि इन पाँचों सेंट्रल काउंसिल सदस्यों पर भरोसा करना/दिखाना शुरू किया है, इसलिए भी विरोध की बागडोर काउंसिल के बाहर के नेताओं के हाथ से छूटती/फिसलती नजर आ रही है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरमैन पूजा बंसल और उनके पति मोहित बंसल की सक्रियता के कारण रीजनल काउंसिल में भी ग्यारह सदस्य खेमेबाजी की सीमाओं को तोड़ते हुए 'सीए डे' के नाम पर हुई घटनाओं के खिलाफ इकट्ठा हो गए हैं । रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ और अगले वर्ष चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे पंकज पेरिवाल जरूर अभी भी राजेश शर्मा को बचाने के प्रयासों में लगे हुए हैं, लेकिन उनकी ज्यादा चल नहीं पा रही है ।
उल्लेखनीय है कि 'सीए डे' के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से को संगठित रूप देने के लिए तीन जुलाई को इंस्टीट्यूट मुख्यालय में प्रदर्शन करने/बुलाने की पहल वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट मोहित बंसल ने की - उन्होंने घटना वाले दिन के विवरण तथा तस्वीरों के साथ एक बड़ा मेल-संदेश चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भेजने का काम तो किया ही, साथ ही प्रदर्शन के लिए पुलिस अनुमति लेने का औपचारिक काम भी किया । मजेदार नजारा यह रहा कि मोहित बंसल ने जब सारी तैयारी कर ली और प्रदर्शन के लिए माहौल बना दिया, तब प्रदर्शन में भागीदारी और नेतागिरी 'दिखाने' के लिए ऐसे कुछ लोग कूद पड़े - जो रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में हार गए थे और अगले चुनाव में उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं । उन्हें लगा कि अगले वर्ष होने वाले अगले चुनाव में अपना 'चार्टर्ड एकाउंटेंट्स समर्थक' चेहरा दिखाने के लिए कुछ काम कर लेने का यह अच्छा मौका है । इनमें सबसे दिलचस्प स्थिति रतन सिंह यादव की देखने को मिली - वह 'सीए डे' की तैयारी में भी जबर्दस्ती घुस कर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'सूटेडबूटेड' के ड्रेस कोड में पहुँचने का आह्वान कर रहे थे, और विरोध प्रदर्शन में भी आगे आगे 'दिखने' की कोशिशों में लगे थे । उनके दोहरे रवैये पर सोशल मीडिया में उन पर लताड़ पड़ी, तो वह अपने रवैये पर माफी माँगते हुए भी नजर आए और उन्होंने अपनी टाइमलाइन से 'सूटेडबूटेड' वाली पोस्ट भी हटा ली । रतन सिंह यादव अपनी टाइमलाइन पर विभिन्न नेताओं को अक्सर निशाना बनाते रहते हैं, लेकिन जो नरेंद्र मोदी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को सीधी चमाट मार कर बेइज्जत कर गए, उनके बारे में रतन सिंह यादव चुप्पी साध गए हैं - और उसके बाद भी वह अपने आप को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का शुभचिंतक बताने/दिखाने का प्रयास कर रहे हैं ।
रतन सिंह यादव जैसे लोगों के कारण ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने काउंसिल के पदाधिकारियों पर ही भरोसा करना ज्यादा उचित समझा । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए जिम्मेदारी का चोला पहना और नाराज व गुस्से से भरे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से संवाद स्थापित किया - विजय गुप्ता मामले के कुछेक प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित करते हुए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को ईमेल लिखकर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भूमिका को जिम्मेदार बनाने की नींव रख चुके थे, अतुल गुप्ता ने नारेबाजी कर रहे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को आगे की रणनीति बनाने पर बात करने के लिए तैयार करने के लिए मशक्कत की और संजय अग्रवाल ने अपनी वरिष्ठता का वास्ता देकर माहौल को इमोशनल टच दिया । संजीव चौधरी और संजय वासुदेव की उपस्थिति और सक्रिय समर्थन ने उन्हें बल दिया । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने स्वीकार किया कि 'सीए डे' के आयोजन को लेकर जो अव्यवस्था हुई, उसका वह पहले से अनुमान लगा सकने में असफल रहे; और उनकी यह असफलता इसलिए रही क्योंकि 'सीए डे' के आयोजन से जुड़ी तैयारी में उन्हें ज्यादा शामिल ही नहीं किया गया । उन्होंने स्वीकार किया कि अब जो बातें और जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे पता चल रहा है कि 'सीए डे' की तैयारी में ही भारी घपला था और इसीलिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तक से बातें छिपाई गयीं । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिलाया कि तैयारी के नाम पर जो भी गड़बड़ियाँ हुईं हैं, उनके बारे में वह चुप नहीं बैठेंगे और इसीलिए वह सेंट्रल काउंसिल की इमरजेंसी मीटिंग तत्काल बुलाने की माँग करने जा रहे हैं ।
'सीए डे' फंक्शन की तैयारी के नाम पर दरअसल जो कुछ होने के तथ्य अब सामने आ रहे हैं, उन्होंने दूसरे लोगों के साथ-साथ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी चौंकाया है । किसी की भी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि फंक्शन स्थल पर जब उपलब्ध सीटों की संख्या ही बीस हजार के करीब थी, तो 42 हजार पास बाँटने और इक्यावन हजार रजिस्ट्रेशन करने की क्या जरूरत थी - और ऐसा करने का फैसला आखिर था किसका ? सेंट्रल काउंसिल सदस्य इंस्टीट्यूट मुख्यालय में हुई उस मीटिंग के होने को लेकर खासे आंदोलित दिखे जिसमें इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर, राजेश शर्मा और गौरव अग्रवाल के साथ मिल कर फंक्शन में किराए के लोगों को लाने की बात कर रहे हैं और किराए के लोगों की जिम्मेदारियाँ तय कर रहे हैं । सवाल है कि वी सागर आखिर क्यों और किसके कहने पर 'सीए डे' फंक्शन में स्टूडेंट्स के नाम पर किराए के लोगों को लाने की व्यवस्था में जुटे थे; और वी सागर इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी हैं या राजेश शर्मा और गौरव अग्रवाल के सेक्रेटरी हैं ? विजय गुप्ता ने लोगों के बीच आश्चर्य प्रकट किया कि 'उस' मीटिंग के समय वह इंस्टीट्यूट मुख्यालय में मौजूद थे, लेकिन उन्हें भी उस मीटिंग की भनक तक नहीं लगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्य इस बात पर भी हैरान हैं कि उनके साथ हुई बातचीत में खुद प्रेसीडेंट ने प्रोटोकॉल की व्यवस्था तय की थी और बताई थी, जिसके अनुसार मंच पर नरेंद्र मोदी का स्वागत करने के दौरान सिर्फ प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट को रहना था - तब फिर उस दौरान राजेश शर्मा मंच पर कैसे पहुँच गया ? इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे इन पाँचों सदस्यों ने आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिया/दिलाया कि इन तथा इन जैसे अन्य कई सवालों के जबाव वह प्रेसीडेंट से लेने का काम करेंगे ।
आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा दिए/दिलाए गए भरोसे पर भरोसा तो किया है, लेकिन वह इनकी गतिविधियों और इनके रवैए पर नजर रखने की भी तैयारी में हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का मानना और कहना है कि 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर जो तमाशा हुआ है, उसके कारण इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी काफी कुछ सहना पड़ा है; राजेश शर्मा की कारस्तानियों तथा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का उनके सामने किए गए समर्पण ने इंस्टीट्यूट का नाम खराब करने के साथ-साथ इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खराब स्थितियाँ बनाई हैं - इसलिए इस मामले को यह आसानी से तो नहीं खत्म होने देंगे, लेकिन फिर भी यह देखना जरूरी होगा कि यह आखिर करते क्या हैं ? 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के असली गुनहगारों के खिलाफ सचमुच कोई कार्रवाई हो सकेगी या मामला यूँ ही रफा दफा हो जाएगा - यह अब सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैए पर ही निर्भर करेगा ।