Monday, April 25, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी मामले में जेपी सिंह की ऐतिहासिक फजीहत करने/कराने के बाद, उनके विरोधियों ने उन्हें ब्लड बैंक के मामले में घेरने की तैयारी शुरू की

नई दिल्ली । जेपी सिंह ने लायंस की चुनावी राजनीति में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया है - इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए वह अकेले उम्मीदवार थे, लेकिन फिर भी वह चुनाव हार गए । इस तरह जेपी सिंह को किसी और ने नहीं हराया, बल्कि खुद उन्होंने ही अपने आप को हरा दिया । कुछेक लोगों का कहना है कि जेपी सिंह की खुद की हरकतों व कारस्तानियों ने ही उन्हें चुनाव में हरा दिया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनने की जेपी सिंह की तैयारी को इस तरह से जो 'जोर का झटका' लगा है, उसने आरोपों-प्रत्यारोपों की एक नई सीरीज शुरू कर दी है : जेपी सिंह ने लायन राजनीति में हुई अपनी 'इस सबसे बड़ी दुर्गति' के लिए अपने समर्थकों व नजदीकियों को ही जिम्मेदार ठहराया है, जबकि उनके समर्थकों व नजदीकियों के अनुसार जेपी सिंह अपनी खुद की करनी तथा ब्लड बैंक की कमाई 'हड़पने' के आरोपों के कारण इस दशा को प्राप्त हुए हैं । जेपी सिंह का कहना है कि अपने विरोधियों की उन्हें पहचान थी, किंतु वह संख्या में इतने कम थे और हैं कि वह चुनावी हार का कारण नहीं हो सकते - उन्हें तो अपने समर्थकों व नजदीकियों से ही धोखा मिला है । जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के मामले में मिले झटके के लिए मुख्य रूप से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद सपरा तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह की भूमिका को जिम्मेदार मानते हैं; उनका कहना है कि ऐन मौके पर इन दोनों ने उन्हें धोखा दिया - जिसके चलते उनके लिए हालात मुश्किल हो गए । इन दोनों की तरफ से लेकिन जेपी सिंह के इस आरोप का मजाक उड़ाया जा रहा है : इनका कहना है कि जेपी सिंह बड़े नेता हैं, वह डिस्ट्रिक्ट की और मल्टीपल की तथा उससे और ऊपर की राजनीति चलाते हैं - हमारे जैसे छोटे नेता उनकी अपनी हार का कारण भला कैसे हो सकते हैं ? दूसरे कई लोगों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के मुद्दे पर मिली हार ने जेपी सिंह को वास्तव में आईना दिखाया है, और आईने में अपनी बिगड़ी तस्वीर के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की बजाए उन्हें अपने गिरेबान में झाँकना/देखना चाहिए । जेपी सिंह के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि इस समय जबकि वह अपने लायन जीवन के सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं, तब उनके प्रति हमदर्दी दिखाने के लिए कोई नहीं है और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के रूप में देखे जाने वाले लोग भी उनकी दशा पर मजे ले रहे हैं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की राजनीति लगता है कि जेपी सिंह का बंटाधार करेगी । विडंबना की बात यह है कि मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह को सबसे मजबूत उम्मीदवार के रूप देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन अपने खुद के डिस्ट्रिक्ट में जेपी सिंह को न सिर्फ नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, बल्कि उसके बाद भी उन्हें फजीहत का शिकार होना पड़ रहा है । अब किसी उम्मीदवार की इससे बड़ी फजीहत और क्या होगी कि वह अकेला उम्मीदवार होता है, लेकिन फिर भी वह चुनाव हार जाता है । जेपी सिंह के साथ के लोगों का ही कहना है कि इस स्थिति के लिए खुद जेपी सिंह ही जिम्मेदार हैं । दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए रमेश नांगिया की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी से जेपी सिंह जिस बुरी तरह से डर गए - फिर वही डर उन्हें ले डूबा । रमेश नांगिया के ही कुछेक समर्थकों का कहना है कि उन्हें रमेश नांगिया के जीतने की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन जेपी सिंह ने रमेश नांगिया की उम्मीदवारी सामने आने पर जिस तरह की घबराहट दिखाई और जिस तरह की बेबकूफियाँ कीं - उससे जेपी सिंह ने अपने प्रति विरोध को संगठित व आक्रामक बनाने का काम किया, और जिसका नतीजा हुआ कि रमेश नांगिया को चुनावी मैदान से हटवा देने के बाद भी वह चुनाव हार गए । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को जानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को लेकर जेपी सिंह अपनी घबराहट न दिखाते, और लोगों के बीच अपना समर्थन मजबूत करने तथा बढ़ाने में जुटते तो रमेश नांगिया को हरा कर वही चुनाव जीतते - लेकिन जेपी सिंह अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बजाए रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को वापस कराने और रद्द कराने की तिकड़मों में लग गए । इससे लोगों के बीच यही संदेश गया कि वह रमेश नांगिया की उम्मीदवारी से डर गए हैं । इस संदेश का सीधा और गहरा असर यह हुआ कि जेपी सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के हौंसले पस्त पड़े, जबकि उनके विरोधियों में खासा जोश भर गया ।
इस असर को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले दिन रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को रद्द करने की कार्रवाई से और पंख लगे । जेपी सिंह ने सोचा तो यह था कि वह रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को ही रद्द करवा देंगे, तो चुनाव का झँझट ही खत्म हो जायेगा और उनकी हार का खतरा पूरी तरह टल जायेगा । जेपी सिंह ही क्या, अन्य कोई भी नहीं जानता था कि इस तिकड़म से जेपी सिंह सिर्फ अपनी हार को ही नहीं, इतिहास बनाने वाली अपनी फजीहत को भी आमंत्रित कर रहे हैं । चुनाव हो जाता, और जेपी सिंह हार जाते - तो यह चुनावी दुनिया की एक सामान्य घटना होती; लेकिन जो हुआ वह ऐतिहासिक इसलिए हुआ क्योंकि उम्मीदवार एक ही था, अकेला था - लेकिन फिर भी हार गया । अपनी स्थापना के सौंवे वर्ष में प्रवेश करने जा रहे लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में जेपी सिंह संभवतः पहले और अकेले उम्मीदवार होंगे, जो अकेले उम्मीदवार होने के बावजूद चुनाव हार गए । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले दिन रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को रद्द करने/कराने की कार्रवाई का जो जोरदार विरोध हुआ, उससे भी जेपी सिंह ने कोई सबक नहीं लिया । जेपी सिंह ने मान लिया कि रमेश नांगिया के उम्मीदवार न रहने से उनका एंडोर्सी बनना अब सुनिश्चित ही है, और इसलिए लोगों की नाराजगी व उनके विरोध की उन्हें परवाह करने की क्या जरूरत है ? इसी विश्वास के चलते उन्होंने विरोध करने वाले लोगों की वॉयस वोट कराने की माँग को मान लेने दिया । वॉयस वोटिंग में जब उनके समर्थन में पड़े वोटों की संख्या (98) उनके विरोध में पड़े वोटों की संख्या (116) से 18 कम निकली - तो जेपी सिंह के तोते उड़ गए । इस तरह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनने की जेपी सिंह की तैयारी पर जो 'वाट लगी', वह सिर्फ चुनाव हारने का मामला भर नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक किस्म की फजीहत है । जेपी सिंह की यह जो फजीहत हुई है, लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में उनके जैसी ऐसी फजीहत शायद ही कभी किसी की हुई होगी ।
जेपी सिंह के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनका जो यह हाल हुआ है, उससे डिस्ट्रिक्ट में उनके विरोधियों के हौंसले खासे मजबूत हुए हैं - और इन मजबूत हौंसलों के बल पर उनके विरोधी अब उन्हें ब्लड बैंक के मामले में घेरने की तैयारी कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि ब्लड बैंक में जेपी सिंह की बेईमानी तथा लूट के किस्से यूँ तो बहुत मशहूर हैं, लेकिन इन किस्सों को कहने/बताने वाले लोग इस मामले में जेपी सिंह को कभी घेर नहीं पाए । लगता है कि अब उन्हें मौका मिला है, और इस मौके का इस्तेमाल करने के लिए वह अपनी अपनी कमर कसने लगे हैं । जेपी सिंह के सामने मुसीबत यह है कि ब्लड बैंक पर अपना कब्जा यदि वह छोड़ भी देते हैं, तो यहाँ की गई गड़बड़ियों को मुद्दा बना कर उनके विरोधी उनका लायन राजनीति का कैरियर खत्म करने की कार्रवाई करेंगे; और यदि वह ब्लड बैंक पर अपना कब्जा बनाए रखने का प्रयास करते हैं - तो उनका यह प्रयास उनकी राजनीति को एक अलग तरीके से कमजोर करेगा । कई लोग मानते/कहते ही हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी मामले में जेपी सिंह की हुई फजीहत की जड़ में ब्लड बैंक की राजनीति ही है । ऐसे में जेपी सिंह के लिए एक तरफ कुँआ तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है - जिसे इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनावी नतीजे ने और भी संगीन बना दिया है ।