गाजियाबाद । रोटरी वरदान ब्लड बैंक के घपले में अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत को 'दागी' बना/दिखा कर जेके गौड़ ने जिस तरह 'अकेला' छोड़ दिया है, उससे जेके गौड़ का अवसरवादी रूप एक बार फिर सामने आया है । उल्लेखनीय
है कि रोटरी वरदान
ब्लड बैंक की आड़ में कमाई करने की तैयारी कर चुके जेके गौड़ ने जब अपने आप
को चारों तरफ से घिरा पाया, और वह ब्लड बैंक के लिए प्रस्तावित मशीनों की
कीमत को एक लाख 70 हजार डॉलर से घटा कर मात्र एक लाख डॉलर पर ले आने के लिए
मजबूर हुए; और इस तरह 70 हजार डॉलर, यानि 45 लाख
रुपए से अधिक की रकम डकार जाने का उनका 'इंतजाम' फेल हो गया - तो सवाल खड़ा
हुआ कि इस 'लूट' का इंतजाम करने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए और किसे
सजा दी जाए ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने रोटरी वरदान
ब्लड बैंक की कमेटी से अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत को बाहर
करके यह साफ संदेश दिया है कि 45 लाख रुपए की रकम फर्जीवाड़ा करके डकारे
जाने की 'योजना' इन तीनों ने ही बनाई थी, और सजा के तौर पर इन्हें कमेटी से
बाहर कर दिया । मजे की बात यह है कि जिस कमेटी ने ब्लड बैंक के नाम
पर 45 लाख रुपए की हेराफेरी करने की योजना बनाई थी, उसके मुख्य कर्ताधर्ता
तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतीश सिंघल थे - इस योजना को 'सफल' बनाने के
दाँव-पेंच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में खुद जेके गौड़ चल रहे थे; लेकिन जब
जिम्मेदारी तय करने का समय आया तो जेके गौड़ ने बदनामी का दाग अशोक
अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत पर लगा दिया ।
जेके
गौड़ का कहना है कि डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा ने उनसे इन तीनों को
कमेटी से बाहर करने की माँग की थी, जिसे मानने के लिए वह मजबूर हुए ।
डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा तो लेकिन ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने
वाली मशीनों की खरीद से संबंधित डिटेल्स देने की माँग कर रहे थे - जिसे मानने व पूरा करने में जेके गौड़ ने कभी भी दिलचस्पी नहीं ली, और तरह तरह की बहानेबाजी करके वह
जिसे लगातार अनसुना करते रहे तथा उससे बचने की तिकड़में लगाते रहे । इस
चक्कर में उन्होंने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट के रूप में
स्थापित होने वाले ब्लड बैंक का उद्घाटन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर
रवींद्रन से करवाने की महत्वाकांक्षी तैयारी तक को धूल में मिल जाने दिया ।
ऐसे में सवाल यह है कि मुकेश अरनेजा की माँग मानने की बजाए, रोटरी में और
शहर/समाज में अपना नाम बनाने/दिखाने के मौके की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हो
जाने वाले जेके गौड़ - इस बार तीन लोगों को कमेटी से बाहर करने की मुकेश
अरनेजा की माँग मानने के लिए मजबूर क्यों हो गए ? जो हुआ, उससे लोगों को प्रथम दृष्टया यही लगा कि ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने वाली मशीनों की आड़ में जेके गौड़ ने हेराफेरी की जो योजना बनाई थी, उसके
आरोपों से खुद को बचाने के लिए जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व
जेएस शेरावत को फँसा दिया - और इसका आरोप भी वह मुकेश अरनेजा के सिर मढ़ने
का प्रयास कर रहे हैं । इस मामले में लोगों को हैरानी इस बात पर है कि जेके
गौड़ ने अशोक अग्रवाल तक का भी कोई लिहाज नहीं किया और ब्लड बैंक की 'लूट'
के लिए उन्होंने अशोक अग्रवाल को भी 'जिम्मेदार' बताने/दिखाने से परहेज
नहीं किया ।
अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ जेके गौड़ ने जो किया, उसे लेकर किसी को कोई हैरानी नहीं है - किंतु अशोक अग्रवाल को भी उन्होंने अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ 'खड़ा' दिया, यह जरूर लोगों के लिए हैरानी की बात है । जेके गौड़ ने यूँ तो बहुत से लोगों के साथ 'यूज एंड थ्रो' वाला फार्मूला अपनाया है, किंतु अशोक अग्रवाल के साथ भी वह अपना यह फार्मूला अपनायेंगे - इसका किसी को विश्वास तो क्या, आभास तक नहीं था । जो लोग जेके गौड़ के प्रति दुर्भावना रखते रहे हैं, उनका भी मानना और कहना रहा कि जैसे डायन के पड़ोस का एक घर छोड़ने की बात मानी/कही जाती रही है - ठीक उसी तर्ज पर जेके गौड़ भी अशोक अग्रवाल को 'छोड़े' रखेंगे । किंतु अब जब मौका आया, तो पता चला कि जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल को भी नहीं छोड़ा । अशोक अग्रवाल के साथ किए गए व्यवहार ने जेके गौड़ के 'असली चरित्र' को उद्घाटित किया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ आज रोटरी में जो कुछ भी हैं, उसमें अशोक अग्रवाल का बहुत बड़ा रोल है - सिर्फ बड़ा ही नहीं, प्रमुख व निर्णायक रोल है । जेके गौड़ जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे, तब भी; और अब जब जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, तब भी अशोक अग्रवाल उनके साथ जिस तरह से कंधे से कंधा मिला कर खड़े रहे हैं - डिस्ट्रिक्ट में व रोटरी में वैसा दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल क्या, असंभव ही है । जो लोग अशोक अग्रवाल को नजदीक से जानते/पहचानते हैं, वह भी इस बात पर हैरान रहे हैं कि अशोक अग्रवाल तो किसी को कुछ न समझें, फिर वह जेके गौड़ के साथ इस हद तक इन्वॉल्व कैसे हो गए ? जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल के दूसरों के साथ भले ही कैसे भी संबंध रहे हों, और अपने अपने व्यवहार व रवैये के चलते दोनों चाहें कितने ही बदनाम रहे हों - लेकिन एक दूसरे के साथ निभाने के मामले में दोनों ने ही अपने नजदीकियों व जानने वालों को हैरान ही किया ।
लेकिन
जेके गौड़ ने अंततः दिखा/बता दिया है कि उनका 'चरित्र' बिलकुल भी नहीं बदला
है और अशोक अग्रवाल भी उनके लिए दूसरों जैसे ही हैं । कुछेक लोगों को लगता है कि जेके गौड़ के लिए अशोक अग्रवाल की जरूरत चूँकि
अब पूरी हो गई है, अशोक अग्रवाल उनके लिए अब ज्यादा काम के नहीं रह गए हैं -
इसलिए उन्होंने अशोक अग्रवाल को भी 'थ्रो' करने में हिचक नहीं दिखाई है ।
डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट के रूप में स्थापित होने वाले रोटरी वरदान ब्लड
बैंक के घपले तथा इस घपले के लिए अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ-साथ अशोक
अग्रवाल को भी जिम्मेदार 'दिखाने/बताने' के जेके गौड़ के रवैये ने जेके गौड़
के मतलबी और अवसरवादी रूप को सामने लाने का काम किया है ।अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ जेके गौड़ ने जो किया, उसे लेकर किसी को कोई हैरानी नहीं है - किंतु अशोक अग्रवाल को भी उन्होंने अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ 'खड़ा' दिया, यह जरूर लोगों के लिए हैरानी की बात है । जेके गौड़ ने यूँ तो बहुत से लोगों के साथ 'यूज एंड थ्रो' वाला फार्मूला अपनाया है, किंतु अशोक अग्रवाल के साथ भी वह अपना यह फार्मूला अपनायेंगे - इसका किसी को विश्वास तो क्या, आभास तक नहीं था । जो लोग जेके गौड़ के प्रति दुर्भावना रखते रहे हैं, उनका भी मानना और कहना रहा कि जैसे डायन के पड़ोस का एक घर छोड़ने की बात मानी/कही जाती रही है - ठीक उसी तर्ज पर जेके गौड़ भी अशोक अग्रवाल को 'छोड़े' रखेंगे । किंतु अब जब मौका आया, तो पता चला कि जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल को भी नहीं छोड़ा । अशोक अग्रवाल के साथ किए गए व्यवहार ने जेके गौड़ के 'असली चरित्र' को उद्घाटित किया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ आज रोटरी में जो कुछ भी हैं, उसमें अशोक अग्रवाल का बहुत बड़ा रोल है - सिर्फ बड़ा ही नहीं, प्रमुख व निर्णायक रोल है । जेके गौड़ जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे, तब भी; और अब जब जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, तब भी अशोक अग्रवाल उनके साथ जिस तरह से कंधे से कंधा मिला कर खड़े रहे हैं - डिस्ट्रिक्ट में व रोटरी में वैसा दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल क्या, असंभव ही है । जो लोग अशोक अग्रवाल को नजदीक से जानते/पहचानते हैं, वह भी इस बात पर हैरान रहे हैं कि अशोक अग्रवाल तो किसी को कुछ न समझें, फिर वह जेके गौड़ के साथ इस हद तक इन्वॉल्व कैसे हो गए ? जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल के दूसरों के साथ भले ही कैसे भी संबंध रहे हों, और अपने अपने व्यवहार व रवैये के चलते दोनों चाहें कितने ही बदनाम रहे हों - लेकिन एक दूसरे के साथ निभाने के मामले में दोनों ने ही अपने नजदीकियों व जानने वालों को हैरान ही किया ।