Wednesday, February 25, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद के लिए अपने राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता से 'कुछ भी कर गुजरने' का महामंत्र मिलने के बाद दोस्तों को छोड़ने, माफी माँग कर विरोधियों को गले लगाने, कमजोरों की कमजोरियों का फायदा उठाने जैसी तिकड़मों में जुट कर दीपक गर्ग ने चुनावी गहमागहमी को खासा भड़का दिया है

नई दिल्ली । विजय गुप्ता द्धारा दीपक गर्ग को चेयरमैन बनवाने का जिम्मा ले लेने के कारण नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद का चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । दीपक गर्ग ने खुद ही लोगों को बताया है कि विजय गुप्ता उनके लिए रणनीति तो बना ही रहे हैं और किस वोटर को कैसे अपने साथ किया जा सकता है इसकी तरकीबें भी भिड़ा रहे हैं - साथ ही यह भी तय कर लिया है कि यदि जरूरत पड़ी तो वह उनके पक्ष में वोट भी डालेंगे । विजय गुप्ता की इस सक्रिय मदद के भरोसे ही दीपक गर्ग ने रीजनल काउंसिल में बने अपने सत्ताधारी ग्रुप के साथियों/सहयोगियों को छोड़ देने - यानि अपने ग्रुप को तोड़ देने का निश्चय कर और जता दिया है । उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी ग्रुप में यह व्यवस्था तय की गई थी कि किसी पद के लिए ग्रुप में यदि एक से अधिक लोग दिलचस्पी लेंगे तो फिर उनके बीच पर्ची डाल कर फैसला होगा । दीपक गर्ग चेयरमैन बनने की जल्दी में लेकिन अब उक्त व्यवस्था का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं । उनका साफ कहना है कि ग्रुप यदि उन्हें चेयरमैन नहीं बनाता है, तो वह दूसरे लोगों के समर्थन से चेयरमैन बन जायेंगे ।
दीपक गर्ग को विशाल गर्ग और स्वदेश गुप्ता का तो पक्का समर्थन है; और उनका दावा है कि ग्रुप के बाहर के लोगों में उन्होंने गोपाल केडिया, मनोज बंसल व हरित अग्रवाल का समर्थन जुटा लिया है । दीपक गर्ग के इस दावे पर हालाँकि अन्य लोगों को विश्वास नहीं है । उनका तर्क है कि मनोज बंसल व हरित अग्रवाल पिछले वर्ष चेयरमैन पद की चुनावी तिकड़मों में दीपक गर्ग से धोखा खा चुके हैं, इसलिए इस वर्ष दोबारा से वह दीपक गर्ग के झाँसे में आयेंगे - इसकी उम्मीद नहीं है । दीपक गर्ग का कहना लेकिन यह है कि पिछले वर्ष जो हुआ था, उसके लिए उन्होंने इन दोनों से माफी माँग ली है और इन्होंने उन्हें माफ भी कर दिया है । दीपक गर्ग अपने सत्ता खेमे में के राजेश अग्रवाल और योगिता आनंद को कमजोर कड़ी के रूप में देख/पहचान रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं कि वह इन दोनों को अपने समर्थन के लिए राजी कर लेंगे । दीपक गर्ग इस तरह आठ वोटों का जुगाड़ कर लेने के प्रति आश्वस्त हैं, हालाँकि चेयरमैन बनने के लिए उन्हें कुल सात वोट ही चाहिए होंगे । इन आठ वोटों के अलावा, सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता के वोट को वह रिजर्व में रखे हुए हैं । उनका कहना है कि यदि जरूरत पड़ी तो विजय गुप्ता अपना वोट डालेंगे और उनके पक्ष में डालेंगे । दीपक गर्ग तो सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य सदस्य अतुल गुप्ता के वोट के भी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पड़ने का दावा कर रहे हैं । दूसरे लोगों को हालाँकि इस पर विश्वास नहीं हो रहा है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक अन्य लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गर्ग के यह दावे हवाई हैं और इस तरह के दावे वह भ्रम फैलाने तथा चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवारों को हतोत्साहित करने के लिए कर रहे हैं । उनका कहना है कि यह विजय गुप्ता की शिक्षा-दीक्षा व रणनीतिक तरकीबों का असर है । लोगों को लगता है कि विजय गुप्ता और दीपक गर्ग की जोड़ी ने रणनीति यह बनाई है कि झूठ बोलो और इतना बोलो कि लोगों को उनका झूठ सच लगने लगें । दीपक गर्ग को अपने तथाकथित दावों से इतना फायदा तो लेकिन हुआ ही है कि चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवार सीधे चुनाव से बचने लगे हैं और पर्ची डालने वाली व्यवस्था को ही अपनाने पर जोर दे रहे हैं । चेयरमैन पद के लिए हंसराज चुघ तथा राजिंदर नारंग भी मैदान में हैं - लेकिन यह ग्रुप की पर्ची वाली व्यवस्था से ही चुनाव चाहते हैं । काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन राधेश्याम बंसल भी ऐसा ही चाहते हैं । दीपक गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह है कि जिन राजेश अग्रवाल और योगिता आनंद को वह कमजोर कड़ी के रूप में देख रहे हैं, वह भी पर्ची वाली व्यवस्था का पक्ष लेते हुए ग्रुप की एकता को बनाये रखने की बात करते सुने जा रहे हैं । दीपक गर्ग को स्वदेश गुप्ता के रवैये से ज्यादा बड़ा झटका लगा है । स्वदेश गुप्ता ने कहा है कि यदि पर्ची वाली व्यवस्था से चेयरमैन पद का चुनाव हुआ तो फिर वह भी अपना नाम देंगे । इससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि स्वदेश गुप्ता सचमुच में दीपक गर्ग के साथ उतना नहीं हैं, जितना कि दीपक गर्ग दावा कर रहे हैं ।
दीपक गर्ग को विशाल गर्ग का जरूर ठोस समर्थन मिल रहा है । हालाँकि लोगों का कहना है कि विशाल गर्ग दरअसल दीपक गर्ग का इस्तेमाल करके राधेश्याम बंसल से बदला लेने की कोशिश कर रहे हैं । विशाल गर्ग लुधियाना ब्रांच को अवार्ड न मिलने से राधेश्याम बंसल से बुरी तरह खफा हैं । विशाल गर्ग ने लुधियाना में लोगों को ब्रांच को अवार्ड दिलाने का भरोसा दिलाया हुआ था, लेकिन लुधियाना ब्रांच को अवार्ड न मिलने से लुधियाना में उनकी भारी किरकिरी हुई है । इसके लिए विशाल गर्ग ने राधेश्याम बंसल को जिम्मेदार ठहराया है । उनका आरोप है कि राधेश्याम बंसल ने उन्हें लुधियाना में मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है । इसके चलते विशाल गर्ग को ग्रुप को एक बनाये रखने की बात बेमानी लगने लगी है और दीपक गर्ग के जरिये उन्होंने ग्रुप की एकता को सीधा निशाना बना लिया है । दीपक गर्ग को यह समझाने में वह सफल रहे हैं कि ग्रुप की एकता बनाये रखने में सहयोग करने के बावजूद वह यदि चेयरमैन नहीं बन पाये तो ग्रुप की एकता का वह क्या करेंगे और चेयरमैन बनने के लिए उन्हें यदि ग्रुप से अलग भी होना पड़े तो उन्हें हिचकना नहीं चाहिए ।
दीपक गर्ग के राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता ने भी जब उन्हें चेयरमैन बनने के लिए 'कुछ भी कर गुजरने' का महामंत्र दिया तो फिर दीपक गर्ग दोस्तों को छोड़ने, माफी माँग कर विरोधियों को गले लगाने, कमजोरों की कमजोरियों का फायदा उठाने जैसी तिकड़मों से चेयरमैन बनने की होड़ में जुट गए हैं । दीपक गर्ग को इस जुटने का फायदा मिलता है या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन उनके इस तरह से जुटने ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद की चुनावी गहमागहमी को भड़का जरूर दिया है ।