नई दिल्ली । सलीम मौस्सान को
अभी हाल ही में कैलिफोर्निया लायंस कन्वेंशन में तथा उससे पहले बैंकॉक में
आयोजित हुई ओसीएल फोरम की मीटिंग में तथा उससे भी पहले तुर्की
के इस्तांबुल में आयोजित ग्रेट लायंस मीटिंग में जो तवज्जो मिली है, उसने
सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उनकी स्थिति को अच्छी
बढ़त दी है तथा उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार नरेश अग्रवाल के लिए खतरे की
घंटी खासे जोर से बजा दी है । नरेश
अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इन जगहों पर उन्हें एकतरफा
समर्थन मिलने की उम्मीद थी । यहाँ के कुछेक लायन नेताओं ने नरेश अग्रवाल को
समर्थन के प्रति आश्वस्त किया हुआ था, किंतु जब समर्थन 'दिखाने' का समय
आया तो मंच पर सलीम मौस्सान छाए हुए थे । नरेश
अग्रवाल को जिन लोगों ने समर्थन के लिए आश्वस्त किया हुआ था, उन लोगों ने
नरेश अग्रवाल को टका-सा जबाव दे दिया है कि सक्रियता के मामले में उनकी
तुलना में चूँकि सलीम मोस्सान का पलड़ा लोगों को भारी दिखा है, इसलिए उनके
आयोजनों में सलीम मौस्सान को अहमियत मिली है ।
रिपब्लिक ऑफ काँगो में आयोजित हुई ऑल अफ्रीका लायंस कॉन्फ्रेंस में सलीम मौस्सान की जैसी आवभगत हुई, उससे भी उनकी उम्मीदवारी को दम मिलता हुआ नजर आया है । यहाँ हुई उनकी जोरदार आवभगत का एक कारण यह भी रहा कि सलीम मौस्सान ने रिपब्लिक ऑफ काँगो के प्रशासनिक हलकों में अपने संपर्कों की झलक लायंस नेताओं को पहले ही दे दी थी । रिपब्लिक ऑफ काँगो के राष्ट्रपति से हुई उनकी मुलाकात की जानकारी ने लायन नेताओं को उनके साथ नजदीकी बनाने और दिखाने के लिए खासतौर से प्रोत्साहित किया ।
सलीम मौस्सान ने लेकिन सबसे बड़ा दाँव चला भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी पहचान और उपस्थिति दर्ज कराने का । 66वें इंडियन रिपब्लिक डे के मौके पर बधाई संदेश भेजते हुए सलीम मौस्सान ने होशियारी यह दिखाई कि अपने बधाई संदेश के साथ उन्होंने अपनी जो तस्वीर लगाई उसमें वह भारतीय परंपरा के अनुरूप पगड़ी बाँधे हुए दिख रहे हैं । अपनी इस पोश्चरिंग से उन्होंने भारतीय लायन सदस्यों के बीच भावनात्मक अपील बनाने की जो कोशिश की है, उसे उनके एक बड़े मूव के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में सलीम मौस्सान ने भारतीय लायन मतदाताओं के बीच अपने लिए समर्थन जुटाने की यूँ तो कोई बड़ी एक्सरसाइज अभी तक नहीं की है, हालाँकि यहाँ जो लोग नरेश अग्रवाल से खुश नहीं हैं उनके साथ सलीम मौस्सान का संपर्क बना हुआ है । समझा जा रहा है कि सलीम मौस्सान एक तरफ तो उचित मौका देख रहे हैं, और दूसरी तरफ तरीका समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वह कब और कैसे भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें ।
सलीम मौस्सान ने दरअसल अभी उन देशों में अपने संपर्क अभियान को संगठित किया हुआ है, जहाँ से मतदाताओं को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में ले जा पाना आसान होगा । इस संदर्भ में नरेश अग्रवाल की तुलना में उनकी तैयारी ज्यादा व्यावहारिक है । नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बड़े नेताओं के समर्थन के भरोसे ज्यादा तैयारी करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि चुनावी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी जब उनके समर्थन में हैं, तो उन्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है । सलीम मौस्सान को लगता है कि अपनी सक्रियता से वह यदि लायन मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना लेते हैं, तो लायन राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी उनके समर्थन में भी आ जायेंगे । इसी नाते से, सलीम मौस्सान की सक्रियता ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।
रिपब्लिक ऑफ काँगो में आयोजित हुई ऑल अफ्रीका लायंस कॉन्फ्रेंस में सलीम मौस्सान की जैसी आवभगत हुई, उससे भी उनकी उम्मीदवारी को दम मिलता हुआ नजर आया है । यहाँ हुई उनकी जोरदार आवभगत का एक कारण यह भी रहा कि सलीम मौस्सान ने रिपब्लिक ऑफ काँगो के प्रशासनिक हलकों में अपने संपर्कों की झलक लायंस नेताओं को पहले ही दे दी थी । रिपब्लिक ऑफ काँगो के राष्ट्रपति से हुई उनकी मुलाकात की जानकारी ने लायन नेताओं को उनके साथ नजदीकी बनाने और दिखाने के लिए खासतौर से प्रोत्साहित किया ।
सलीम मौस्सान ने लेकिन सबसे बड़ा दाँव चला भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी पहचान और उपस्थिति दर्ज कराने का । 66वें इंडियन रिपब्लिक डे के मौके पर बधाई संदेश भेजते हुए सलीम मौस्सान ने होशियारी यह दिखाई कि अपने बधाई संदेश के साथ उन्होंने अपनी जो तस्वीर लगाई उसमें वह भारतीय परंपरा के अनुरूप पगड़ी बाँधे हुए दिख रहे हैं । अपनी इस पोश्चरिंग से उन्होंने भारतीय लायन सदस्यों के बीच भावनात्मक अपील बनाने की जो कोशिश की है, उसे उनके एक बड़े मूव के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में सलीम मौस्सान ने भारतीय लायन मतदाताओं के बीच अपने लिए समर्थन जुटाने की यूँ तो कोई बड़ी एक्सरसाइज अभी तक नहीं की है, हालाँकि यहाँ जो लोग नरेश अग्रवाल से खुश नहीं हैं उनके साथ सलीम मौस्सान का संपर्क बना हुआ है । समझा जा रहा है कि सलीम मौस्सान एक तरफ तो उचित मौका देख रहे हैं, और दूसरी तरफ तरीका समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वह कब और कैसे भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें ।
सलीम मौस्सान ने दरअसल अभी उन देशों में अपने संपर्क अभियान को संगठित किया हुआ है, जहाँ से मतदाताओं को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में ले जा पाना आसान होगा । इस संदर्भ में नरेश अग्रवाल की तुलना में उनकी तैयारी ज्यादा व्यावहारिक है । नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बड़े नेताओं के समर्थन के भरोसे ज्यादा तैयारी करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि चुनावी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी जब उनके समर्थन में हैं, तो उन्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है । सलीम मौस्सान को लगता है कि अपनी सक्रियता से वह यदि लायन मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना लेते हैं, तो लायन राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी उनके समर्थन में भी आ जायेंगे । इसी नाते से, सलीम मौस्सान की सक्रियता ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।