Tuesday, February 10, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में मौजूदा प्रेसीडेंट के रघु तथा वाइस प्रेसीडेंट मनोज फडनिस अपने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में सचमुच सक्रिय होंगे और उन्हें समर्थन दिलवायेंगे क्या ?

नई दिल्ली । नीलेश विकमसे ने मनोज फडनिस, तो विजय गुप्ता ने के रघु व उत्तम 'गिरोह' की मदद से इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद पर पहुँचने की जो तैयारी की है - उसे राजकुमार अदुकिया ने मुद्दे की लड़ाई बना कर खासा दिलचस्प बना दिया है । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद की लड़ाई आम तौर पर निजी तिकड़मों पर आधारित रहती है और इसमें निजी स्तर पर की जाने वाली सौदेबाजियों को ही निर्णायक भूमिका निभाते हुए देखा गया है - इसीलिए नीलेश विकमसे को उम्मीद है कि एक विदेशी फर्म में पिछले वर्ष ही उनके पार्टनर बने मनोज फडनिस वाइस प्रेसीडेंट पद की कुर्सी दिलवाने में उनकी अवश्य ही मदद करेंगे । मनोज फडनिस इस समय इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट हैं और वह अगले प्रेसीडेंट होंगे । नीलेश विकमसे के नजदीकियों का कहना है कि प्रेसीडेंट के रूप में मनोज फडनिस की कृपा पाने के लिए सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्य जुगाड़ में हैं और इसके बदले में मनोज फडनिस उनसे नीलेश विकमसे के लिए समर्थन माँग सकते हैं । नीलेश विकमसे के कुछेक समर्थकों का तो यहाँ तक कहना है कि पिछले वर्ष मनोज फडनिस को विदेशी फर्म में जो पार्टनरशिप मिली है, उसमें विकमसे भाईयों की बड़ी भूमिका थी - और अब मनोज फडनिस के सामने उस अहसान का बदला चुकाने की बारी है ।
नीलेश विकमसे को यदि मनोज फडनिस के रूप में आने वाले प्रेसीडेंट से मदद की उम्मीद है, तो विजय गुप्ता को के रघु के रूप में जाने वाले प्रेसीडेंट से सहायता मिलने का भरोसा है । विजय गुप्ता इस वर्ष के रघु के बड़े ही खास रहे हैं । उन्हें भरोसा है कि प्रेसीडेंट के रूप में के रघु ने सेंट्रल काउंसिल के जिन जिन लोगों पर भी कृपा की है, उनका समर्थन उन्हें मिल सकेगा । के रघु ने अपने प्रेसीडेंट-काल में जिन जिन लोगों पर कृपा की है, उनमें विजय गुप्ता का चूँकि पहला स्थान रहा है इसलिए दूसरे लोगों के बीच उनके प्रति विरोध का भाव भी रहा है । इसके बावजूद विजय गुप्ता को उम्मीद है कि के रघु दूसरे लोगों को उनका समर्थन करने के लिए राजी कर लेंगे । विजय गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपना पलड़ा इसलिए भी भारी लगता है क्योंकि उन्हें उत्तम गिरोह के सदस्यों के समर्थन का भी विश्वास है । उत्तम गिरोह के पसंदीदा उम्मीदवार हालाँकि अनुज गोयल होते, लेकिन अनुज गोयल अगले टर्म में उम्मीदवार नहीं हो सकने के कारण वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ से चूँकि बाहर हैं - इसलिए विजय गुप्ता को उम्मीद है कि उत्तम गिरोह के सदस्य उनका समर्थन करेंगे ।
विजय गुप्ता को हालाँकि नवीन गुप्ता और अतुल गुप्ता से झटका मिलने का डर भी बना हुआ है । नवीन गुप्ता वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपने पापा के भरोसे हैं । उनके पापा एनडी गुप्ता इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट हैं, और उन्हें पूरा विश्वास है कि वह उन्हें भी प्रेसीडेंट बनवा देंगे । अतुल गुप्ता ने अभी तक के अपने दो-वर्षीय कार्यकाल में सेंट्रल काउंसिल के जिन सदस्यों को अपने विभिन्न कार्यक्रमों/आयोजनों में अहमियत दी है उन्हें वह दी गई अहमियत याद दिला दिला कर वोट जुटाने का प्रयास कर रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने पिछले दो वर्षों में सेंट्रल काउंसिल के बहुत से सदस्यों को अपने तरीके से उचित मान-सम्मान दिया है, लिहाजा उन्हें उम्मीद है कि चुनाव के मौके पर उक्त सदस्य उसका ध्यान रखेंगे और उनके पक्ष में वोट करेंगे । अतुल गुप्ता को उन सदस्यों के समर्थन की भी उम्मीद है, सेंट्रल काउंसिल में जिनका पहला टर्म है । अतुल गुप्ता ने पहले टर्म वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का नेता बनने का प्रयास तो लगातार किया है - और अब अपने उसी प्रयास का वह फल पाने का विश्वास कर रहे हैं । 
राजकुमार अदुकिया ने वाइस प्रेसीडेंट का पद पाने के लिए एक अलग ही रास्ता अपनाया है । निजी तिकड़मों पर भरोसा करने से अलग उन्होंने मुद्दों पर समर्थन जुटाने का प्रयास किया है । जिन लोगों को उनके इस अलग रास्ते पर भरोसा नहीं भी है, वह भी लेकिन उनके तरीके की सराहना तो करते हुए दिख ही रहे हैं । राजकुमार अदुकिया कोशिश में हैं कि उन्हें सराहना के साथ साथ वोट भी मिल जाएँ । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए यूँ तो और भी उम्मीदवार सक्रिय हैं, लेकिन उन्होंने तीन-तिकड़मों को चलाने की बजाये अपने अपने संपर्कों, अपने अपने कामों और अपनी अपनी किस्मत पर भरोसा रखा हुआ है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव खासा अनिश्चितता भरा होता है और किसी के लिए भी यह समझ पाना प्रायः असंभव ही होता है कि किसकी नाँव पार लगेगी । अक्सर देखा गया है कि ज्यादा तीन-तिकड़म वाले उम्मीदवार बेचारे ताकते रह जाते हैं, और कोई छुपा रुस्तम बाजी मार ले जाता है । इसी तर्ज पर इस बार का चुनाव भी अनिश्चितता भरा तो है ही, किंतु मौजूदा प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट को जिस तरह से विजय गुप्ता और नीलेश विकमसे द्धारा इस बार के चुनाव में घसीट लिया गया है, उसके चलते इस बार का चुनाव खासा दिलचस्प तो हो ही गया है ।