नई दिल्ली । रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन मिलने के मामले में दिल्ली में जो झटका लगा है, उससे उनके समर्थकों के बीच निराशा और गहरा गई है । उल्लेखनीय
है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस जुटाने के लिए
उनके समर्थक नेताओं - दीपक तलवार, सुशील खुराना, विनोद बंसल, दमनजीत सिंह,
रमेश चंदर आदि ने एड़ी-चोटी को जोर लगा दिया था; लेकिन यह सब मिलकर दिल्ली
में कुल तीन क्लब्स से ही कॉन्करेंस जुटा सके । इस तथ्य से लोगों को
यही संकेत और संदेश मिला है कि दिल्ली में क्लब्स के पदाधिकारियों ने रवि
चौधरी की उम्मीदवारी को नकार दिया है । बड़े बड़े नेताओं के खुल कर सक्रिय
होने के बावजूद दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने
का अभियान जिस तरह से फेल हुआ है, उससे उनकी चुनावी तैयारियों को खासा तगड़ा
झटका लगा है ।
यह झटका इसलिए लगा है क्योंकि सरोज जोशी
और रवि चौधरी के बीच होने वाले चुनाव के लिए मान्य वोटों में दिल्ली का
हिस्सा दो-तिहाई के करीब है । चुनाव में कुल करीब 75 वोटों के मान्य होने
का अनुमान है, जिसमें करीब 50 वोट दिल्ली के हैं । रवि चौधरी की
उम्मीदवारी के समर्थकों का ही मानना और कहना है कि रवि चौधरी को इन करीब 50
वोटों में से 5 से 7 वोट मिल जाएँ तो बहुत समझियेगा । रवि चौधरी की
उम्मीदवारी के समर्थकों का दावा है कि हरियाणा क्षेत्र से उन्हें एकतरफा
समर्थन मिलेगा । हरियाणा क्षेत्र के वोट करीब 25 हैं । इन सभी 25 वोटों
के मिलने के रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों के दावे को यदि सच भी मान
लिया जाए, रवि चौधरी तब भी जीत से बहुत पीछे रह जाते हैं । वोटों के इसी
गणित ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों को बुरी तरह निराश किया हुआ
है ।
रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने माथापच्ची
करते हुए यह समझने की कोशिश की कि वह यदि और जोर लगाएँ तो हो सकता है कि
दिल्ली में चार-पाँच वोट का वह और जुगाड़ बना लें - लेकिन तब भी जीत तो
मिलती नहीं दिखती है । समस्या यह भी है, जिसे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के
समर्थक दबे स्वर में स्वीकार भी करते हैं, कि हरियाणा क्षेत्र के सभी वोट
रवि चौधरी को मिलना मुश्किल ही होगा । ऐसे में, रवि चौधरी के लिए जीत और
दूर हो जायेगी । हरियाणा क्षेत्र से रवि चौधरी को कॉन्करेंस दिलवाने में
उनके समर्थक नेता कामयाब जरूर रहे हैं, लेकिन इस कामयाबी ने मुश्किलें
बढ़ाने का ही काम किया है । दरअसल इस कामयाबी के लिए नेताओं को क्लब्स के
पदाधिकारियों पर खासा दबाव बनाना पड़ा, जिसके चलते क्लब्स के पदाधिकारी भड़के
हुए हैं और वह कहते हुए सुने गए हैं कि कॉन्करेंस तो इन्होंने जबर्दस्ती
ले ली हैं, देखते हैं कि वोट कैसे लेते हैं ?
हरियाणा
क्षेत्र के कई रोटेरियंस को यह डर भी सता रहा है कि रवि चौधरी की
उम्मीदवारी का समर्थन करने के कारण वह कहीं डिस्ट्रिक्ट की मुख्य धारा से
अलग-थलग न पड़ जाएँ और उनकी पहचान व भूमिका हाशिए की न होकर रह जाए ?
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजन के फार्मूले पर जब बात हो रही
थी, तब एक फार्मूला दिल्ली और बाहरी दिल्ली क्षेत्र के रूप में डिस्ट्रिक्ट
को विभाजित करने का भी आया था । दिल्ली के अधिकतर लोग इस फार्मूले से सहमत
थे, किंतु बाहरी दिल्ली क्षेत्र के लोगों ने इसका तगड़ा विरोध किया था । बाहरी
दिल्ली क्षेत्र के लोग दिल्ली के साथ ही रहना चाहते थे - इसीलिए ऐसा
फार्मूला स्वीकार हुआ जिसके अनुसार दोनों विभाजित डिस्ट्रिक्ट्स में दिल्ली
भी है । उसी भावना के कारण हरियाणा क्षेत्र के रोटेरियंस को लगता है कि
चुनावी राजनीति में उन्हें भी ऐसा ही फैसला करना चाहिए जिससे कि वह दिल्ली
के साथ ही जुड़े दिखें ।
इसी कारण से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में हरियाणा क्षेत्र के कई प्रमुख रोटेरियंस को लगता है कि दिल्ली में यदि सरोज जोशी के लिए एकतरफा समर्थन दिख रहा है तो उन्हें भी कुछेक नेताओं के बहकावे में आने की बजाये दिल्ली वालों की राय के साथ ही जाना चाहिए । मजे की बात यह हुई है कि हरियाणा क्षेत्र में समर्थन जुटाने के लिए रवि चौधरी के समर्थकों ने उनके बीच दावा किया कि दिल्ली में तो रवि चौधरी के लिए अच्छा समर्थन है । यह धोखा देकर रवि चौधरी के लिए हरियाणा क्षेत्र में कॉन्करेंस तो जुटा ली गईं हैं; लेकिन अब जब दिल्ली में समर्थन का उनका दावा झूठा साबित हो गया है, तो हरियाणा में अपने समर्थन को बचाये/बनाये रख पाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है ।
इसी कारण से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में हरियाणा क्षेत्र के कई प्रमुख रोटेरियंस को लगता है कि दिल्ली में यदि सरोज जोशी के लिए एकतरफा समर्थन दिख रहा है तो उन्हें भी कुछेक नेताओं के बहकावे में आने की बजाये दिल्ली वालों की राय के साथ ही जाना चाहिए । मजे की बात यह हुई है कि हरियाणा क्षेत्र में समर्थन जुटाने के लिए रवि चौधरी के समर्थकों ने उनके बीच दावा किया कि दिल्ली में तो रवि चौधरी के लिए अच्छा समर्थन है । यह धोखा देकर रवि चौधरी के लिए हरियाणा क्षेत्र में कॉन्करेंस तो जुटा ली गईं हैं; लेकिन अब जब दिल्ली में समर्थन का उनका दावा झूठा साबित हो गया है, तो हरियाणा में अपने समर्थन को बचाये/बनाये रख पाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है ।
दिल्ली
में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन आखिर बन क्यों नहीं पाया है ?
इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि दिल्ली में अधिकतर क्लब्स अधिकृत उम्मीदवार
के पक्ष में ही जाते हैं और साफ साफ यह कहते हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी
द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चुनाव में नहीं घसीटना चाहिए । इससे नाहक
ही डिस्ट्रिक्ट में बदमजगी पैदा होती है । इसी तर्क के कारण कई क्लब्स सरोज
जोशी की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । उनका कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी
में जब सरोज जोशी की उम्मीदवारी को जीत मिल गई है, तो उन्हें ही
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि
डिस्ट्रिक्ट 3010 अपने कुछेक नेताओं की टुच्ची व ओछी राजनीतिक हरकतों के
कारण ही पायलट प्रोजेक्ट के फंदे में आया है । पायलट प्रोजेक्ट के पहले दो
वर्ष में नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का ही पालन हुआ है । मौजूदा तीसरे वर्ष
में जब डिस्ट्रिक्ट 3010 दो डिस्ट्रिक्ट में विभाजित हो गया है तो विभाजित
हुए एक डिस्ट्रिक्ट 3012 में भी नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का ही पालन हो
रहा है । डिस्ट्रिक्ट 3011 में लेकिन कुछेक नेताओं ने अपनी पैंतरेबाजी
से चुनाव की स्थितियाँ पैदा कर दी हैं और डिस्ट्रिक्ट में घटिया चालबाजियों
का खेल शुरू कर दिया है । नेताओं ने भले ही घटिया चालबाजियाँ अपना ली हों,
लेकिन क्लब्स के पदाधिकारियों ने मैच्योरिटी का परिचय दिया है और वह चालबाजियों में फँसने से बचते हुए दिख रहे हैं ।
यही
कारण है कि दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने की उनके
समर्थक नेताओं की तमाम कोशिशें फेल होती हुई नजर आ रही हैं । मजे की बात
यह दिख रही है कि रवि चौधरी अपनी उम्मीदवारी को लेकर उतने सक्रिय नहीं दिख
रहे हैं, जितने सक्रिय उनके समर्थक नेता हैं । इससे लोगों को - खासतौर से
वोटरों को - रवि चौधरी को जानने/पहचानने/समझने का मौका ही नहीं मिल पाया है
। रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए उनके समर्थक
नेताओं ने जिस तरह की हरकतें और चालबाजियाँ की हैं उससे रवि चौधरी का काम
और खराब हुआ है । नेताओं की हरकतों और चालबाजियों के कारण ही दिल्ली के
क्लब्स रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस देने को तैयार
नहीं हुए हैं । दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी को जो झटका मिला है, उससे उनके लिए चुनाव और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है ।