लखनऊ । संदीप सहगल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए बेहतर उम्मीदवार बताने के लिए उनके पढ़े-लिखे होने का जो तथ्य इस्तेमाल किया गया, उसने लोगों के बीच उल्टा ही असर किया है । लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि संदीप
सहगल की जिस पढ़ाई को गर्व के साथ उनकी उपलब्धि के रूप में बताया जा रहा
है, उसी पढ़ाई से जुड़े प्रोफेशन में ही वह फिर टिके क्यों नहीं रह सके और
क्यों उन्हें दूसरे कामकाजों की तरफ जाना पड़ा ? इसी से सवाल पैदा होता
है कि इस बात की क्या गारंटी है कि यदि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी मिली तो
कहीं वह ऐसा ही सौतेलापन अपनी गवर्नरी के साथ भी नहीं दिखायेंगे ?
उल्लेखनीय है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने उनके
पढ़े-लिखे होने का वास्ता देकर उनके एलएलएम होने की जानकारी लोगों को दी ।
संदीप सहगल वकील हैं, यह तो लोगों को पता रहा है; लेकिन वह सिर्फ एलएलबी
नहीं हैं, बल्कि उन्होंने उसके बाद एलएलएम तक की पढ़ाई भी की है - यह
अधिकतर लोगों को नहीं पता था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में किसी
उम्मीदवार के एलएलएम की पढ़ाई करने या न करने का क्या मतलब हो सकता है - यह
तो किसी को भी नहीं पता; लेकिन संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं
को ऐसा लगा कि यह जानकारी देकर वह लोगों के बीच संदीप सहगल के लिए समर्थन व
स्वीकार्यता और बढ़ा लेंगे । किंतु उनका यह होशियारी भरा दाँव उल्टा पड़ गया है ।
लोगों के बीच चर्चा यह चली है कि महत्व इस बात का है कि एलएलएम की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने किया क्या ? लोगों को जो जानकारी है उसके अनुसार संदीप सहगल वकील होने के साथ-साथ कुछेक दूसरे काम-धंधे भी करते हैं । दूसरे काम-धंधों की तरफ संदीप सहगल को क्यों जाना पड़ा, इसकी कोई जानकारी तो लोगों को नहीं है - लेकिन लोगों का अनुमान है कि और ज्यादा कमाई के उद्देश्य से ही संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों को अपनाया होगा । ऐसा करके उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है - लेकिन ऐसा करने के बाद उन्हें एलएलएम करने पर कम-से-कम इतराने का काम तो नहीं करना चाहिए । बहुत आदर्शात्मक तरीके से सोचें/देखें तो उन्होंने जो किया है उसे अपनी पढ़ाई के साथ विश्वासघात करने वाली श्रेणी में रखा जा सकता है । उन्होंने एलएलएम किया है तो वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें झंडे गाड़ने चाहिए थे; वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें नाम और दाम कमाने चाहिए थे । बहुत से लोग हैं जिन्होंने वकालत के क्षेत्र में ही नाम और दाम कमाए हैं । एक बार फिर दोहरायेंगे कि संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों में हाथ आजमाया है, तो दुनियादारी के लिहाज से कुछ भी गलत नहीं किया है । सवाल सिर्फ यह है कि अपनी जिस ऊँची पढ़ाई पर वह पूरा भरोसा नहीं कर पाए; जीवन में उन्हें जो चाहिए था उसे वह अपनी पढ़ाई के प्रोफेशन से प्राप्त करने का हौंसला नहीं बनाये रख पाए - तब फिर अपनी उस पढ़ाई को एक उपलब्धि के रूप में दिखाने/जताने का मतलब आखिर क्या है ? जाहिर है कि उनकी ऊँची पढ़ाई उनके लिए एक सजावटी वस्तु से अधिक कुछ नहीं है ।
इसी से लोगों को यह कहने और पूछने का मौका मिला है कि संदीप सहगल ने जिस तरह अपनी पढ़ाई के साथ 'विश्वासघात' किया है और उसे मात्र एक सजावटी वस्तु बना कर रख छोड़ा है; कहीं वह - यदि मिली तो - डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के साथ भी तो ऐसा नहीं करेंगे ? इस कहने/पूछने ने संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की मुसीबत बढ़ा दी है । मजे की बात यह हुई है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का ही कहना है कि यह मुसीबत संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं ने खुद ही आमंत्रित की है । दूसरे कुछेक लोगों को लगता है कि एलएलएम वाली बात बता कर समर्थन जुटाने की कोशिश संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की बौखलाहट का सुबूत पेश कर रही है । समर्थकों का ही सुझाव है कि चुनाव-अभियान के अंतिम दिनों में संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं को बहुत सावधानी से बातें करने की जरूरत है, और बौखलाहट में बेसिरपैर की बातें करने या तर्कबाजी करने से उल्टा असर हो सकता है - जैसा कि एलएलएम की जुमलेबाजी करने के चक्कर में हो गया है ।
संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता जहाँ अपने द्धारा खुद बुलाई गई मुसीबत से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, वहाँ अशोक अग्रवाल ने अपने समर्थक नेताओं व क्लब्स के पदाधिकारियों व अन्य प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भरा । पर्चा भरने के दौरान उनका हौंसला बढ़ाने के लिए तथा उनके प्रति अपने समर्थन को जाहिर करने के लिए दो सौ से ज्यादा लायन नेता व सदस्य मौजूद थे । यह संख्या इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उस समय एक तरफ तो नवरात्र का त्यौहार था और उसके साथ साथ उस समय भारत व आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट के विश्व कप का सेमीफाइनल मैच खेला जा रहा था । इसके बावजूद अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाने' के लिए लखनऊ के दो सौ से अधिक लायन आये - इसे देख/जान कर अशोक अग्रवाल के खेमे में उत्साह और बढ़ा है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विशाल सिन्हा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल द्धारा अपनी अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करने के दौरान के कुछ दृश्य इन तस्वीरों में देखे जा सकते हैं :
लोगों के बीच चर्चा यह चली है कि महत्व इस बात का है कि एलएलएम की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने किया क्या ? लोगों को जो जानकारी है उसके अनुसार संदीप सहगल वकील होने के साथ-साथ कुछेक दूसरे काम-धंधे भी करते हैं । दूसरे काम-धंधों की तरफ संदीप सहगल को क्यों जाना पड़ा, इसकी कोई जानकारी तो लोगों को नहीं है - लेकिन लोगों का अनुमान है कि और ज्यादा कमाई के उद्देश्य से ही संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों को अपनाया होगा । ऐसा करके उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है - लेकिन ऐसा करने के बाद उन्हें एलएलएम करने पर कम-से-कम इतराने का काम तो नहीं करना चाहिए । बहुत आदर्शात्मक तरीके से सोचें/देखें तो उन्होंने जो किया है उसे अपनी पढ़ाई के साथ विश्वासघात करने वाली श्रेणी में रखा जा सकता है । उन्होंने एलएलएम किया है तो वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें झंडे गाड़ने चाहिए थे; वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें नाम और दाम कमाने चाहिए थे । बहुत से लोग हैं जिन्होंने वकालत के क्षेत्र में ही नाम और दाम कमाए हैं । एक बार फिर दोहरायेंगे कि संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों में हाथ आजमाया है, तो दुनियादारी के लिहाज से कुछ भी गलत नहीं किया है । सवाल सिर्फ यह है कि अपनी जिस ऊँची पढ़ाई पर वह पूरा भरोसा नहीं कर पाए; जीवन में उन्हें जो चाहिए था उसे वह अपनी पढ़ाई के प्रोफेशन से प्राप्त करने का हौंसला नहीं बनाये रख पाए - तब फिर अपनी उस पढ़ाई को एक उपलब्धि के रूप में दिखाने/जताने का मतलब आखिर क्या है ? जाहिर है कि उनकी ऊँची पढ़ाई उनके लिए एक सजावटी वस्तु से अधिक कुछ नहीं है ।
इसी से लोगों को यह कहने और पूछने का मौका मिला है कि संदीप सहगल ने जिस तरह अपनी पढ़ाई के साथ 'विश्वासघात' किया है और उसे मात्र एक सजावटी वस्तु बना कर रख छोड़ा है; कहीं वह - यदि मिली तो - डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के साथ भी तो ऐसा नहीं करेंगे ? इस कहने/पूछने ने संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की मुसीबत बढ़ा दी है । मजे की बात यह हुई है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का ही कहना है कि यह मुसीबत संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं ने खुद ही आमंत्रित की है । दूसरे कुछेक लोगों को लगता है कि एलएलएम वाली बात बता कर समर्थन जुटाने की कोशिश संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की बौखलाहट का सुबूत पेश कर रही है । समर्थकों का ही सुझाव है कि चुनाव-अभियान के अंतिम दिनों में संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं को बहुत सावधानी से बातें करने की जरूरत है, और बौखलाहट में बेसिरपैर की बातें करने या तर्कबाजी करने से उल्टा असर हो सकता है - जैसा कि एलएलएम की जुमलेबाजी करने के चक्कर में हो गया है ।
संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता जहाँ अपने द्धारा खुद बुलाई गई मुसीबत से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, वहाँ अशोक अग्रवाल ने अपने समर्थक नेताओं व क्लब्स के पदाधिकारियों व अन्य प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भरा । पर्चा भरने के दौरान उनका हौंसला बढ़ाने के लिए तथा उनके प्रति अपने समर्थन को जाहिर करने के लिए दो सौ से ज्यादा लायन नेता व सदस्य मौजूद थे । यह संख्या इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उस समय एक तरफ तो नवरात्र का त्यौहार था और उसके साथ साथ उस समय भारत व आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट के विश्व कप का सेमीफाइनल मैच खेला जा रहा था । इसके बावजूद अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाने' के लिए लखनऊ के दो सौ से अधिक लायन आये - इसे देख/जान कर अशोक अग्रवाल के खेमे में उत्साह और बढ़ा है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विशाल सिन्हा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल द्धारा अपनी अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करने के दौरान के कुछ दृश्य इन तस्वीरों में देखे जा सकते हैं :