गाजियाबाद । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम को
अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल के पदों को 'बेचने' के लिए अब खुद ही
मैदान में उतरना पड़ा है । डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया है कि सुनील निगम ने उन्हें फोन
करके पदों का ऑफर दिया और पद स्वीकार करने का अनुरोध किया । फोन पाने
वाले लोगों को लगता है कि सुनील निगम को अपने गवर्नर काल की टीम के लिए
पदाधिकारी नहीं मिल रहे हैं; और पूर्व गवर्नर्स भी उनकी मदद नहीं कर रहे
हैं - इसलिए सुनील निगम को अब खुद ही मोर्चा सँभालना पड़ा है । सुनील
निगम ने अपने गवर्नर-काल के लिए पदों के जो दाम तय किए हैं, उन्हें लेकर
डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भारी आलोचना है । उल्लेखनीय है कि सुनील निगम
ने रीजन चेयरमैन के लिए 41 हजार रुपये, जोन चेयरमैन के लिए 31 हजार रुपये
तथा कमेटियों के चेयरमैंस से 15 हजार रुपये लेने तय किए हैं । लोगों के
बीच इन कीमतों को बहुत ज्यादा माना गया है, और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट में
सक्रिय दिखने वाले कई लोगों ने उनसे पद लेने से इंकार कर दिया है । पदों के
लिए सिफारिश करने वाले पूर्व गवर्नर्स भी इस बार सिफारिशें करने से बचते
दिख रहे हैं । ऐसे में, सुनील निगम को अपने गवर्नर-काल के पदों को बेचने के लिए खुद ही मैदान
में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अरुण मित्तल को हालाँकि पदों की ऊँची कीमत बसूलने के मामले में सुनील निगम की मदद करते हुए सुना/देखा गया है । अरुण मित्तल ने पदों की इन ऊँची कीमतों को अपनी तरफ से जस्टिफाई करने की कोशिश तो खूब की है, लेकिन फिर भी पदों की यह ऊँची कीमतें लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं । लोगों को लगता है कि पदों को ऊँची कीमतों पर बेच कर सुनील निगल वास्तव में अपनी जेब भरने का जुगाड़ बना रहे हैं । दरअसल लोग चूँकि पहले धोखा खा चुके हैं - जब गवर्नर बड़ी बड़ी बातें करके मोटी रकम इकठ्ठा करने के अपने प्रयासों को पहले तो उचित ठहराते हैं, और फिर बाद में करते कुछ नहीं हैं । कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि पैसों के मामले में सुनील निगम की साख और पहचान बहुत ही खराब है । इसलिए भी पदों के बदले में सुनील निगम द्धारा बसूली जाने वाली ऊँची कीमतें आरोपों के घेरे में हैं । सुनील निगम लेकिन कुछ खुशकिस्मत भी हैं क्योंकि इस मामले में उन्हें उन अरुण मित्तल का साथ और समर्थन मिला हुआ है, जिनकी लोगों के बीच अच्छी साख और पहचान है । अरुण मित्तल के संग/साथ के कारण लोग सुनील निगम की इस पैसा बटोरू योजना का खुल कर विरोध तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन वह उनकी इस योजना को हजम भी नहीं कर पा रहे हैं । यही कारण है कि पदों का ऑफर मिलने पर कई लोगों ने सुनील निगम को टका सा जबाव दे दिया है कि भई हम तो पदों पर खूब रह लिए, अब दूसरे लोगों को मौका दो ।
सुनील निगम के नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि करीब साठ प्रतिशत पदों पर नियुक्तियाँ हो चुकी हैं और बाकी पद भी जल्दी ही भर लिए जायेंगे । सुना जा रहा है कि सुनील निगम ने इसके लिए तरीका यह निकाला कि जो लोग वर्षों से लायनिज्म में हैं लेकिन जिन्हें कभी पूछा नहीं गया, उन्हें पद ऑफर किया । ऐसे लोगों को पद ऑफर हुआ, तो वह तो फूल कर कुप्पा हो गए और उन्होंने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया । लायनिज्म में यूँ भी ऐसे लोगों की कमी तो है नहीं जो पैसे के बदले में पद लेने को तैयार बैठे रहते हैं । सुना गया है कि सुनील निगम ऐसे ही लोगों को टोपी पहना देने में कामयाब हुए हैं और इस तरह कई पद बेच चुके हैं । ऐसे लोगों के साथ एक फायदा यह भी है कि बाद में इन्हें जब कुछ होता हुआ नहीं दिखेगा तो यह ज्यादा हाय-हल्ला नहीं मचायेंगे । इस तरह से सुनील निगम ने कुछेक पद तो बेच लिए हैं, लेकिन अभी भी बहुत से पद बेचने का उन्हें जुगाड़ लगाना है । कोई मदद करता हुआ नहीं दिख रहा है, तो फिर उन्होंने खुद ही गुहार लगाना शुरू कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय दिखने वाले लोग जिस तरह से सुनील निगम के ऑफर को ठुकराते और या उससे बचते हुए नजर आ रहे हैं, उससे एक संकट की आहट यह सुनी जा रही है कि यही लोग सुनील निगम के गवर्नर-काल में बबाल काटेंगे । डिस्ट्रिक्ट में कई लोग ऐसे हैं जो करते धरते तो कुछ नहीं हैं लेकिन सक्रिय खूब रहते हैं और गवर्नर की ऐसीतैसी करने के मौके तलाश करते रहते हैं । गवर्नर को ऐसे लोगों को काबू में रखने की तरकीबें लगानी पड़ती हैं । इन तरकीबों में इनसे सहयोगराशि लिए बिना लिए इन्हें पद देना भी शामिल रहता है । सुनील निगम लेकिन जिस तरह पदों की ऐवज में पैसा जुटाने में लगे हैं, उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि वह किसी को भी बिना पैसे लिए पद देंगे । ऐसे में कई लोग खाली रहेंगे । खाली दिमाग वैसे भी शैतान का घर कहा जाता है । खाली लोग यदि शैतानी करेंगे तो सुनील निगम के गवर्नर-काल की फजीहत ही होगी । पदों के लिए ऊँची कीमत तय करके सुनील निगम ने लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के बबालियों को बबाल मचाने के लिए हथियार और मौका खुद ही दे दिया है ।
पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अरुण मित्तल को हालाँकि पदों की ऊँची कीमत बसूलने के मामले में सुनील निगम की मदद करते हुए सुना/देखा गया है । अरुण मित्तल ने पदों की इन ऊँची कीमतों को अपनी तरफ से जस्टिफाई करने की कोशिश तो खूब की है, लेकिन फिर भी पदों की यह ऊँची कीमतें लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं । लोगों को लगता है कि पदों को ऊँची कीमतों पर बेच कर सुनील निगल वास्तव में अपनी जेब भरने का जुगाड़ बना रहे हैं । दरअसल लोग चूँकि पहले धोखा खा चुके हैं - जब गवर्नर बड़ी बड़ी बातें करके मोटी रकम इकठ्ठा करने के अपने प्रयासों को पहले तो उचित ठहराते हैं, और फिर बाद में करते कुछ नहीं हैं । कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि पैसों के मामले में सुनील निगम की साख और पहचान बहुत ही खराब है । इसलिए भी पदों के बदले में सुनील निगम द्धारा बसूली जाने वाली ऊँची कीमतें आरोपों के घेरे में हैं । सुनील निगम लेकिन कुछ खुशकिस्मत भी हैं क्योंकि इस मामले में उन्हें उन अरुण मित्तल का साथ और समर्थन मिला हुआ है, जिनकी लोगों के बीच अच्छी साख और पहचान है । अरुण मित्तल के संग/साथ के कारण लोग सुनील निगम की इस पैसा बटोरू योजना का खुल कर विरोध तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन वह उनकी इस योजना को हजम भी नहीं कर पा रहे हैं । यही कारण है कि पदों का ऑफर मिलने पर कई लोगों ने सुनील निगम को टका सा जबाव दे दिया है कि भई हम तो पदों पर खूब रह लिए, अब दूसरे लोगों को मौका दो ।
सुनील निगम के नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि करीब साठ प्रतिशत पदों पर नियुक्तियाँ हो चुकी हैं और बाकी पद भी जल्दी ही भर लिए जायेंगे । सुना जा रहा है कि सुनील निगम ने इसके लिए तरीका यह निकाला कि जो लोग वर्षों से लायनिज्म में हैं लेकिन जिन्हें कभी पूछा नहीं गया, उन्हें पद ऑफर किया । ऐसे लोगों को पद ऑफर हुआ, तो वह तो फूल कर कुप्पा हो गए और उन्होंने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया । लायनिज्म में यूँ भी ऐसे लोगों की कमी तो है नहीं जो पैसे के बदले में पद लेने को तैयार बैठे रहते हैं । सुना गया है कि सुनील निगम ऐसे ही लोगों को टोपी पहना देने में कामयाब हुए हैं और इस तरह कई पद बेच चुके हैं । ऐसे लोगों के साथ एक फायदा यह भी है कि बाद में इन्हें जब कुछ होता हुआ नहीं दिखेगा तो यह ज्यादा हाय-हल्ला नहीं मचायेंगे । इस तरह से सुनील निगम ने कुछेक पद तो बेच लिए हैं, लेकिन अभी भी बहुत से पद बेचने का उन्हें जुगाड़ लगाना है । कोई मदद करता हुआ नहीं दिख रहा है, तो फिर उन्होंने खुद ही गुहार लगाना शुरू कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय दिखने वाले लोग जिस तरह से सुनील निगम के ऑफर को ठुकराते और या उससे बचते हुए नजर आ रहे हैं, उससे एक संकट की आहट यह सुनी जा रही है कि यही लोग सुनील निगम के गवर्नर-काल में बबाल काटेंगे । डिस्ट्रिक्ट में कई लोग ऐसे हैं जो करते धरते तो कुछ नहीं हैं लेकिन सक्रिय खूब रहते हैं और गवर्नर की ऐसीतैसी करने के मौके तलाश करते रहते हैं । गवर्नर को ऐसे लोगों को काबू में रखने की तरकीबें लगानी पड़ती हैं । इन तरकीबों में इनसे सहयोगराशि लिए बिना लिए इन्हें पद देना भी शामिल रहता है । सुनील निगम लेकिन जिस तरह पदों की ऐवज में पैसा जुटाने में लगे हैं, उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि वह किसी को भी बिना पैसे लिए पद देंगे । ऐसे में कई लोग खाली रहेंगे । खाली दिमाग वैसे भी शैतान का घर कहा जाता है । खाली लोग यदि शैतानी करेंगे तो सुनील निगम के गवर्नर-काल की फजीहत ही होगी । पदों के लिए ऊँची कीमत तय करके सुनील निगम ने लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के बबालियों को बबाल मचाने के लिए हथियार और मौका खुद ही दे दिया है ।