गाजियाबाद । जितेंद्र गोयल की
उम्मीदवारी की घोषणा ने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के
सेंट्रल रीजन से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की
तैयारी कर रहे विनय मित्तल के लिए कड़ी चुनौती पैदा कर दी है । विनय
मित्तल फिलहाल सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, जहाँ उनका इस
वर्ष पहला टर्म पूरा हो रहा है । अगले चुनाव में उनके सेंट्रल काउंसिल के
लिए उम्मीदवार बनने की चर्चा तो लगातार थी, लेकिन पिछले दिनों इस चर्चा पर
कुछ समय के लिए ब्रेक तब लगा जब सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए लगातार तीन की बजाये चार टर्म तक सदस्य बने रहने का कानून बनने/बनाने की कोशिशों की बात पता चली ।
उक्त कोशिशें यदि सफल होतीं, तो अनुज गोयल एक बार फिर सेंट्रल काउंसिल के
लिए उम्मीदवार बनते - और इसी आशंका में विनय मित्तल ने कहना/बताना शुरू कर
दिया था कि तब वह सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे ।
अभी हाल तक विनय मित्तल लोगों से यही कहते रहे थे कि यदि अनुज गोयल के लिए
उम्मीदवार बनने की स्थितियाँ बनीं, तो फिर वह सेंट्रल काउंसिल की बजाये
रीजनल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । किंतु जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि लगातार तीन टर्म वाले कानून में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है, और वर्ष 2015 के चुनाव में
अनुज गोयल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे; वैसे ही विनय
मित्तल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात करना पुनः शुरू कर दिया ।
सेंट्रल
काउंसिल की उम्मीदवारी के संदर्भ में विनय मित्तल की समझ यही रही कि उनके
लिए कोई भी मौका अनुज गोयल की अनुपस्थिति में ही बन सकता है । अगले चुनाव
में अनुज गोयल के उम्मीदवार न बन सकने की बात चूँकि पहले से ही लगभग स्पष्ट थी, इसलिए विनय मित्तल लगातार अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात चला रहे थे । इस बात में पिछले दिनों हालाँकि छोटा-सा ब्रेक आया, लेकिन फिर जल्दी ही सेंट्रल काउंसिल के लिए विनय मित्तल की उम्मीदवारी की बात दोबारा से पटरी पर आ गई । किंतु
जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी की घोषणा ने विनय मित्तल के लिए समस्या खड़ी
कर दी है । जितेंद्र गोयल, अनुज गोयल के भाई हैं और जितेंद्र गोयल की
उम्मीदवारी को अनुज गोयल द्धारा अपनी सीट को बचाये/बनाये रखने की एक कसरत
के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल दरअसल विनय मित्तल की जीत की
संभावना को रोकना चाहते हैं । अनुज गोयल को डर यह है कि उनकी खाली हुई सीट
पर यदि विनय मित्तल काबिज हो गए तो फिर इंस्टीट्यूट की उनकी राजनीति तो
पूरी तरह चौपट ही हो जाएगी । अनुज गोयल को विश्वास है कि जितेंद्र गोयल
की उम्मीदवारी के जरिये वह विनय मित्तल को सेंट्रल काउंसिल में घुसने से
रोक लेंगे; और इस तरह से अगली से अगली बार - यानि वर्ष 2018 के लिए अपने
लिए मौका बनाये रख सकेंगे ।
विनय मित्तल के शुभचिंतक
तथा दूसरे लोग भी यह दावा तो कर रहे हैं कि जितेंद्र गोयल को चुनाव जितवाना
अनुज गोयल के लिए संभव नहीं होगा; लेकिन वह अनुज गोयल के नजदीकियों की इस
बात पर गौर नहीं कर रहे हैं कि जितेंद्र गोयल को चुनाव जितवाना अनुज गोयल का उद्देश्य है भी नहीं । चुनावी राजनीति के लिए जिस तरह के लटकों-झटकों की जरूरत होती है, उसमें जितेंद्र गोयल का हाथ खासा तंग रहता है और इसीलिए वह चुनावी राजनीति से हमेशा दूर ही रहे हैं । नजदीकियों के अनुसार,
जितेंद्र गोयल भी जानते हैं और अनुज गोयल भी समझते हैं कि जितेंद्र गोयल के
बस की चुनाव जीतना नहीं है; जितेंद्र गोयल जीतने के लिए उम्मीदवार बने भी
नहीं है - वह तो बस अनुज गोयल के वोटों की चौकीदारी करने के लिए उम्मीदवार
बने हैं । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने अपने
वोटों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की है, ताकि विनय मित्तल उन्हें न ले
लें । अनुज गोयल की अनुपस्थिति में ही विनय मित्तल ने अपनी उम्मीदवारी लाने
के बारे में सोचा था, तो इसके पीछे भी यही कारण था कि खुद विनय मित्तल को
भी लगता है कि वह अनुज गोयल के वोटों के सहारे ही सेंट्रल काउंसिल में
पहुँच सकते हैं । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने विनय मित्तल के इसी सहारे को छीनने का जुगाड़ बैठाया है ।
जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने मुकेश कुशवाह को भी लपेटे में लेने का दाँव चला है ।
उल्लेखनीय है कि मुकेश कुशवाह पिछली बार बहुत ही मामूली अंतर से जीते थे ।
मामूली अंतर से मिली जीत में भी गाजियाबाद तथा आसपास के क्षेत्रों में अनुज विरोधी वोटों का बड़ा सहयोग था । पिछली बार अनुज विरोधी वोट मुकेश कुशवाह को मिले थे; जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के चलते अबकी बार अनुज विरोधी वोट मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल के बीच बंटेंगे तो नुकसान मुकेश कुशवाह को ही होगा । सेंट्रल
काउंसिल सदस्य के रूप में मुकेश कुशवाह ने ऐसा कुछ किया भी नहीं है, जिससे
उनके समर्थन-आधार को बढ़ा हुआ माना/देखा जाये । मुकेश कुशवाह को रवींद्र
होलानी के रूप में देखा जा रहा है, जिनकी उम्मीदवारी सेंट्रल काउंसिल की
सदस्यता के बावजूद पिछली बार वीरगति को प्राप्त हुई थी । जितेंद्र गोयल
की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने जो जाल बिछाया है, उसमें हो सकता है
कि गाजियाबाद के तीनों ही उम्मीदवार ढेर हो जाएँ - जैसा कि पिछली बार
कानपुर में हुआ था; तो यह स्थिति अनुज गोयल को सूट करती है । वर्ष 2018
के चुनाव को ध्यान में रखते हुए अनुज गोयल ने 2015 के चुनाव की जो फील्डिंग
सजाई है, उसने विनय मित्तल के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती खड़ी की है क्योंकि
विनय मित्तल इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को मुकेश कुशवाह के मुकाबले
ज्यादा गंभीरता से लेते दिखे हैं और लंबी पारी खेलने की तैयारी किये बैठे
हैं ।