नई दिल्ली । अशोक गर्ग की
अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत की
जाने वाली उम्मीदवारी दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की चर्चा
और इस चर्चा में अरनेजा गिरोह की भूमिका के कारण हाँ / ना के पचड़े में फँसी हुई लग रही है । यूँ
तो अशोक गर्ग किसी से भी मिलते हैं तो अपनी उम्मीदवारी की बात जरूर ही
करते हैं, लेकिन इतने सब के बावजूद वह अपने नजदीकियों को भी अपनी
उम्मीदवारी के प्रति आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं । उनके नजदीकियों और
उनके क्लब के लोगों का ही मानना और कहना है कि अशोक गर्ग अपनी उम्मीदवारी
के प्रति अभी तक बहुत जोश व दम नहीं दिखा पा रहे हैं । वह इसका कारण भी
बताते हैं । उनका कहना है कि अशोक गर्ग को दरअसल अभी तक अपने नेताओं से
पक्के तौर पर हरी झंडी नहीं मिली है । उल्लेखनीय है कि अशोक गर्ग को अरनेजा
गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अरनेजा गिरोह
के नेता लेकिन अभी यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि अशोक गर्ग एक उम्मीदवार
की 'जिम्मेदारियों' को अफोर्ड कर भी पायेंगे या नहीं ? इसीलिए वह अभी अशोक
गर्ग की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से बच रहे हैं और उन्हें 'काम करने'
की सलाह दे रहे हैं । उनके इस रवैये से अशोक गर्ग को आशंका हो रही है कि
जिन नेताओं के भरोसे वह उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं,
वह नेता कहीं उन्हें धोखा तो नहीं देंगे ? इसी आशंका के चलते अशोक गर्ग अपनी उम्मीदवारी के प्रति बहुत जोश व दम नहीं दिखा पा रहे हैं ।
इस तरह की बातों/चर्चाओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के लिए माहौल बनाना तो शुरू कर दिया है । अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति का परिदृश्य अभी भले ही उलझा हुआ सा लग रहा हो, लेकिन इस तरह की बातों/चर्चाओं के चलते उसके जल्दी ही एक शक्ल ले लेने की संभावना भी बनती दिख रही है ।
अशोक
गर्ग उन सूचनाओं के चलते भी सशंकित हैं जिनमें बताया जा रहा है कि दीपक
गुप्ता और प्रसून चौधरी भी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए अरनेजा गिरोह के
नेताओं का समर्थन जुटाने/पाने की जुगाड़ में हैं । उल्लेखनीय है कि इन दोनों
की तरफ से भी अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के दावे पेश किए गए हैं
और इन्हें जहाँ जैसा मौका मिलता है वहाँ यह अपनी अपनी उम्मीदवारी के
प्रस्तुत होने के प्रति लोगों को विश्वास दिलाने के प्रयत्न करते देखे/सुने
गए हैं । हालाँकि इनके कॉमन फ्रेंड्स इनमें से किसी एक के उम्मीदवार
बनने की वकालत करते हुए भी सुने गए हैं और चूँकि दोनों ही इस वकालत के
प्रति 'ओपन' होने की बात करते हैं - इसलिए दोनों की उम्मीदवारी के प्रति
संशय भी बना हुआ है । इस संशय के बावजूद लोगों के बीच एक स्ट्रांग
फीलिंग यह भी है कि अरनेजा गिरोह के नेता इन्हीं दोनों में से किसी एक का
समर्थन कर सकते हैं । लोगों के बीच की यह स्ट्रांग फीलिंग ही अशोक गर्ग को
उम्मीदवारी के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ने से रोक रही है । अरनेजा गिरोह
के नेताओं का समर्थन अशोक गर्ग को यदि नहीं मिल सकेगा, तब फिर अशोक गर्ग
के लिए उम्मीदवार हो सकना मुश्किल ही क्या, असंभव ही होगा । अरनेजा गिरोह
के नेताओं के समर्थन के बिना उम्मीदवार हो सकने की बात कम-अस-कम अशोक गर्ग नहीं सोच सकेंगे ।
अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार का मुकाबला किस से होगा, यह
भी अभी साफ नहीं हो रहा है । चुनावी संदर्भ में अरनेजा गिरोह के लिए इस
वर्ष का मुकाबला बराबरी का रहा । वह शरत जैन को तो कामयाबी दिलवा सका,
लेकिन प्रसून चौधरी के मामले में उसे गच्चा खाना पड़ा । अरनेजा गिरोह के
विरोध के बावजूद सतीश सिंघल जीतने में कामयाब हुए, उससे यह बात तो साफ हो
गई कि अरनेजा गिरोह के विरोध के बावजूद चुनाव जीता जा सकता है । सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट के दूसरे खेमे के नेता बनेंगे या नहीं, यह तो अभी नहीं पता; लेकिन
इतना स्पष्ट है कि सतीश सिंघल अरनेजा गिरोह के नेताओं के पिटठू नहीं बनेंगे
। यह स्पष्टता चाहे अनचाहे सतीश सिंघल के नेतृत्व में विरोधी खेमे के गठन
की संभावनाओं का संकेत तो देती है - देखने की बात सिर्फ यह रह जाती है कि
स्थितियाँ सतीश सिंघल को जो जिम्मेदारियाँ लेने की तरफ धकेल रही हैं, सतीश सिंघल उस जिम्मेदारी को उठा पाते हैं या नहीं ? दरअसल इसी कारण राजीव गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर चुप लगा गए लगते हैं । राजीव गुप्ता ने घोषणा की थी कि यदि सतीश सिंघल
चुनाव जीते तो वह अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे ।
किंतु अब वह यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि सतीश सिंघल के भरोसे अपनी
उम्मीदवारी प्रस्तुत करना ठीक रहेगा क्या ?
सतीश सिंघल
की जीत ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जो मौका दिखाया है, उसका फायदा उठाने
के लिए प्रवीन निगम की तरफ से सुगबुगाहट सुनी गई है । उनके नजदीकियों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की शुरुआत के लिए वह किसी शुभ मुहुर्त का इंतजार कर रहे हैं ।
प्रवीन निगम के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि दूसरे उम्मीदवार यदि
अपने अपने गॉडफादर्स चुनने में ही व्यस्त रहेंगे और उनसे हरी झंडी मिले
बिना अपनी अपनी सक्रियता से बचते रहेंगे, तो उससे पैदा हुई असमंजसता का
फायदा उठाने का मौका उनके पास होगा । यह बात है तो ठीक, लेकिन इस फायदे
को उठाने के लिए प्रवीन निगम को अपनी सक्रियता तो दिखानी पड़ेगी न - यह
फायदा अपने आप तो नहीं मिलेगा न । इस तरह की बातों/चर्चाओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के लिए माहौल बनाना तो शुरू कर दिया है । अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति का परिदृश्य अभी भले ही उलझा हुआ सा लग रहा हो, लेकिन इस तरह की बातों/चर्चाओं के चलते उसके जल्दी ही एक शक्ल ले लेने की संभावना भी बनती दिख रही है ।