नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों द्वारा पदभार संभालते ही तरह तरह से परेशान करने तथा कोरोना प्रकोप से बने हालात का बहाना बना कर नौकरी से निकालने के आरोपों पर पुलिस जाँच शुरू होने के कारण चेयरमैन शशांक अग्रवाल और सेक्रेटरी अजय सिंघल के लिए मुसीबतें बढ़ती हुई लग रही हैं । इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में पिछले एक सप्ताह में दो/तीन बार पुलिस के आने से हड़कंप का माहौल है, और शशांक अग्रवाल व अजय सिंघल को तरह तरह की बहानेबाजी करके बचना/छिपना पड़ रहा है । हालाँकि जिन लोगों ने पुलिस रिपोर्ट को देखा/पढ़ा है, उनका कहना है कि रिपोर्ट में इनका नाम नहीं लिखा है, और शिकायत में भी नौकरी समाप्त करने की बात पर ज्यादा जोर है - इसलिए इन्हें डरने की जरूरत नहीं है । लेकिन इनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को आशंका है कि मामले में जाँच शुरू होने पर जो जो बातें सामने आयेंगी, वह शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हो सकती हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कार्यालय के 'माहौल' से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि अजय सिंघल की जब तब स्टॉफ के लोगों से कहासुनी होती रहती है, और स्टॉफ के लोग अजय सिंघल के व्यवहार से खासे परेशान रहते हैं । मजे की बात यह है कि अजय सिंघल के सेक्रेटरी बनने और लॉकडाउन शुरू होने के बीच ज्यादा दिन नहीं थे, लेकिन कम दिनों में ही अजय सिंघल स्टॉफ के बीच खासे बदनाम हो गए । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि शशांक अग्रवाल की गलती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने अजय सिंघल की हरकतों पर कभी लगाम लगाने की कोशिश नहीं की, जिसका नतीजा है कि अजय सिंघल की कारगुजारियों के चलते पैदा होने वाली बदनामी का शिकार शशांक अग्रवाल को भी होना पड़ा है ।
लॉकडाउन के दौरान ऑफिस न आने के आरोप में चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाल देने के मामले ने तूल दरअसल इसीलिए पकड़ा है, क्योंकि महिला स्टॉफ के साथ बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के आरोप पहले से ही चर्चा में रहे हैं । काउंसिल के पदाधिकारियों के आपत्तिजनक व्यवहार को लेकर स्टॉफ द्वारा चूँकि पहले से ही आरोप लगाए जाते रहे हैं, इसलिए लॉकडाउन के दौरान चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाले जाने के मामले को व्यापक संदर्भ में देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि संभवतः पुलिस भी इसीलिए मामले की जाँच-पड़ताल को लेकर अचानक से सक्रिय हुई है । उल्लेखनीय है कि पुलिस जिस शिकायत को लेकर सक्रिय हुई है, और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों से पूछताछ करने इंस्टीट्यूट के मुख्यालय तक आ पहुँची है, वह करीब 35 दिन पुरानी है । कई दिनों तक पुलिस मामले में दिलचस्पी लेते हुए नहीं दिख रही थी; माना/समझा जा रहा था कि नौकरी से निकाले जाने की शिकायत को पुलिस अधिकारी अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर की बात मान रहे थे - और इसीलिए उन्होंने उक्त शिकायत को धूल खाने के लिए छोड़ दिया था । बाद में लेकिन पुलिस अधिकारियों का ध्यान उक्त शिकायत के व्यापक संदर्भों पर गया, और वह कार्रवाई में जुटे । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि उक्त शिकायत चूँकि अन्य कई जगह की गई है, और खासकर महिला कल्याण विभाग में भी - इसलिए हो सकता है कि वहाँ के पदाधिकारियों का दबाव बना/पड़ा हो, और पुलिस को मामले की जाँच व कार्रवाई करने के लिए सक्रिय होना पड़ा ।
शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि पुलिस चाहें जिस भी कारण से जाँच-पड़ताल करने में जुटी हो, मामला चूँकि नौकरी से निकाले जाने का है - इसलिए वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी । बहुत हद तक इस तर्क में दम है - लेकिन शिकायत चूँकि इस आरोप से शुरू होती है कि पदाधिकारियों ने पदभार संभालते ही उन्हें तरह तरह से परेशान करना शुरू कर दिया था; इसलिए मामला सिर्फ नौकरी से निकाले जाने का ही नहीं रह जाता है । इसके अलावा, यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि लॉकडाउन के दौरान अजय सिंघल स्टॉफ से कार्यालय पहुँच कर ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए कहते हैं, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बंद होने कारण कोई भी स्टॉफ ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पाता है - लेकिन ड्यूटी ज्वाइन न करने का आरोप लगा कर नौकरी से चार महिला स्टॉफ को निकाला जाता है । सात/आठ वर्षों से काम कर रहे इन लोगों पर आरोप लगाया जाता है कि इन्हें काम करना नहीं आता है । मजेदार संयोग यह है कि शशांक अग्रवाल के चेयरमैन-वर्ष में काम न आने का आरोप लगा कर जिन स्टॉफ को नौकरी से निकाला जा रहा है, उनकी नियुक्ति शशांक अग्रवाल के पिता दुर्गादास अग्रवाल के चेयरमैन-वर्ष में हुई थी - और बड़े कठोर तरीके से लिए गए इंटरव्यू के बाद उन्हें नौकरी के लिए चुना गया था । दरअसल, जिस तरह से चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाला गया है, उससे पूरा मामला और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की भूमिका संदेहास्पद हो जाती है - और जो व्यापक जाँच-पड़ताल की माँग करती है । रीजनल काउंसिल के स्टॉफ को डर है कि यह मामला यदि यूँ ही रफा-दफा हो गया, और नौकरी से निकाले गए स्टॉफ को यदि न्याय नहीं मिला - तो काउंसिल पदाधिकारियों के हौंसले और बढ़ जायेंगे तथा उनकी बदतमीजियों का स्टॉफ को और ज्यादा शिकार बनना पड़ेगा ।