Saturday, July 18, 2020

रोटरी जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में रंजन ढींगरा तथा राजु सुब्रमणियन के बीच होते दिख रहे मुकाबले में, उत्तर/पश्चिम तथा एक ही डिस्ट्रिक्ट से बार-बार डायरेक्टर बनने के मुद्दे को हवा मिलने से अशोक गुप्ता व दीपक कपूर मुकाबले में शामिल होते नजर आ रहे हैं 

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों की सक्रियता बढ़ने से जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज होती हुई नजर आ रही हैं । संभावित उम्मीदवारों की तरफ से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के संभावित उम्मीदवारों के साथ-साथ दूसरे नेताओं और पदाधिकारियों से भी संपर्क साधना शुरू करने की बातें सुनी जाने लगी हैं, और इससे जोन में तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीतिक समीकरण तेजी से बनने/बिगड़ने लगे हैं । इस बार, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 के 12 डिस्ट्रिक्ट्स में से करीब 8 या 9 उम्मीदवार तैयारी करते सुने जा रहे हैं । उम्मीदवारों की इस संभावित भीड़ ने जोन तथा डिस्ट्रिक्ट्स के राजनीतिक समीकरणों को बुरी तरफ से गड़बड़ा दिया है, और नए समीकरण व गठजोड़ बनने के रास्ते बनते नजर आ रहे हैं । उम्मीदवारों की संख्या भले ही 8 या 9 हो रही हो, लेकिन मुकाबले में राजु सुब्रमणियन, रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है; गुलाम वाहनवती और दीपक कपूर किस्मत के भरोसे मैदान में हैं - बाकी संभावित उम्मीदवारों को कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नजर नहीं आ रहा है, लेकिन वह किसी का 'खेल' बनाने या किसी का बिगाड़ने का काम जरूर कर सकते हैं ।
खेमेबाजी के लिहाज से रंजन ढींगरा तथा अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; जबकि राजु सुब्रमणियन, गुलाम वाहनवती व दीपक कपूर को विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में समझा जा रहा । विरोधी खेमे का कोई एक नेता नहीं है - यह बात उनकी स्थिति को नुकसान भी पहुँचाती है और फायदा भी देती है । फिलहाल शेखर मेहता खेमे में रंजन ढींगरा का, तो विरोधी खेमे में राजु सुब्रमणियन का पलड़ा भारी नजर आ रहा है - और जोन के छोटे/बड़े कई नेताओं को इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला होता 'दिख' रहा है । हालाँकि अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में रंजन ढींगरा को दीपक कपूर से, तथा राजु सुब्रमणियन को गुलाम वाहनवती से टक्कर मिलती दिख रही है । रंजन ढींगरा के डिस्ट्रिक्ट से विनोद बंसल भी उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है । पिछले कुछेक महीनों में उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट में लगातार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है, और वह अलग-थलग पड़ते गए हैं । इसी के चलते, डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण व प्रमुख प्रोजेक्ट रोटरी ब्लड बैंक के हिसाब-किताब में गड़बड़झाले के आरोपों के साथ वह प्रेसीडेंट पद से बड़े फजीहतभरे तरीके से हटाये गए । अतिमहत्त्वाकांक्षा और मौकापरस्ती वाले रवैये के चलते विनोद बंसल को हाल के दिनों में शेखर मेहता की नजदीकियत से भी हाथ धोना पड़ा है, जिसके तुरंत बाद से वह विरोधी खेमे में जगह पाने/बनाने के प्रयासों में जुट गए हैं - लेकिन वहाँ भी उनकी दाल गलती हुई नजर नहीं आ रही है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में इस बार खेमेबाजी वाला ऐंगल तो है ही, उत्तर/पश्चिम का और एक ही डिस्ट्रिक्ट से बार-बार डायरेक्टर बनने के मामले को भी हवा मिलती दिख रही है ।
उल्लेखनीय है कि राजु सुब्रमणियन तथा गुलाम वाहनवती उसी डिस्ट्रिक्ट के सदस्य हैं, जिस डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या सदस्य हैं । इस बिना पर जोन के नेताओं और पदाधिकारियों के बीच सवाल है कि हर बार एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोग डायरेक्टर बनेंगे क्या ? पश्चिम और उत्तर का भी मामला है । मौजूदा डायरेक्टर भरत पांड्या पश्चिम से हैं, इसलिए उत्तर के रोटेरियंस को लगता है कि इस बार उत्तर से डायरेक्टर होना चाहिए । इस तरह की बातें राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती की स्थिति को कमजोर करती हैं, और चुनावी मुकाबले को रंजन ढींगरा, अशोक गुप्ता तथा दीपक कपूर के बीच सीमित कर देती हैं । दीपक कपूर को उम्मीद है कि राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती के मुकाबले से बाहर होने की स्थिति में विरोधी खेमे के नेताओं का समर्थन उन्हें मिलेगा, और उनका काम बन जायेगा । रंजन ढींगरा तथा अशोक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को लेकिन लगता है कि राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती का मामला यदि बिगड़ा, तो उनकी कोशिश होगी कि इसका फायदा शेखर मेहता खेमे के उम्मीदवारों को मिलें - ताकि अगली बार वह उनका समर्थन पा सकें; यह फायदा लेकिन इस बात पर निर्भर करेगा कि नोमीनेटिंग कमेटी में रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता के समर्थक किस तरह अपने अपने उम्मीदवार के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं ? एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि कई उम्मीदवारों के होने से नोमीनेटिंग कमेटी में किसी एक उम्मीदवार को जरूरी 60 प्रतिशत वोट न मिल पाएँ और नोमीनेटिंग कमेटी अधिकृत उम्मीदवार न चुन सके - और तब खुला चुनाव होने की नौबत आ जाए । उस स्थिति में अशोक गुप्ता के फायदे में रहने का अनुमान लगाया जा रहा है, क्योंकि जिन चार-पाँच उम्मीदवारों को मुकाबले में देखा/पहचाना जा रहा है, उनमें अकेले अशोक गुप्ता ही अपने डिस्ट्रिक्ट से एकमात्र उम्मीदवार हैं, और उनके डिस्ट्रिक्ट के वोट भी अन्य डिस्ट्रिक्ट्स की तुलना में ज्यादा हैं ।
बहरहाल, अभी तो खेल शुरू हुआ है - और उम्मीद की जा रही है कि इस खेल में अभी नए समीकरण बनेंगे/बिगड़ेंगे, जो डायरेक्टर पद की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे !