गाजियाबाद । रोटरी और समाज के लिए बेहतर काम करने वाले रोटेरियंस की पहचान करने तथा उन्हें पुरुस्कृत करने के - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने अंतिम - कार्यक्रम में दीपक गुप्ता ने अवॉर्ड्स की जो बंदरबाँट की है, उसने डिस्ट्रिक्ट में काम करने वाले रोटेरियंस को न सिर्फ निराश व हतोत्साहित किया है, बल्कि पूरे कार्यक्रम का मजाक ही बना दिया । 'आउटस्टैंडिंग रोटेरियन' का अवॉर्ड पाने वाले एक रोटेरियन की शिकायत है कि उन्होंने इस वर्ष काफी काम किया, जिसमें उनके करीब दस लाख रुपये खर्च हुए - इसलिए उन्हें जब उक्त अवॉर्ड मिला तो उन्हें बड़ा गर्व हुआ; लेकिन उनका गर्व यह देख/जान कर हवा हो गया कि यही अवॉर्ड उनके ही क्लब के एक ऐसे सदस्य को भी मिला है, जिसने इकन्नी भी खर्च नहीं की और काम के नाम पर सिर्फ दीपक गुप्ता की चमचागिरी ही की । उसके बाद से, उनके क्लब के साथ-साथ दूसरे क्लब के लोग भी उनका मजाक उड़ा रहे हैं कि उनसे ज्यादा होशियार तो 'वह' निकला, जिसने रोटरी में 'न हींग लगाई, न फिटकरी' और अवॉर्ड ले बैठा । यह देख/सुन कर उन्हें भी पछतावा हो रहा है कि उन्होंने दीपक गुप्ता के साथ रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में नाहक ही काम किया, और मोटी रकम खर्च की । सचिन वत्स को 'बेस्ट रोटेरियन' के अवॉर्ड से नवाजे जाने को लेकर लोगों ने 'अँधा बाँटे रेवड़ी, अपनों अपनों को दे' कहावत को याद किया । सचिन वत्स को दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट इवेंट चेयरमैन बनाया था; एक इवेंट के आयोजन में सचिन वत्स द्वारा किए गए एक फर्जीवाड़े के कारण दीपक गुप्ता को अपनी पत्नी के साथ एक कानूनी झमेले में फँसना पड़ा - इसके बाद भी, सचिन वत्स का 'बेस्ट रोटेरियन' घोषित होना 'अंधा कानून' ही कहा/माना जायेगा । दीपक गुप्ता की हरकतों से तंग आकर मनीष गोयल ने डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद से इस्तीफा दिया था, और तब सचिन वत्स ने उक्त पद की भी कुछ जिम्मेदारी संभाली । कुल मिला कर सचिन वत्स ने जो कुछ भी किया, उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की मदद के रूप में ही देखा/पहचाना जा सकता है - उसे रोटरी के और या समाज के लिए किए गए काम के रूप में नहीं देखा जा सकता है । रोटरी और समाज के लिए तो एक रोटेरियन के रूप में सचिन वत्स ने इकन्नी का भी काम नहीं किया । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि इसलिए सचिन वत्स को 'बेस्ट रोटेरियन' बताना वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के उन लोगों का अपमान है, जिन्होंने रोटरी के लिए अपनी जेबें ढीली कीं ।
इसी तरह के उदाहरणों के हवाले से, अवॉर्ड देने के मामले में दीपक गुप्ता को 'नटवरलाल' का नाम दिया गया । मजे की बात है कि अपना 'नटवरलाली' रूप दीपक गुप्ता ने सिर्फ अवॉर्ड देने के मामले में ही नहीं दिखाया है, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के काम में भी उन्होंने अपनी इसी रूप का जमकर इस्तेमाल किया । पिछले दस/पंद्रह दिनों से वह लगातार झूठ पर झूठ बोल कर रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे देने को लेकर लोगों पर दबाव बनाते रहे हैं - किसी से कहा कि रोटरी फाउंडेशन में साढ़े नौ लाख डॉलर हो गए हैं, आप पचास हजार डॉलर दे दो, पूरे दस लाख डॉलर हो जायेंगे । उस समय जबकि वास्तव में थे करीब पाँच/छह लाख डॉलर ही । 28 जून तक का जो आँकड़ा अभी उपलब्ध है, उसके अनुसार रोटरी फाउंडेशन के लिए साढ़े सात लाख डॉलर से कुछ अधिक रकम ही जमा हुई है । दीपक गुप्ता के 'नटवरलाली' रूप का आलम यह रहा कि वह खुद तो रकम पूरी करके एकेएस सदस्य नहीं बने, लेकिन अपना रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली सिटी की प्रेसीडेंट अमिता मोहिंद्रु पर तरह तरह से दबाव डाल और डलवा कर उनकी एकेएस सदस्यता की रकम पूरी जमा करवा ली । दीपक गुप्ता ने अनीता मोहिंद्रु को संकेत दिया था कि वह उन्हें वह उन्हें 'बेस्ट प्रेसीडेंट' का अवॉर्ड देंगे - दीपक गुप्ता ने उन्हें उक्त अवॉर्ड दिया भी, लेकिन अनीता मोहिंद्रु के साथ उन्होंने 'धोखा' यह किया कि उनके साथ एक अन्य प्रेसीडेंट को भी उक्त अवॉर्ड में साझेदार बना दिया ।
दीपक गुप्ता ने सिर्फ अनीता मोहिंद्रु के साथ ही 'धोखा' नहीं किया, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के साथ भी वह मजाक कर रहे हैं । रोटरी फाउंडेशन के लिए वह जो मोटी रकम जुटाने के प्रयासों में रहे, रोटरी को तो वास्तव में उसका करीब चौथा हिस्सा ही मिलेगा - उस रकम का तीन चौथाई हिस्सा तो दरअसल गिफ्ट टर्म के रूप में है, जो रोटरी को 'देने' के लिए नहीं, बल्कि रोटरी से 'लेने' के लिए दिया गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की क्या उपलब्धियाँ हैं, यह मेंबरशिप में हुई तथाकथित बढ़ोतरी से जाना/समझा जा सकता है । पिछले वर्ष, एक जुलाई को जब दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाला था, तब डिस्ट्रिक्ट में 3769 सदस्य थे, जो उनके पदभार छोड़ते समय 3842 हैं - यानि 73 सदस्य बढ़े हैं । लेकिन इस वृद्धि को रेखांकित करते समय यह ध्यान करना मामले को दिलचस्प बना देता है कि दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में 12 नए क्लब बने हैं, जिनकी कुल सदस्यता के साथ 375 नए सदस्य जुड़े हैं । इस तरह से देखें, तो वास्तव में दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में कई सदस्य रोटरी और डिस्ट्रिक्ट छोड़ गए हैं । दीपक गुप्ता लगातार रोटरी के प्रति अपना गहरा लगाव दिखाते/जताते रहे हैं, और समय समय पर जाहिर करते रहे हैं कि वह रोटरी के बड़े जानकार हैं - जिस कारण से लोगों को उम्मीद थी कि उनका गवर्नर-वर्ष खास रहेगा; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने लोगों को बुरी तरह निराश किया है । उनका गवर्नर-वर्ष अपनी ही टीम के बड़े पदाधिकारियों तथा कलीग गवर्नर्स के साथ-साथ बाहर के प्रोफेशनल्स के साथ 'बेईमानी' और 'धोखाधड़ी' करने के लिए बदनाम हुआ, और रोटरी के आदर्शों व नियमों के साथ खिलवाड़ करने वाला साबित हुआ है । यही सब देख/जान कई लोग उन्हें 'रोटरी का नटवरलाल' भी कहने लगे हैं ।
इसी तरह के उदाहरणों के हवाले से, अवॉर्ड देने के मामले में दीपक गुप्ता को 'नटवरलाल' का नाम दिया गया । मजे की बात है कि अपना 'नटवरलाली' रूप दीपक गुप्ता ने सिर्फ अवॉर्ड देने के मामले में ही नहीं दिखाया है, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के काम में भी उन्होंने अपनी इसी रूप का जमकर इस्तेमाल किया । पिछले दस/पंद्रह दिनों से वह लगातार झूठ पर झूठ बोल कर रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे देने को लेकर लोगों पर दबाव बनाते रहे हैं - किसी से कहा कि रोटरी फाउंडेशन में साढ़े नौ लाख डॉलर हो गए हैं, आप पचास हजार डॉलर दे दो, पूरे दस लाख डॉलर हो जायेंगे । उस समय जबकि वास्तव में थे करीब पाँच/छह लाख डॉलर ही । 28 जून तक का जो आँकड़ा अभी उपलब्ध है, उसके अनुसार रोटरी फाउंडेशन के लिए साढ़े सात लाख डॉलर से कुछ अधिक रकम ही जमा हुई है । दीपक गुप्ता के 'नटवरलाली' रूप का आलम यह रहा कि वह खुद तो रकम पूरी करके एकेएस सदस्य नहीं बने, लेकिन अपना रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली सिटी की प्रेसीडेंट अमिता मोहिंद्रु पर तरह तरह से दबाव डाल और डलवा कर उनकी एकेएस सदस्यता की रकम पूरी जमा करवा ली । दीपक गुप्ता ने अनीता मोहिंद्रु को संकेत दिया था कि वह उन्हें वह उन्हें 'बेस्ट प्रेसीडेंट' का अवॉर्ड देंगे - दीपक गुप्ता ने उन्हें उक्त अवॉर्ड दिया भी, लेकिन अनीता मोहिंद्रु के साथ उन्होंने 'धोखा' यह किया कि उनके साथ एक अन्य प्रेसीडेंट को भी उक्त अवॉर्ड में साझेदार बना दिया ।
दीपक गुप्ता ने सिर्फ अनीता मोहिंद्रु के साथ ही 'धोखा' नहीं किया, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के साथ भी वह मजाक कर रहे हैं । रोटरी फाउंडेशन के लिए वह जो मोटी रकम जुटाने के प्रयासों में रहे, रोटरी को तो वास्तव में उसका करीब चौथा हिस्सा ही मिलेगा - उस रकम का तीन चौथाई हिस्सा तो दरअसल गिफ्ट टर्म के रूप में है, जो रोटरी को 'देने' के लिए नहीं, बल्कि रोटरी से 'लेने' के लिए दिया गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की क्या उपलब्धियाँ हैं, यह मेंबरशिप में हुई तथाकथित बढ़ोतरी से जाना/समझा जा सकता है । पिछले वर्ष, एक जुलाई को जब दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाला था, तब डिस्ट्रिक्ट में 3769 सदस्य थे, जो उनके पदभार छोड़ते समय 3842 हैं - यानि 73 सदस्य बढ़े हैं । लेकिन इस वृद्धि को रेखांकित करते समय यह ध्यान करना मामले को दिलचस्प बना देता है कि दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में 12 नए क्लब बने हैं, जिनकी कुल सदस्यता के साथ 375 नए सदस्य जुड़े हैं । इस तरह से देखें, तो वास्तव में दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में कई सदस्य रोटरी और डिस्ट्रिक्ट छोड़ गए हैं । दीपक गुप्ता लगातार रोटरी के प्रति अपना गहरा लगाव दिखाते/जताते रहे हैं, और समय समय पर जाहिर करते रहे हैं कि वह रोटरी के बड़े जानकार हैं - जिस कारण से लोगों को उम्मीद थी कि उनका गवर्नर-वर्ष खास रहेगा; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने लोगों को बुरी तरह निराश किया है । उनका गवर्नर-वर्ष अपनी ही टीम के बड़े पदाधिकारियों तथा कलीग गवर्नर्स के साथ-साथ बाहर के प्रोफेशनल्स के साथ 'बेईमानी' और 'धोखाधड़ी' करने के लिए बदनाम हुआ, और रोटरी के आदर्शों व नियमों के साथ खिलवाड़ करने वाला साबित हुआ है । यही सब देख/जान कई लोग उन्हें 'रोटरी का नटवरलाल' भी कहने लगे हैं ।