Saturday, July 25, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स द्वारा कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस देने के बाद भी, 2 करोड़ 43 लाख रुपये से अधिक का इंटरेस्ट व लेट फीस चुकाने के मामले में प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य आरोपों से बच सकते हैं क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता जीएसटी प्रावधानों के तहत इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में इंस्टीट्यूट द्वारा मोटी रकम गवाँने के मामले में लोगों की नाराजगी का बुरी तरह से शिकार हो रहे हैं । लोगों को हैरानी और नाराजगी है कि इनडायरेक्ट टेक्सेज जैसे विषय के एक्सपर्ट अतुल गुप्ता के इंस्टीट्यूट में होते/रहते हुए इंस्टीट्यूट को इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में इतनी मोटी रकम आखिर क्यों गवाँना पड़ी है ? इसे इंस्टीट्यूट प्रशासन के निकम्मेपन की पराकाष्ठा के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और सवाल उठाया जा रहा है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्य आखिर करते क्या हैं ? उल्लेखनीय है कि आरटीआई के तहत माँगी गई जानकारी के जबाव में खुद इंस्टीट्यूट प्रशासन ने बताया है कि जीएसटी के मामले में इंस्टीट्यूट ने पिछले तीन वर्षों में 2 करोड़ 35 लाख से अधिक रकम इंटरेस्ट के रूप में तथा साढ़े सात लाख से अधिक रकम लेट फीस के रूप में चुकाई है - इससे भी ज्यादा विडंबना की और दिलचस्पी की बात यह है कि इस दौरान इंस्टीट्यूट ने जीएसटी के मामले में कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस भी दी है । अतुल गुप्ता ने अपने नजदीकियों के जरिये यह कहते/बताते हुए 'बचने' की कोशिश तो की है कि वह तो इस वर्ष प्रेसीडेंट हैं, इसलिए उन्हें पिछले तीन वर्षों के किसी मुद्दे पर 'आरोपी' नहीं बनाया जा सकता है - लेकिन लोगों का कहना है कि इस तरह की तकनीकी बहानेबाजी से अतुल गुप्ता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य तथा वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अपने नाकारापन पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं ।
अतुल गुप्ता की तरफ से कुछेक और तकनीकी व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए भी बचने की कोशिश की जा रही है, लेकिन उनकी कोई भी कोशिश लोगों की नाराजगी को शांत नहीं कर पा रही है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी इस मामले में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है; उनके लिए लोगों को समझाना मुसीबत बन गया है कि सेंट्रल काउंसिल में उनके होते हुए, उनकी नाक के नीचे से इंस्टीट्यूट का पैसा इस तरह उड़ता क्यों रहा - और क्यों उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया ? लोगों को ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर भी है कि जिन कंसल्टिंग फर्म्स की सर्विस के बाद भी इंस्टीट्यूट को प्रत्येक वर्ष इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में मोटी रकम गवाँना पड़ती रही, उन कंसल्टिंग फर्म्स को हटा कर दूसरी फर्म्स की सेवाएँ क्यों नहीं ली गईं ? आखिर क्यों, उन्हीं कंसल्टिंग फर्म्स को मोटी रकम फीस के रूप में भी दी जाती रही, और इंटरेस्ट व लेट फीस के नाम पर इंस्टीट्यूट का खजाना भी खाली किया जाता रहा ? इस मामले को गंभीरता से देख रहे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को कम से कम अब तो इस बात का जबाव देना ही चाहिए कि अपना काम ठीक से न कर पाने वाली कंसल्टिंग फर्म्स को काम पर लगाए रखने तथा उन्हें फीस के रूप में मोटी रकम देते रहने के लिए कौन जिम्मेदार है, और ऐसा करने में उसे क्या लाभ हुआ ? 
आरटीआई के तहत इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये फीस के रूप में दिए गए हैं - लेकिन जीएसटी प्रावधानों के तहत इंटरेस्ट व लेट फीस देने के मामले में किसी भी वर्ष नहीं बचा जा सका है । वर्ष 2017-18 में इंस्टीट्यूट ने इंटरेस्ट के रूप में करीब एक करोड़ 78 लाख रुपये तथा लेट फीस के रूप में करीब 10 हजार रुपये चुकाए; उसके अगले वर्ष, यानि वर्ष 2018-19 में इंटरेस्ट तो घट कर करीब 6 लाख 14 हजार रहा - लेकिन लेट फीस 7 लाख 40 हजार के पार जा पहुँची; 2019-20 में इंस्टीट्यूट ने इंटरेस्ट के रूप में करीब साढ़े 51 लाख रुपये चुकाए तथा लेट फीस के रूप में छह हजार से अधिक रुपये दिए । इस तरह, पिछले तीन वर्षों में इंस्टीट्यूट ने कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस भी दी, और 2 करोड़ 43 लाख रुपये से अधिक का इंटरेस्ट व लेट फीस भी चुकाई । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए प्रोफेशनल स्टैंडर्ड्स तय करने वाली संस्था में ऐसा होना शर्मनाक तो है ही - नाकारापन तथा बेईमानी के संकेत भी देता है; इसलिए प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य आरोपों से बच नहीं सकते हैं ।