नई
दिल्ली । आनंद दुआ की परेशानी और बेचैनी यह देख/जान कर बढ़ती जा रही है कि
फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान
शुरू कर देने के बाद भी उनके समर्थक नेता उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं
दे रहे हैं, जिसके चलते उनकी उम्मीदवारी का मामला उलझता ही जा रहा है । आनंद
दुआ ने अपने नजदीकियों से यह कहते/बताते हुए अपना संपर्क अभियान शुरू
किया था कि दिल्ली के पाँच पूर्व गवर्नर्स - डीके अग्रवाल, दीपक तलवार, अजय
बुद्धराज, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा - के गुट ने उनकी उम्मीदवारी को
समर्थन घोषित करने का भरोसा उन्हें दिया है । दरअसल इस भरोसे के बाद ही
आनंद दुआ ने अपनी उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान शुरू किया था । आनंद दुआ
के नजदीकियों का कहना/बताना है कि उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स ने आनंद दुआ
की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का फैसला कर लिया है, और अपने इस फैसले की
घोषणा सार्वजनिक करने के लिए वह बस 'उचित समय' का इंतजार कर रहे हैं । 'उचित
समय' का इंतजार लेकिन जिस तरह से बढ़ता जा रहा है, उसे 'देख' कर आनंद दुआ
की बेचैनी और परेशानी बढ़ने लगी है । उनके नजदीकियों ने भी उनसे पूछना शुरू
कर दिया है कि जिन पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें समर्थन देने का भरोसा दिया था,
वह कहीं उनका पोपट तो नहीं बना रहे हैं । इस गुट का समर्थन पाने के
लिए योगेश भसीन द्वारा शुरू की गई कोशिशों को तथा योगेश भसीन की कोशिशों के
शुरू होने के बाद गुट के नेताओं के बदले हुए तथा टालमटोल वाले रवैये को
देखते हुए आनंद दुआ का माथा ठनका है और वह असमंजस में पड़ गए हैं ।
आनंद दुआ के नजदीकियों के अनुसार, आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का वायदा करने वाले पूर्व गवर्नर्स अपना वायदा पूरा करने के लिए तैयार तो हैं, लेकिन वह इस बात से डरे हुए भी हैं कि चुनाव की नौबत आने पर आनंद दुआ कहीं मैदान तो नहीं छोड़ जायेंगे - और इस तरह कहीं उनकी फजीहत तो नहीं करा बैठेंगे ? इसी डर के कारण दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स का गुट वायदा करने के बावजूद आनंद दुआ की उम्मीदवारी को अपने समर्थन की घोषणा करने से अभी बच रहा है । दरअसल सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल और हरियाणा में मची उथल-पुथल ने उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया है । उल्लेखनीय है कि अभी करीब दस दिन पहले तक दिल्ली में उम्मीदवारों का जो राजनीतिक समीकरण था, वह दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट के अनुकूल था । आनंद दुआ और आरके अग्रवाल के रूप में जिन दो उम्मीदवारों को सशक्त उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह इस गुट के भरोसे ही आगे कदम बढ़ाने का संकेत दे चुके थे । इस गुट के नेताओं को जिन सुरेश बिंदल से चुनौती मिलने का डर था, उन सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर कर दी थी - जिसके बाद उक्त गुट ने आनंद दुआ की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का फैसला कर लिया था । इस फैसले के तहत ही आनंद दुआ को सक्रिय होने की सलाह दी गई, और आनंद दुआ ने भी अपने आप को उम्मीदवार मानते हुए संपर्क अभियान शुरू कर दिया । आनंद दुआ और उन्हें उम्मीदवार बनाने का फैसला करने वाले पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट को विश्वास था कि दिल्ली में कोई भी पूर्व गवर्नर आनंद दुआ की उम्मीदवारी का विरोध नहीं करेगा, और उस स्थिति में कोई दूसरा उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेगा - इसलिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ को रास्ता पूरी तरह साफ मिलेगा ।
लेकिन सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल ने आनंद दुआ और उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट की तैयारी को झटका दे दिया । आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति नापसंदगी जाहिर करने के बावजूद, आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को समर्थन देने के क्लब के फैसले का वास्ता देकर सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का संकेत देकर उक्त गुट को आनंद दुआ की उम्मीदवारी की घोषणा करने से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया । दरअसल उक्त गुट के नेताओं को यह भरोसा नहीं है कि चुनाव की स्थिति आने पर भी आनंद दुआ उम्मीदवार बने रहेंगे, और चुनाव लड़ने को तैयार होंगे ? आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर सुरेश बिंदल ने यदि पलटी मारी है, तो इसे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुरेश बिंदल के चूँकि हरियाणा की राजनीति की कमान सँभाले बैठे केएल खट्टर के साथ नजदीकी संबंध हैं, इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही है कि आरके अग्रवाल को लेकर सुरेश बिंदल ने जो चाल चली है - कहीं सुरेश बिंदल और केएल खट्टर की मिलीजुली चाल तो नहीं है ? हरियाणा में हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर जो बवाल मचा हुआ है, केएल खट्टर को उसके पीछे दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट का हाथ दिखता है - इसलिए भी दिल्ली की राजनीति में केएल खट्टर के नाक घुसाने को बदला लेने की करवाई के रूप में देखा/समझा जा रहा है । इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक बड़ी लड़ाई की तरफ बढ़ती दिख रही है । दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट को राजनीतिक लड़ाई लड़ने में तो परहेज नहीं है, राजनीतिक लड़ाई में उसे अपना पलड़ा भारी ही नजर आ रहा है - लेकिन उस लड़ाई के लिए जो 'ईंधन' चाहिए होगा, आनंद दुआ की तरफ से उसकी 'सप्लाई' को लेकर वह आशंकित हैं । इसी आशंका के चलते उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ की उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा को रोक दिया है ।
आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर हरियाणा में जो उबाल आ रहा था, वह ठंडा पड़ता दिख रहा है; पाँच सदस्यीय गुट के नेताओं को उम्मीद थी कि उक्त उबाल के कारण केएल खट्टर उनके सामने समर्पण करेंगे और उनके साथ जुड़ेंगे, केएल खट्टर ने लेकिन सुरेश बिंदल के साथ जुड़ने को महत्ता दी है । इससे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट को अपनी राजनीति फेल होती हुई नजर आ रही है । मजे की बात यह है कि जमीनी स्थिति अभी भी उनके अनुकूल है; हरियाणा में लोग हरियाणा की लीडरशिप के फैसले के खिलाफ बगावत करने को तैयार बैठे हैं, और इसके लिए दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट के इशारे का इंतजार कर रहे हैं - दिल्ली में भी बाकी नेताओं के बीच चूँकि बिखराव की स्थिति है, इसलिए इस गुट के पास समर्थन जुटाने का अच्छा मौका है । लेकिन इन नेताओं को ही यह भी लग रहा है कि इस अच्छे मौके को हथियाने/पाने के लिए जो कसरत करना पड़ेगी, वह आनंद दुआ के भरोसे/सहारे नहीं सकती है । ऐसे में, लगता है कि दिल्ली का पाँच सदस्यीय गुट अपने ही बिछाए राजनीतिक जाल में खुद फँस गया है । इस स्थिति में योगेश भसीन को अपने लिए मौका नजर आया है; उन्हें लगा है कि अपने आप को मुसीबत से बचाने/निकालने के लिए दिल्ली का उक्त पाँच सदस्यीय गुट शायद उन्हें ही सहारा बना ले - इसलिए योगेश भसीन ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी सक्रियता दिखा/बढ़ा कर अपनी तरफ से सहारा बनने का संकेत दे दिया है । योगेश भसीन की सक्रियता ने आनंद दुआ तथा उनके नजदीकियों को और चिंतित कर देने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के ताने-बाने को और दिलचस्प बना दिया है ।
आनंद दुआ के नजदीकियों के अनुसार, आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का वायदा करने वाले पूर्व गवर्नर्स अपना वायदा पूरा करने के लिए तैयार तो हैं, लेकिन वह इस बात से डरे हुए भी हैं कि चुनाव की नौबत आने पर आनंद दुआ कहीं मैदान तो नहीं छोड़ जायेंगे - और इस तरह कहीं उनकी फजीहत तो नहीं करा बैठेंगे ? इसी डर के कारण दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स का गुट वायदा करने के बावजूद आनंद दुआ की उम्मीदवारी को अपने समर्थन की घोषणा करने से अभी बच रहा है । दरअसल सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल और हरियाणा में मची उथल-पुथल ने उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया है । उल्लेखनीय है कि अभी करीब दस दिन पहले तक दिल्ली में उम्मीदवारों का जो राजनीतिक समीकरण था, वह दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट के अनुकूल था । आनंद दुआ और आरके अग्रवाल के रूप में जिन दो उम्मीदवारों को सशक्त उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह इस गुट के भरोसे ही आगे कदम बढ़ाने का संकेत दे चुके थे । इस गुट के नेताओं को जिन सुरेश बिंदल से चुनौती मिलने का डर था, उन सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर कर दी थी - जिसके बाद उक्त गुट ने आनंद दुआ की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का फैसला कर लिया था । इस फैसले के तहत ही आनंद दुआ को सक्रिय होने की सलाह दी गई, और आनंद दुआ ने भी अपने आप को उम्मीदवार मानते हुए संपर्क अभियान शुरू कर दिया । आनंद दुआ और उन्हें उम्मीदवार बनाने का फैसला करने वाले पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट को विश्वास था कि दिल्ली में कोई भी पूर्व गवर्नर आनंद दुआ की उम्मीदवारी का विरोध नहीं करेगा, और उस स्थिति में कोई दूसरा उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेगा - इसलिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ को रास्ता पूरी तरह साफ मिलेगा ।
लेकिन सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल ने आनंद दुआ और उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट की तैयारी को झटका दे दिया । आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति नापसंदगी जाहिर करने के बावजूद, आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को समर्थन देने के क्लब के फैसले का वास्ता देकर सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का संकेत देकर उक्त गुट को आनंद दुआ की उम्मीदवारी की घोषणा करने से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया । दरअसल उक्त गुट के नेताओं को यह भरोसा नहीं है कि चुनाव की स्थिति आने पर भी आनंद दुआ उम्मीदवार बने रहेंगे, और चुनाव लड़ने को तैयार होंगे ? आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर सुरेश बिंदल ने यदि पलटी मारी है, तो इसे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुरेश बिंदल के चूँकि हरियाणा की राजनीति की कमान सँभाले बैठे केएल खट्टर के साथ नजदीकी संबंध हैं, इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही है कि आरके अग्रवाल को लेकर सुरेश बिंदल ने जो चाल चली है - कहीं सुरेश बिंदल और केएल खट्टर की मिलीजुली चाल तो नहीं है ? हरियाणा में हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर जो बवाल मचा हुआ है, केएल खट्टर को उसके पीछे दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट का हाथ दिखता है - इसलिए भी दिल्ली की राजनीति में केएल खट्टर के नाक घुसाने को बदला लेने की करवाई के रूप में देखा/समझा जा रहा है । इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक बड़ी लड़ाई की तरफ बढ़ती दिख रही है । दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट को राजनीतिक लड़ाई लड़ने में तो परहेज नहीं है, राजनीतिक लड़ाई में उसे अपना पलड़ा भारी ही नजर आ रहा है - लेकिन उस लड़ाई के लिए जो 'ईंधन' चाहिए होगा, आनंद दुआ की तरफ से उसकी 'सप्लाई' को लेकर वह आशंकित हैं । इसी आशंका के चलते उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ की उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा को रोक दिया है ।
आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर हरियाणा में जो उबाल आ रहा था, वह ठंडा पड़ता दिख रहा है; पाँच सदस्यीय गुट के नेताओं को उम्मीद थी कि उक्त उबाल के कारण केएल खट्टर उनके सामने समर्पण करेंगे और उनके साथ जुड़ेंगे, केएल खट्टर ने लेकिन सुरेश बिंदल के साथ जुड़ने को महत्ता दी है । इससे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट को अपनी राजनीति फेल होती हुई नजर आ रही है । मजे की बात यह है कि जमीनी स्थिति अभी भी उनके अनुकूल है; हरियाणा में लोग हरियाणा की लीडरशिप के फैसले के खिलाफ बगावत करने को तैयार बैठे हैं, और इसके लिए दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट के इशारे का इंतजार कर रहे हैं - दिल्ली में भी बाकी नेताओं के बीच चूँकि बिखराव की स्थिति है, इसलिए इस गुट के पास समर्थन जुटाने का अच्छा मौका है । लेकिन इन नेताओं को ही यह भी लग रहा है कि इस अच्छे मौके को हथियाने/पाने के लिए जो कसरत करना पड़ेगी, वह आनंद दुआ के भरोसे/सहारे नहीं सकती है । ऐसे में, लगता है कि दिल्ली का पाँच सदस्यीय गुट अपने ही बिछाए राजनीतिक जाल में खुद फँस गया है । इस स्थिति में योगेश भसीन को अपने लिए मौका नजर आया है; उन्हें लगा है कि अपने आप को मुसीबत से बचाने/निकालने के लिए दिल्ली का उक्त पाँच सदस्यीय गुट शायद उन्हें ही सहारा बना ले - इसलिए योगेश भसीन ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी सक्रियता दिखा/बढ़ा कर अपनी तरफ से सहारा बनने का संकेत दे दिया है । योगेश भसीन की सक्रियता ने आनंद दुआ तथा उनके नजदीकियों को और चिंतित कर देने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के ताने-बाने को और दिलचस्प बना दिया है ।