Monday, December 4, 2017

रोटरी इंटरनेशनल में गुलाम वहनवती और विजय जालान की बढ़ी हैसियत के कारण भरत पांड्या की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट आ खड़ा हुआ है, जिसके चलते उनके लिए चैलेंजिंग उम्मीदवार अशोक गुप्ता द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौती और बड़ी तथा संकटपूर्ण हो गई है

मुंबई । कुआलालुम्पुर में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में अन्य बातों के साथ-साथ जोन 4 में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर जिस तरह की बातें और सक्रियता सुनने/देखने को मिली हैं, उसने भरत पांड्या के लिए मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है । भरत पांड्या के नजदीकियों और शुभचिंतकों को यह देख कर खासी हैरानी हुई कि विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के जिन प्रमुख लोगों को भरत पांड्या के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है, वह कुआलालुम्पुर में भरत पांड्या को अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए नोमीनेटिंग कमेटी में अपनाई गई प्रक्रिया की आलोचना कर रहे थे, और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उपयुक्तता तथा उपयोगिता के लिहाज से अशोक गुप्ता को भरत पांड्या से बेहतर आँक रहे थे । भरत पांड्या के ही एक नजदीकी का कहना रहा कि कुआलालुम्पुर में चूँकि सभी लोग एक-दूसरे की नज़रों के सामने थे और यह देख/जान सकते थे कि कौन क्या कर रहा है, इसलिए यह बात सामने आई कि सीधे होने वाले चुनाव में भरत पांड्या के लिए मुकाबला आसान नहीं होगा - और उनके लिए सबसे पहली जरूरत तो अपने समर्थकों को ही राजनीतिक रूप से ट्रेंड करने और राजनीतिक रूप से ईमानदार 'बनाने' की जरूरत है । कुआलालुम्पुर जैसा नजारा ही यदि बना रहा, जहाँ कि दूसरे लोगों के साथ-साथ भरत पांड्या के समर्थक और शुभचिंतक भी भरत पांड्या की बजाए अशोक गुप्ता के रोटरी जीवन की तथा उनके कामों का बखान करते देखे/सुने गए - तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में भरत पांड्या के लिए वास्तव में मुसीबत की बात होगी । 
भरत पांड्या के समर्थकों का कहना है कि हाल ही के दिनों में गुलाम वहनवती की रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टी पद पर तथा विजय जालान की रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर जो नियुक्तियाँ हुईं हैं, उसने जोन के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह उलट-पलट दिया है - और इस स्थिति ने भरत पांड्या के लिए दो तरफा संकट पैदा किया है । इन नियुक्तियों ने एक तरफ तो ऐसे कई लोगों को नाराज किया है, जो इन पदों के दावेदार थे और भरत पांड्या के समर्थक के रूप में देखे पहचाने जाते हैं, और दूसरी तरफ उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में उनके विरोधी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले गुलाम वहनवती और विजय जालान का रोटरी में 'कद' बढ़ा । पहली वाली स्थिति को समझने के लिए एक उदाहरण देना काफी होगा - डिस्ट्रिक्ट 3080 में यशपाल दास रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टी पद के लिए तथा मधुकर मल्होत्रा रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए उम्मीदवार थे, और यह दोनों भरत पांड्या के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं; लेकिन यह दोनों ही जिस तरह से भरत पांड्या के डिस्ट्रिक्ट के गुलाम वहनवती और विजय जालान से 'हार' गए, उसके कारण अब यह भरत पांड्या की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं । जोन 4 के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी इसी तरह के नज़ारे हैं । सिर्फ यही नहीं, रोटरी के बड़े नेताओं पर भी इन नियुक्तियों का बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है । इसका एक दिलचस्प उदाहरण पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता हैं । शेखर मेहता खुद फाउंडेशन ट्रस्टी पद के उम्मीदवार थे, पर पद पाने में असफल रहे; उसके बाद उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के देवाशीष मित्रा को रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद दिलवाने का प्रयास किया, लेकिन उसमें भी वह असफल रहे - अपनी इन दोहरी असफलतताओं से पैदा हुई नाराजगी का ठीकरा वह भरत पांड्या की उम्मीदवारी पर फोड़ते नजर आ रहे हैं ।
रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टी पद पर गुलाम वहनवती तथा रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर विजय जालान की नियुक्ति ने जिन जिन लोगों को नाराज किया है, वह सब अपनी अपनी नाराजगी भरत पांड्या की उम्मीदवारी के साथ दिखाने में लग गए हैं - और इस नज़ारे में भरत पांड्या के समर्थकों व विरोधियों का फर्क मिट सा गया है । भरत पांड्या पर दोहरी चोट यह पड़ी है कि रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टी पद और रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद मिलने से उनके विरोधी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले गुलाम वहनवती और विजय जालान काफी मजबूत हो गए हैं, और इनकी मजबूती भरत पांड्या के लिए सिर दर्द बन गई है । उल्लेखनीय है कि गुलाम वहनवती ने तो एक ही डिस्ट्रिक्ट में होने के बावजूद भरत पांड्या के साथ ही इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, और नोमीनेटिंग कमेटी में वह थोड़े से अंतर से ही भरत पांड्या से पिछड़े थे । उम्मीद की जा रही थी कि वह चेलैंज करेंगे और यदि वह अपने चेलैंज को मान्य नहीं करवा सके, तो चैलेंजिंग उम्मीदवार की मदद तो जरूर ही करेंगे । इस 'उम्मीद' को देखते/समझते हुए भरत पांड्या ने गुलाम वहनवती को कंट्रोल में करने की व्यवस्था हालाँकि कर ली थी - किंतु उनकी बदकिस्मती रही कि गुलाम वहनवती ट्रस्टी बन गए । गुलाम वहनवती यदि सिर्फ एक पूर्व गवर्नर ही रहते तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में कोई खास भूमिका नहीं निभा पाते, लेकिन ट्रस्टी बनने से रोटरी में उनका कद खासा बड़ा हो गया है और अब वह बड़ी भूमिका निभा सकने की हैसियत में हो गए हैं । भरत पांड्या के ही नजदीकियों को लगता है कि जोन के डिस्ट्रिक्ट्स में हर कोई जानता है कि गुलाम वहनवती का भरत पांड्या के साथ विरोध का संबंध है; रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी होने के बाद गुलाम वहनवती को हर कोई खुश करने की कोशिश भी करेगा - और इस कोशिश में वह गुलाम वहनवती के कुछ कहे बिना ही भरत पांड्या के खिलाफ रहेगा और काम करेगा । इस तरह गुलाम वहनवती के ट्रस्टी बनने से भरत पांड्या के लिए बैठे-बिठाए मुसीबत गले आ पड़ी है ।
इसी तरह का मामला विजय जालान के मामले में भी हुआ है । विजय जालान जब तक सिर्फ पूर्व गवर्नर थे, तब तक वह भरत पांड्या के लिए कोई समस्या नहीं थे - और इसीलिए भरत पांड्या ने भी उनके विरोध की  परवाह नहीं की हुई थी । विजय जालान के विरोध का कारण दरअसल यह रहा है कि विजय जालान को भी अगली बार इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है । वह जान/समझ रहे हैं कि यह तभी संभव होगा जब कि भरत पांड्या इस बार इंटरनेशनल डायरेक्टर न बनें; भरत पांड्या यदि इस बार बनेंगे, तो अगली बार विजय जालान के लिए तो मौका ख़त्म ही हो जायेगा । अपना मौका बनाए रखने के लिए विजय जालान के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह भरत पांड्या को इस बार इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकें । विजय जालान जब तक सिर्फ पूर्व गवर्नर थे, तब तक इस संबंध में कुछ कर सकना उनके लिए मुश्किल था; किंतु अब रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर बनने के बाद उनकी रोटरी हैसियत में जो बड़ा उछाल आया है - उससे भरत पांड्या और उनके समर्थक सकते में हैं । भरत पांड्या और उनके समर्थक अभी तक विजय जालान को जरा भी गंभीरता से नहीं ले रहे थे, लेकिन बदली परिस्थिति में उनके लिए अब विजय जालान को गंभीरता से लेने की जरूरत आ पड़ी है । गुलाम वहनवती और विजय जालान की बढ़ी रोटरी हैसियत के कारण भरत पांड्या की उम्मीदवारी के सामने जो दोतरफा गंभीर संकट आ खड़ा हुआ है, उसके परिणामस्वरूप भरत पांड्या के लिए अपने डिस्ट्रिक्ट और अपने क्षेत्र के डिस्ट्रिक्ट्स में ही अपने समर्थन-आधार को बचाए रखना मुश्किल हो गया है; और इस मुश्किल के चलते उनके लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चैलेंजिंग उम्मीदवार अशोक गुप्ता द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौती और बड़ी तथा संकटपूर्ण हो गई है ।