Monday, December 4, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए आरके अग्रवाल और आनंद दुआ के बीच चल रही होड़ में हालात बदलने के बाद भी असमंजसता अभी बनी हुई है

नई दिल्ली । सुरेश बिंदल द्वारा आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने तथा आनंद दुआ द्वारा अपनी उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान शुरू कर देने से डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गहमागहमी बढ़ भी गई है और थोड़ा उलझ भी गई है - इस उलझन में अपनी अलग अलख जलाए बैठे आरके शाह के लिए भी मौका बनता नजर आने लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की सर्वसम्मत उम्मीदवारी को लेकर दिल्ली में ऊपरी तौर पर तो अनिश्चितता नजर आ रही थी, लेकिन भीतर ही भीतर आरके अग्रवाल और आनंद दुआ के बीच होड़ भी छिड़ी हुई थी । आरके अग्रवाल का समर्थन करने वाले तो कई थे, लेकिन सुरेश बिंदल के विरोध के चलते उनके नाम पर पूर्ण सहमति बनने में दिक्कत आती दिख रही थी; आनंद दुआ के नाम पर विरोध करने वाला तो कोई नहीं था, लेकिन उनकी सक्रियता के अभाव में उनका नाम आगे बढ़ाने वाला - यानि उनकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं था । आनंद दुआ को एक आदर्श उम्मीदवार के रूप में तो देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन उन्हें व्यावहारिक उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं किया जा पा रहा था । इसका एक बड़ा कारण यह था कि वह खुद अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखा रहे थे । उनके नजदीकियों का कहना/बताना था कि आनंद दुआ उम्मीदवार तो बनना चाहते हैं, लेकिन वह किसी नेता से यह कहना नहीं चाहते हैं - क्योंकि वह जानते हैं कि वह यदि अपनी उम्मीदवारी के लिए पहल करेंगे और नेताओं से समर्थन मागेंगे, तो उम्मीदवार के रूप में उन्हें पैसे खर्च करने पड़ेंगे; वह लेकिन 'मुफ्त' में गवर्नर बनना चाहते हैं । इस चक्कर में कोई भी नेता आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए तैयार नहीं हुआ । आरके अग्रवाल और आनंद दुआ के बीच उलझे मामले को उलझा हुआ छोड़ कर नेताओं ने कोई और उम्मीदवार खोजने की कोशिश भी की, लेकिन जो मिला नहीं ।
इस बीच हालात ने पलटा खाया । आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे सुरेश बिंदल ने अंततः मन बदला और आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । इससे आरके अग्रवाल का पलड़ा भारी होता हुआ नजर आया, तो आनंद दुआ ने भी 'किसी से न कहने' की जिद छोड़ी और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए निकल पड़े । हालात बदलने के बाद भी नतीजा लेकिन अभी भी उलझन भरा ही है और नेताओं के लिए किसी भी नतीजे पर पहुँचना मुश्किल बना हुआ है । एक पूर्व गवर्नर का कहना है कि किसी उम्मीदवार पर सर्वसम्मति बनाने के लिए कोई पहल नहीं करना चाहता है । नेताओं की स्थिति की सच्चाई दरअसल इसी बात में छिपी हुई है । इस बात से लग रहा है कि नेताओं ने अपने अपने उम्मीदवार तो चुन लिए हैं, लेकिन वह अपने अपने उम्मीदवारों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं  इसलिए वह अपने उम्मीदवार के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं । असल में, आरके अग्रवाल और आनंद दुआ में से किसी ने भी यह संकेत नहीं दिए हैं कि उनके नाम पर नेताओं के बीच यदि सर्वसम्मति नहीं बनी - तो भी वह किसी एक खेमे के भरोसे ही उम्मीदवार बनने को तैयार हैं । इसलिए उनके समर्थक नेता उनके नाम पर ज्यादा आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं, और मामला जहाँ का तहाँ ही अटका पड़ा है । सुरेश बिंदल की चंद्र शेखर मेहता के साथ अच्छी बनती है; समझा जाता है कि चंद्र शेखर मेहता ने हरियाणा में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरदीप सरकारिया के नाम पर मोहर लगवाने से पहले सुरेश बिंदल सहित दिल्ली के दो-तीन अन्य नेताओं को विश्वास में ले लिया था - इससे एक संभावना यह बन रही है कि सुरेश बिंदल दिल्ली में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आरके अग्रवाल का नाम घोषित करवा लें । हालाँकि कइयों को इस बात पर शक भी है कि दिल्ली में सुरेश बिंदल की ऐसी स्थिति है कि वह अपनी बात मनवा लें, इसलिए शक यही है कि दिल्ली में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जो भी उम्मीदवार 'घोषित' होगा - वह वास्तव में एक खेमे का ही होगा, और दूसरे नेता तो उसे मजबूरी में ही समर्थन देंगे ।
इस स्थिति ने आरके शाह के लिए उम्मीदों के द्वार खोल दिए हैं । उल्लेखनीय है कि आरके शाह अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं जो अपनी उम्मीदवारी के लिए डटे हुए हैं और उसके लिए समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं । समर्थन जुटाने की आरके शाह की कोशिशें हालाँकि अभी तक सफल नहीं हो सकी हैं, लेकिन जमीनी हालात उनके लिए अनुकूल बनते दिख रहे हैं । दरअसल हरियाणा में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरदीप सरकारिया का जिस मनमाने तरीके से चयन हुआ है, और जिसके चलते हरियाणा में लोग लीडरशिप के खिलाफ हो गए दिख रहे हैं - उसमें आरके शाह के लिए समर्थन बनने जैसे हालात छिपे नजर आ रहे हैं । हरियाणा में कई लोग लीडरशिप के नाम पर 'चार लोगों की मनमानी' के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करते हुए सुने जा रहे हैं । दिल्ली में भी, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए यदि 'सचमुच' सर्वसम्मति नहीं बनी, तो विरोधी नेता आरके शाह की उम्मीदवारी को समर्थन दे सकते हैं । आरके शाह के रवैये से यह तो तय ही माना जा रहा है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दिल्ली में दो उम्मीदवार तो होंगे ही, जिसके चलते हरियाणा की लीडरशिप पर दबाव होगा कि वह अपना ध्यान 'अपने' उम्मीदवार पर ही दे, और दिल्ली के झगड़े के पचड़े में न पड़े । यह स्थिति आरके शाह के अनुकूल बैठती है । स्थिति तो अनुकूल बैठी नजर आ रही है, लेकिन इस अनुकूल स्थिति को मैनेज करने तथा वोट में बदलने के लिए प्रेरित करने का काम आरके शाह कर पायेंगे या नहीं - यह सवाल जरूर लोगों को असमंजस में डाले हुए है । जाहिर है कि हालात साफ/स्पष्ट होने के लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार करना पड़ेगा ।